आईआरएस रोहित मेहरा कहते हैं कि उन्होंने आधा एकड़ से लेकर 12 एकड़ तक के जंगल विकसित किए हैं। जंगल बनाने से पहले मिट्टी का परीक्षण करके देखते हैं कि उसमें क्या कमी है, उसको ठीक करते हैं।
नयी दिल्ली। शहरों में जब पॉल्यूशन की वजह से बच्चों के स्कूल बंद हुए तो पंजाब के रहने वाले आईआरएस अधिकारी रोहित मेहरा और उनकी पत्नी गीतांजलि मेहरा को यह घटना अंदर तक झकझोर गई और उन्होंने हरियाली फैलाने की मुहिम शुरु की। अब तक 450 जंगल और 750 से ज्यादा वर्टिकल गार्डेन लगा चुके हैं। उन्हें पंजाब के 'ग्रीन—कपल' के रूप में जाना जाता है। वृक्षायुर्वेद के बारे में लोगों को शिक्षित करने का उनका मिशन जारी है।
कैसे बनाएं वृक्षायुर्वेद वन?
वृक्षायुर्वेद तकनीक से जंगल बसाने की मुहिम में पति-पत्नी सक्रिय भूमिका निभा रहे हैं। माई नेशन हिंदी से बात करते हुए आईआरएस रोहित मेहरा कहते हैं कि उन्होंने आधा एकड़ से लेकर 12 एकड़ तक के जंगल विकसित किए हैं। जंगल बनाने से पहले मिट्टी का परीक्षण करके देखते हैं कि उसमें क्या कमी है, उसको ठीक करते हैं। इसका भी ध्यान रखते हैं कि जो जंगल हम लगा रहे हैं। उस जंगल में किस तरह पानी की उपलब्धता हो सकेगी। कितने तापमान पर पौधों का रोपण करना सही होगा। पांच तत्वों (आकाश, वायु, अग्नि, जल और पृथ्वी) को देखते हुए पौधे लगाते हैं। अभी दिल्ली के स्कूलों में हरियाली फैलाने का काम कर रहे हैं।
वर्टिकल गार्डेन में प्लास्टिक की बोतलों का यूज
रोहित मेहरा कहते हैं कि उन्होंने 750 से ज्यादा वर्टिकल गार्डेन बनाएं। उसमें प्लास्टिक की बोतलों का यूज किया गया है। देखा जाए तो अब तक वर्टिकल गार्डेन में 75-80 टन प्लास्टिक यूज किया गया है। उन्होंने देश का सबसे बड़ा वर्टिकल गार्डेन भी बनाया है। जिसके लिए उनका नाम लिम्का बुक आफ रिकॉर्ड में भी दर्ज है।
8-9 महीने में डेवलप हो जाता है जंगल
रोहित कहते हैं कि जंगल बनाने में पंचवटी कहे जाने वाली पीपल, बेल, वट, आंवला व अशोक के पौधे लगाते हैं। एक जंगल में 60 से 70 तरह के छोटे से लेकर बड़े प्लांट लगाए जाते हैं। पूरा जंगल डेवलप होने में 8 से 9 महीने का समय लगता है। जंगल में अश्वगंधा, तुलसी, गिलोय आदि के पौधे भी लगाए जाते हैं।
कौन हैं रोहित मेहरा?
अमृतसर में जन्मे रोहित मेहरा की पढ़ाई डीएवी कॉलेज हाथी गेट से हुई। मौजूदा समय में आईआरएस अधिकारी के रूप में दिल्ली में तैनात हैं। उन्हें बचपन से पेड़-पौधों से इतना लगाव था कि वह मौका मिलते ही पेड़ लगाने में जुट जाते थे। यही हॉबी अब उनकी खास पहचान बन चुकी है। पंजाब में भी उन्होंने ग्रीनरी के लिए ढेरो काम किए। उन्हें लोग ग्रीन मैन के नाम से भी पुकारते हैं।
Last Updated Dec 29, 2023, 10:23 PM IST