ओडिशा के रिटायर टीचर गुरुचरण प्रधान नौकरी के दौरान खेती-किसानी के काम में पिता का हाथ बंटाते थे। मजदूरों की अनुपलब्धता की वजह से काम प्रभावित होते देखा तो ऐसी मशीन बनाने का ख्याल आया, जिससे मजदूरों के अभाव में भी काम न रूके। माय नेशन हिंदी से बात करते हुए गुरुचरण प्रधान कहते हैं कि साल 2000 में मशीन बनाने का काम शुरु किया, 7 साल लग गए। साल 2007 में मशीन बनकर तैयार हुई। उसे इम्प्रूव करते-करते 20 साल गुजर गए।

मशीन करती है ये 9 काम

गुरुचरण प्रधान की बनाई मशीन ‘कृषक साथी’ धान रोपाई, नारियल छिलना, ​चारा काटना, धान की थ्रेशिंग, मूंगफली थ्रेशिंग, धान साफ करने, चाकू या कुल्हाड़ी पर धार लगाने, मक्का के दाने निकालने और हल्दी पीसने का काम किया जा सकता है। इसके अलावा मशीन में एक डायनमो भी लगा है। चारा काटते समय बिजली भी बनती है। जिसका उपयोग बल्ब जलाने या बैटरी चार्ज करने में किया जा सकता है। 

टीचिंग के साथ मशीन बनाने का काम

सुंदरगढ़ जिले के तलिता गांव के रहने वाले गुरुचरण प्रधान के पिता किसान थे। उन्होंने इंटरमीडिएट के बाद सर्टिफाइड टीचर ट्रेनिंग कर जॉब के लिए ट्रॉय किया तो एक सरकारी स्कूल में नौकरी मिली। नौकरी के साथ खेतों में भी काम करते थे। घर पर 25 से 30 दुधारू पशु थे। पशुओं के लिए चारा काटना होता था। उधर, आए दिन मजदूरों की कमी से परेशानी बढ़ने लगी तो उन्होंने ऐसी मशीन बनाने की ठानी जो कई मजदूरों का काम एक साथ कर सके। साल 2000 में स्कूल में पढ़ाने के साथ ही वह बचे समय में मशीन बनाने में जुटे रहें। उस समय इंटरनेट मीडिया की ज्यादा उपलब्धता नहीं थी तो आसपास की मशीनों को देखकर काम शुरु किया। काफी मेहनत के बाद लगभग 2007 में मशीन बनाने में सफलता मिली। 

पहले लोग कहते थे पागल, अब कहते हैं प्रधान ने कुछ किया

गुरुचरण कहते हैं कि टीचिंग के साथ बचे हुए समय में मशीन बनाने में जुटा रहता था तो लोग पागल कहते थे। कहते थे कि ये दिन रात क्या 'खट-पट' किया करता है। पिता गांव के मुखिया हैं, बढ़िया जमीन है, खुद नौकरी करता है। कोई काम नहीं है। इसलिए दिन रात 'खुटुर-पुटुर' किया करता है। बाद के वर्षों में जब इसी मशीन की वजह से सम्मान मिला तो तो अब बोलते हैं कि प्रधान ने कुछ किया। 

मशीन की लागत मात्र 25 हजार रुपये

गांव से नौकरी की तलाश में लोगों के पलायन की वजह से मजदूर आसानी से नहीं मिलते थे। यह समस्या वर्षों के बाद भी जस की तस थी। रिटायर होने के बाद गुरुचरण प्रधान ने खेती के साथ मशीन को और बेहतर बनाने में ध्यान लगाया। धीरे-धीरे मशीन में बदलाव करने लगे और कई चीजों को एक साथ लाए। मशीन बनाने की लागत लगभग 25 हजार रुपये है। इसे बनाने में भी साइकिल की रिम और चेन आदि का यूज किया गया है। उनका कहना है कि यदि इस मशीन को बड़े स्तर पर बनाया जाए तो इसकी लागत काफी कम आएगी।

गुरुचरण प्रधान को मिल चुके हैं ये पुरस्कार

‘कृषक साथी’ मशीन बनाने के लिए गुरुचरण प्रधान को कई पुरस्कार भी मिल चुके हैं। वाइब्रेंट गुजरात 2013 में उनकी मशीन को सराहा गया। 51 हजार रुपये की पुरस्कार राशि भी मिली थी। राष्ट्रीय ग्रामीण विकास संस्थान (NIRD), हैदराबाद ओर ओडिशा का एग्रीकल्चर डिपार्टमेंट भी उन्हें सम्मानित कर चुका है। नेशनल इनोवेशन फाउंडेशन ने भी उनके काम की तारीफ की। वह अपनी सफलता का श्रेय पत्नी मीरावती को देते हुए कहते हैं कि उन्होंने कभी काम करने से नहीं रोका।

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