दिल्ली के मेडिसिन बाबा अनोखा काम करते हैं। घरों से बची दवाइयां कलेक्ट कर स्टोर करते हैं और जरूरतमंदों को उपलब्ध कराते हैं। फ्री सेवा कर लोगों के दिलों में जगह बनाई है। उन्हें गौरव रत्न अवार्ड से सम्मानित भी किया जा चुका है।
दिल्ली। झुग्गी-झोपड़ियों और फुटपाथ पर रहने वाले बहुत से लोग इलाज के लिए महंगी दवाइयां खरीद नहीं सकते। दिल्ली के रहने वाले ओंकार नाथ शर्मा उर्फ मेडिसिन बाबा ऐसे लोगों के लिए भगवान से कम नही हैं। वह घर-घर जाकर बची हुई दवाइयां मांगते हैं और उन्हें जरूरतमंदों को फ्री में उपलब्ध कराते हैं। माय नेशन हिंदी से बात करते हुए वह कहते हैं कि यह सेवा कार्य मैं पिछले 17 साल से कर रहा हूॅं। भारत में एक भी मेडिसिन बैंक नहीं है। मेरा एक ही सपना है गरीबों के लिए अपना अपना मेडिसिन बैंक हो। मैं एक छोटा सा प्रयास कर रहा हूॅं। वह नारा भी देते हैं कि बची दवाइयां दान में नहीं कि कूड़ेदान में।
ओंकारनाथ शर्मा कैसे बन गए मेडिसिन बाबा?
दरअसल, साल 2008 में दिल्ली के लक्ष्मीनगर में मेट्रो का निर्माणाधीन पिलर गिर गया। कथित तौर पर उसमें दो लोगों की मौत हो गई और कई लोग घायल भी हुए। प्राथमिक उपचार के बाद घायलों को घर भेज दिया गया। उसमें ऐसे व्यक्ति भी शामिल थे, जिनके पास इतने पैसे नहीं थे कि वह अपने लिए मेडिसिन का इंतजाम कर पाते। यह घटना देखने के बाद वह पूरी रात सो नहीं सके और तय किया कि कुछ ऐसा किया जाए कि आगे से किसी गरीब को दवा के अभाव में अपनी सेहत के साथ समझौत न करना पड़े। मौजूदा समय में उनके पास एक रुपये से लेकर 2 लाख रुपये प्रति स्ट्रिप तक की दवाइयां हैं। वह कहते हैं कि किसी इंसान को दुखी देखो या कोई इंसान दवाई के अभाव में परेशान हो रहा है तो अपने आप प्रेरणा मिल जाती है कि मैं इसकी कैसे-क्या सेवा करूं।
45 फीसदी हैंडिकैप फिर भी सुबह निकल जाते हैं दवाइयां मांगने
आप यह जानकर सरप्राइज हो जाएंगे कि मेडिसिन बाबा 45 फीसदी हैंडिकैप हैं। उनके पैर में परेशानी है। फिर भी डेली सुबह घर-घर से दवाइयां इकट्ठा करने निकल जाते हैं। वह कहते हैं कि दवा लाता हूॅं। उन्हें अलग-अलग डिब्बों में रखा जाता है। पेशेंट पर्ची लेकर आते हैं। जिसे जो दवाइयां चाहिए होती हैं। उसे वह दवाई डोनेट कर दी जाती है। उसकी पर्ची की फोटो कॉपी भी रिकॉर्ड के लिए रखी जाती है।
विदेशों से भी आती हैं दवाइयां
ऐसा नहीं कि ओंकारनाथ शर्मा के पास मेडिसिन के क्षेत्र में काम करने का अनुभव है। वह एक ब्लड बैंक में टेक्नीशियन के पद से रिटायर हैं। दवाओं को अलग-अलग करने के लिए फॉर्मासिस्ट रखा है। 5 से 6 लोग मिलकर यह काम करते हैं। उनके पास दुनिया के कई देशों से दवाएं आती हैं। उनमें कनाडा, इंग्लैंड, वियतनमा, फ्रांस आदि देश शामिल हैं। कई बार लोगों ने उनके पास विदेशों से दवाइयां भेजी। उनसे कस्टम ड्यूटी की डिमांड हुई तो उन्होंने दवा भेजने वालों से अनुरोध किया कि वह दवाइयां भेजने के साथ कस्टम ड्यूटी भी चुका दिया करें।
हर महीने 4 से 5 लाख की दवाइयां करते हैं दान
यह काम इतना आसान भी नहीं था। शुरुआती दिनों में जब वह कॉलोनी या मोहल्लों से दवाइयां इकट्ठी करते थे तो लोग कहते थे कि यह दवाइयां बेचकर अपना परिवार चला रहे हैं। पर उन्होंने किसी की बात पर ध्यान नहीं दिया और अपने काम में लगे रहें। कोरोना महामारी के समय जब दवाइयां मिलनी बंद हो गईं तो श्मशान घाट पर जाकर लोगों से बची हुई दवाइयां डोनेट करने का अनुरोध करने लगें। मौजूदा समय में 4 से 5 लाख की दवाइयां हर महीने डोनेट करते हैं। जरूरत पड़ने पर महंगी दवाइयां खरीदकर गरीबों को उपलब्ध भी कराते हैं।
Last Updated Mar 20, 2024, 2:41 PM IST