नयी दिल्ली। आम तौर पर एग्जाम में फेलियर के बाद स्टूडेंट हताश-निराश हो जाते हैं। ग्रेटर नोएडा के रहने वाले रोहित गोस्वामी के साथ भी ऐसा हुआ। 12वीं क्लास के एग्जाम में फेल हुए तो जीवन में आगे बढ़ने के रास्ते मानो बंद से हो गए। पिता ने हिम्मत दी। निराशा से उबरकर आगे पढ़े और एक स्कूल में पढ़ाना शुरु किया। माई नेशन हिंदी से बातचीत के दौरान रोहित गोस्वामी कहते हैं कि उसी दरम्यान ख्याल आया कि अपनी पढाई के साथ युवाओं को कॅरियर की राह दिखाई जाए, ताकि उन्हें ऐसी स्थिति का सामना न करना पड़े। इसी सोच के साथ उन्होंने "युवा सोच आर्मी" रजिस्टर्ड कराई। अब लोगों को मुश्किल परिस्थितियों से उबरने और सोसाइटी में अपना योगदान देने में मदद कर रहे हैं।

2016 में शराबंदी मुहीम से जुड़ें

दरअसल, रोहित गोस्वामी कम उम्र में ही समाज सेवा के क्षेत्र से जुड़ गए थे। 10वीं क्लास में महज 16 वर्ष की उम्र में ही ग्रेटर नोएडा के जेवर इलाके में शराबबंदी मुहीम में शामिल हुए। वह कहते हैं कि साल 2016 में आसपास का माहौल देखता था। लोग शराब पीकर लड़ते थे। चुनाव में लोग बच्चों की शिक्षा और बिजली के बजाए शराबंदी की मांग करते थे, तो मुझे लगा कि यदि शराबबंदी हो जाए तो लोगों की प्राथमिकता में एजूकेशन और अन्य बुनियादी सुविधाएं रहेंगी और वह उनकी उपलब्धता कराएंगे। इसीलिए लगा कि मुझे इस मुहीम से जुड़ना चाहिए। तब गांव में महिलाओं द्वारा 'हमें शिक्षा दो, शराब छोड़ो' नारे के साथ जागरूकता रैली निकाली गई। 

 

पिता के सपोर्ट ने बढ़ाई हिम्मत

उसी दरम्यान रोहित गोस्वामी को भारतीय किसान यूनियन से जुड़ने का मौका मिला। उन्हें लगा कि यूनियन के माध्यम से वह अपनी बात घर-घर तक पहुंचा सकते हैं। उनके पिता मास्टर चंद्रपाल सिंह ने भी उनका सपोर्ट किया। वह टीचर रहे हैं। अब उनका बिजनेस मैटेरियल का बिजनेस है। रोहित कहते हैं कि उनके पिता कहते थे कि जिसके पास शिक्षा होगी, उसका परिवार उन्नत होगा। इससे भी उनकी सोच को ताकत मिलती थी।

ये था रोहित की लाइफ का सबसे बड़ा स्ट्रगल

रोहित साल 2018 में 12वीं क्लास के एग्जाम में फेल हो गए। यह उनके जीवन का सबसे बड़ा स्ट्रगल था। परिवार का सपना था कि बेटा फौजी बने। वह कहते हैं कि तब चारो तरफ से रास्ते बंद हो गए थे। लोगों से नजरें चुराना शुरु कर दिया था। तब पिताजी ने समझाया कि ये जिंदगी का छोटा सा मोड़ है। तुम कुछ अच्छा कर सकते हो। फिर एक स्कूल में पढाना शुरु किया। बच्चों को पढ़ाने के दौरान ख्याल आया कि यदि युवाओं के लिए काउंसलिंग शुरु की जाए तो उनके टैलेंट को दिशा​ मिलेगी। वह कहते हैं कि फेल होने के बाद ही पता चलता है कि आप कितने पीछे हो जाते हैं। इसी सोच के साथ उन्होंने "युवा सोच आर्मी" की शुरुआत कर दी। साल 2021 में उसे रजिस्टर्ड कराया। रोहित गोस्वामी वर्तमान में आगरा के एक कॉलेज से MSW की पढ़ाई कर रहे हैं।

स्लम एरिया के बच्चों को फ्री एजूकेशन

रोहित गोस्वामी कहते हैं कि हमारी संस्था एक सामाजिक संस्था है। हमारा मकसद लोगों का सशक्तिकरण करना है। हमारे इनीशिएटिव अलग अलग क्षेत्रों में काम कर रहे हैं। साल 2020 में महिलाओं को काफी संख्या में सेनेटरी पैड बांटे। दिल्ली-एनसीआर के स्लम इलाके में बच्चों के लिए स्कूल चलाएं। जगह-जगह फ्री पाठशालाएं शुरु की। बच्चों को एजूकेशन देना शुरु किया। वुमेन इम्पावरमेंट के लिए भी काम करते हैं। 

 

कोविशील्ड वैक्सीन के ट्रायल का हिस्सा भी 

रोहित गोस्वामी कहते हैं कि कोरोना महामारी से निपटने के लिए कोविशील्ड वैक्सीन आई तो उसके ट्रायल में शामिल हुए 11 वालंटियर्स में वह भी एक थे। दिल्ली स्थित एम्स हॉस्पिलट में वैक्सीन की डोज ली थी। रोहित कहते हैं कि सोशल वर्क के दरम्यान उनकी मुलाकात मेजर जनरल प्रमोद कुमार सहगल, मेजर जनरल जीडी बख्शी, एडिशनल कमिश्नर इनकम टैक्स अमनप्रीत से हुई। उन लोगों से प्रेरणा मिली। पिता ने कभी सामाजिक काम करने से नहीं रोका। 

महिलाओं को आत्मनिर्भर बनाने को किया ये काम

रोहित गोस्वामी कहते हैं कि युवा सोच आर्मी ने साल 2022 में "नारी साहसी अभियान" शुरु किया था। 2000 महिलाओं को ट्रेनिंग देने का काम किया कि वह कैसे अपना प्रोडक्ट आनलाइन प्लेटफार्म के माध्यम से बेच सकती हैं। उनमें से 100 महिलाओं को 5000-5000 रुपये दिए गए। ताकि वह अपना खुद का काम शुरु कर सकें। उनमें से तमाम महिलाएं अलग-अलग काम कर रही हैं। किसी ने सिलाई-कढ़ाई का काम शुरु किया तो कोई अचार, साबुन, मोमबत्ती बनाने का काम कर रहा है। महिलाओं को समझाया गया कि कैसे गोबर के उपलों की पैकिंग करके आनलाइन बेचा जा सकता है। इस प्रोग्राम में ग्रेटर नोएडा और अलीगढ़ की महिलाएं शामिल​ थीं। 

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