शाहजहांपुर। अक्सर आपने लोगों को काम बिगड़ने पर 'सब गुड़-गोबर हो गया' कहते सुना होगा। ज्यादातर लोग गोबर को 'वेस्ट' ही मानते हैं। शाहजहांपुर के नवीपुर गांव के रहने वाले ज्ञानेश तिवारी ने उसी गोबर को अपनी कमाई का जरिया बना लिया। डेयरी से निकलने वाले गोबर से वर्मीकम्पोस्ट तैयार करते हैं। लोग उनसे वर्मी कम्पोस्ट परचेज करते हैं। अब उनकी सालाना कमाई लाखो रुपये है।

टीचर के बजाए खुद का काम करने का फैसला

दरअसल, ज्ञानेश तिवारी के पिता टीचर थे। वह भी अपने बेटे को टीचर बनाना चाहते थे। पिता की मर्जी जानकर ज्ञानेश ने साल 2010 में मेरठ से बीएड किया। पर उनका मन खुद का काम करने का था। उधर, परिवार चाहता था कि वह नौकरी करें। उसी समय उन्हें डेयरी फार्मिंग का आइडिया आया। इससे जुड़ी योजनाओं की जानकारी ली और फिर डेयरी शुरु करने का फैसला लिया। 

डेयरी से निकालने वाले गोबर को समझा वेस्ट

ज्ञानेश तिवारी ने डेयरी खोलने के निर्णय के बाद इस पर होमवर्क किया। व्यवसाय शुरु करने के लिए जरुरी प्रशिक्षण लिया और 2014 में डेयरी खोली तो पहले उन्हें भी गोबर का निस्तारण एक समस्या की तरह लगा। उन्होंने गोबर के यूज पर ध्यान दिया तो उन्हें समझ आया कि इसका प्रयोग करके भी कमाई की जा सकती है।

ट्रेनिंग लेकर तैयार करने लगे वर्मी कम्पोस्ट

बाद के वर्षों में उन्होंने इस दिशा में काम करना शुरु किया। 2016 में वर्मी कम्पोस्ट खाद बनाने का प्रशिक्षण लेकर खुद की डेयरी से निकलने वाले गोबर का यूज करने लगे। तैयार वर्मी कम्पोस्ट की बिक्री करने लगें। उन्होंने वर्मी कम्पोस्ट तैयार करने की विधियों के बारे में गहराई से जाना। आज उसका लाभ उठा रहे हैं।

तीन विधियों से बनाते हैं वर्मी कम्पोस्ट

ज्ञानेश तिवारी तीन तरीकों (विंड्रो, HDPE और परंपरागत विधि) से वर्मी कम्पोस्ट बनाते हैं। सालाना उत्पादन करीबन 1500 क्विंटल है। आसपास के किसान खाद की खरीद के लिए उनके पास आते हैं। खासकर नर्सरी या सब्जियां उगाने वाले लोगों की यह पहली पसंद है। आपको जानकर हैरानी होगी कि ज्ञानेश तिवारी हर साल काफी मात्रा में केंचुओं की भी बिक्री करते हैं। सिर्फ केंचुओं की बिक्री से ही उनकी लाखो रुपये कमाई होती है।

इन बातों का रखते हैं ध्यान

​ज्ञानेश के मुताबिक, तीनों तरीकों से वर्मी कम्पोस्ट तैयार करने में कुछ खास बातों का ध्यान रखा जाता है। वर्मी कम्पोस्ट तैयार करने से पहले गोबर को 15 दिन के लिए ठंडा होने के लिए छोड़ जाता है। ऐसा इसलिए किया जाता है कि ताकि गोबर से प्रोड्यूस होने वाली मीथेन गैस पूरी तरह निकल जाए। यदि पहले ही गोबर में केंचुआ डाल दिया जाए तो उनकी मौत हो सकती है। उन्हें जैविक खेती के लिए सम्मानित भी किया गया।

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