पहले के समय में संयुक्त परिवारों में सामूहिक रसोई का चलन था। भारत के गांवों में वर्षों से यह परंपरा चली आ रही थी। मॉर्डन ऐज में संयुक्त परिवार संस्कृति प्रभावित हुई। इस बीच केरल की महिलाओं ने कम्युनिटी किचेन चलाकर उसे फिर से जीवंत कर दिया है। जिसका फायदा काम काजी जोड़े उठा रहे हैं।
कोझिकोड। केरल में कम्युनिटी किचेन यानी सामूहिक रसोई के फायदे नजर आ रहे हैं। इसका फायदा वर्किंग वुमेंस को हो रहा है। उन्हें काम के लिए आफिस जाना पड़ता है। आमतौर पर ऐसी महिलाओं के पास खाना बनाने के लिए समय नहीं होता है। कम्युनिटी किचेन से उन्हें घर का बना बनाया खाना मिल जाता है। दूसरी ओर किचेन चलाने वाली महिलाएं भी फायदे मे हैं, क्योंकि इससे उनकी आय हो रही है।
केरल के पोन्नानी में कामकाजी जोड़ों ने शुरु की थी सामूहिक रसोई
पहली बार केरल के पोन्नानी में कामकाजी जोड़ों द्वारा सामूहिक रसोई शुरु की गई थी, क्योंकि उन्हें खाना बनाने में समय लग रहा था, जो उनके काम के शेड्यूल के आड़े आ रहा था। उन्होंने एक सुविधा युक्त भूमि के टुकड़े से यह काम शुरु किया। जिसे बाद में मलप्पुरम में वर्किंग कपल्स के बीच सामूहिक रसोई (सहकारण रसोई) के रूप में पहचान मिली।
कोझिकोड में भी शुरु हुआ कम्युनिटी किचेन
कुछ महीनों बाद यह कोझिकोड में भी शुरु हुआ। मीडिया रिपोर्ट्स के अनुसार, वर्किंग पर्सन का इस कम्युनिटी किचेन को लेकर बढ़िया अनुभव रहा। इसके बारे में जानने वाले लोगों ने घर पर नाश्ता बनाना बंद कर दिया। कोझिकोड शहर के चेवरमबलम की सहकारण रसोई इसलिए मशहूर भी हुई। वहां से लोग अपने लिए खाना मंगाने लगे।
ये अनूठी रसोई चलाती है चेवरमबलम महिला सहकारी समिति
चेवरमबलम महिला सहकारी समिति इस अनूठी रसोई को संचालित करती है। इसकी वजह से किचेन में काम करने वाली स्थानीय महिलाओं को आय होती है। वह लोगों के लिए सिर्फ खाना ही नहीं बनाती हैं, बल्कि उन्हें वितरित भी करती हैं। रिपोर्ट्स के अनुसार, रसोई में 11 परिवारों का भोजन तैयार होता है। दो कर्मचारी भोजन बांटने का काम करते हैं। खाने का मीनू एक दिन पहले ही तय हो जाता है। नाश्ते में ज्यादातर इडली, पुट्टू, पथिरी, चपाती, अप्पम, उप्पुमा या पूरी होती है, जबकि दोपहर के भोजन में चावल और सब्जी के साथ चिकन या मछली की डिश होती है।
रेस्तरां की तुलना में सस्ता होता है खाना, समय की भी बचत
यह भोजन रेस्तरां की तुलना में सस्ता होता है, क्योंकि ज्यादातर भोजन उन्हीं परिवारों की देखरेख में पकाया जाता है। खाना बनाने में लगने वाली लागत परिवार उठाते हैं। सुबह 8 बजे तक परिवार के घरों में नाश्ता पहुंचा दिया जाता है। इसकी वजह से घरों से निकलने वाले कचरों में भी भारी कमी आई है। कम्युनिटी किचेन का खुद का एक कूड़ादान भी है। वर्मी-कंपोस्टिंग यूनिट भी है। खास बात यह है कि यह कम्युनिटी किचेन बुजुर्ग जोड़ों के लिए भी फायदेमंद साबित हो रहा है। बजट के अंदर का खाना और समय की भी बचत होती है। अब केरल में कई जगहों पर इस तरह की कम्युनिटी किचेन की शुरुआत हुई है।
Last Updated Dec 5, 2023, 4:06 PM IST