पंजाब के एक गवर्नमेंट स्कूल में लेक्चरर जसविंदर सिंह अपने घर-घर विज्ञान पहुंचाने के अभियान से मशहूर हैं। स्टूडेंट्स को सरल तरीके से विज्ञान सिखाने के लिए पर्सनल कार को ही चलती-फिरती साइंस लैब (Lab On Wheels) बना दी। यह विचार उन्हें तब आया, जब स्टूडेंट्स उनके विज्ञान सिखाने के तरीके में रूचि लेने लगें। तमाम स्कूलों से बच्चों को विज्ञान सिखाने के लिए इनविटेशन आने लगें। माय नेशन हिंदी से उन्होंने 'लैब ऑन व्हील्स' शुरु करने की रोचक कहानी शेयर की है। आइए उसके बारे में जानते हैं।

कैसे हुई Lab On Wheels की शुरुआत?

Lab On Wheels की शुरुआत साल 2012 में उस घटना के बाद हुई। जब वह एक स्कूल में परीक्षक (Examiner) बनकर गए थे। प्रैक्टिक्ल एग्जाम का समय दोपहर 2 से सायं 5 बजे तक था। जब उन्होंने बच्चों से प्रैक्टिल एग्जाम के संबंध में बात की तो ज्यादातर बच्चे तैयार नहीं थे। साइंस प्रैक्टिकल की नॉलेज न के बराबर थी। वह समझ रहे थे कि बस कागज पर साइन करके चले जाएंगे और मार्क्स मिल जाएंगे। ​जसविंदर सिंह के अर्न्तमन को यह स्वीकार नहीं था। उन्होंने बच्चों से कहा कि कुछ करके दिखाओ, उसकी आब्जर्वेशन के बाद ही मार्क्स मिलेंगे। 

प्रैक्टिक्ल एग्जाम में स्टूडेंट्स को सिखाया विज्ञान

फिर जसविंदर सिंह ने लिटमस पेपर, नींबू, साबुन आदि का यूज करके बच्चों को एक्सपेरिमेंट करके दिखाया। बाद में बच्चे भी वैसा ही करने लगे। प्रैक्टिकल में बच्चों का मन ऐसा लगा कि प्रैक्टिकल एग्जाम का समय खत्म हो जाने के बाद भी कुछ बच्चों ने कहा कि थोड़ा और एक्सपेरिमेंट कराइए। उस दौरान जसविंदर सिंह को समझ आया कि इससे बच्चों का इंटरेस्ट साइंस में क्रिएट हो रहा है और यहीं से उन्‍होंने प्रैक्टिकल करके बच्‍चों को विज्ञान सिखाने का फैसला लिया ।

 

ऐसे हुई 'लैब आन व्हील्स' की शुरुआत

जसविंदर सिंह कहते हैं कि फिर मैंने प्लास्टिक के दो बॉक्स बनवाए और उसके अंदर थोड़ा सामान डाला। उससे अपनी क्लास में बच्चों को सिखाया तो उन्हें बहुत अच्छा लगा। इसी तरह टीचर ट्रेनिंग प्रोग्राम में ड्यूटी के दौरान प्रैक्टिकल डिमॉन्स्ट्रेशन करके दिखाया। टीचर्स को भी अच्छा लगा। वैसे सामान्यत: टीचर ट्रेनिंग प्रोग्राम में ज्यादातर लेक्चर ही होते हैं। ऐसे में जसविंदर सिंह के विज्ञान सिखाने के तरीके को सभी ने सराहा। धीरे-धीरे विज्ञान सिखाने के लिए उनके दो छोटे-छोटे बैग बन गए। तभी उनके मन में आया कि क्यों न अपनी कार को ही लैब बना दूॅं। तब बच्चों को प्रैक्टिकल दिखाने के लिए कमरा नहीं चाहिए होगा। कार पर ही सामान रखकर बच्चों से एक्सपेरिमेंट कराया जा सकता है। बस 1 नवम्बर 2012 से उनकी Lab On Wheels शुरु हो गई। 

11 राज्यों में 7 लाख लोगों को सिखा चुके हैं साइंस

उनका यह अनोखा काम मीडिया की सुर्खियां बना तो उन्हें स्कूलों से बच्चों को विज्ञान सिखाने के लिए कॉल आने लगे। पहले तकरीबन 18 इनविटेशन आए और फिर उनकी संख्या बढ़कर 30 तक जा पहुंची। उसी दरम्यान जसविंदर सिंह के एक दोस्त ने न्यूज पेपर में भारत सरकार का एक इश्तिहार पढ़ा। उसमें अनोखा काम करने वालों से आवेदन मांगे गए थे। फ्रेंड के कहने पर जसविंदर सिंह ने आवेदन कर दिया। आवेदन करने के कुछ समय बाद डिपार्टमेंट आफ सांइस एंड टेक्नोलॉजी की तरफ से नेशनल अवार्ड के लिए उनका चयन हो गया। वैसे 150 वर्ष पहले यह काम रूचिराम साहनी किया करते थे। घर-घर जाकर विज्ञान पहुंचाते थे। जसविंदर सिंह अब तक 11 राज्यों में 7 लाख लोगों को विज्ञान सिखाने का काम कर चुके हैं।

मिल चुके हैं ये अवार्ड

  • जसविंदर सिंह पंजाब के पहले शख्स हैं, जिन्हें साइंस एजुकेशन को पॉपुलर करने के लिए नेशनल अवार्ड मिला।
  • पंजाब के पहले व्यक्ति हैं, जिन्होंने साइंस और मैथ​मैटिक्स को पंजाबी भाषा में प्रमोट किया।
  • 'जसविंस लैब ऑन व्हील्स' के इनोवेटर हैं।
  • उन्हें साल 2010 में स्टेट अवाॅर्ड मिला।
  • शिक्षा रत्न 2013 और गवर्नर अवाॅर्ड 2014 से भी सम्मानित किए जा चुके हैं।
  • 28 फरवरी 2014 और 5 सितम्बर 2014 को नेशनल अवाॅर्ड से सम्मानित किए गए।
  • साल 2017 में मालती ज्ञान पीठ पुरस्कार मिला।
  • ASEAN Excellence Award 2022 in Super 30 From 9 Asian countries. 
  • प्राइड आफ एशिया अवार्ड 2023 से सम्मानित। 

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