गाजीपुर। यूपी के गाजीपुर के भंवरकोल ब्लॉक के महेशपुर गांव निवासी शेख अब्दुल्ला ने तीन दशक पहले इलाके में आधुनिक खेती शुरु की। किसान विकास मंच बनाकर लोगों को कैश क्रॉप के लिए प्रेरित किया। अब इस इलाके में 'पाताल गंगा' नाम की प्रसिद्ध मंडी लगती है। देश विदेश के व्यापारी खरीददारी के लिए आते हैं। MY NATION HINDI से बात करते हुए शेख अब्दुल्ला कहते हैं कि करीब 10 साल तक इलाके में हाईब्रिड टमाटर की बड़े पैमाने पर खेती हुई। अब, मिर्च की खेती से किसानों को फायदा हो रहा है, जो विदेशों तक जा रही है। 2 हजार हेक्टेयर में हजारों किसान खेती कर रहे हैं।

30 साल पहले शुरु की थी आधुनिक खेती

शेख अब्दुल्ला को 30 साल पहले आधुनिक खेती करने का विचार कैसे आया? यह बताते हुए उनकी 30 साल पुरानी यादें जीवंत हो जाती हैं। उनका कोलकाता शहर में डेयरी फॉर्म था। नये नियम आएं तो डेयरी फॉर्म को शहर से बाहर करना पड़ा। पर वहां कारोबार स्टैब्लिश नहीं हो पाया तो वापस गांव आना पड़ा। गांव में पहले से ही पारम्परिक खेती होती थी। आसपास के गांव के लोग सब्जी की खेती करते थे और उपज को मार्केट में बेचते थे। यही देखकर शेख अब्दुल्ला ने भी अपनी एक बीघा जमीन पर देसी टमाटर की खेती शुरु की। 2-3 साल समझने में लगें। फिर देखा कि देसी टमाटर की उपज की डिमांड ज्यादा नहीं थी तो हाईब्रिड टमाटर की खेती शुरु कर दी और उपज लखनऊ, कानपुर, गोंडा, बहराइच की मंडी में भेजना शुरु कर दिया।

 

जमीन लीज पर लेकर टमाटर की खेती

साल 1990 का समय था। शेख अब्दुल्ला ने ऐसे लोगों की जमीनें पेशगी पर लेनी शुरु कर दीं, जो लोग शहरों में रहते थे। 'किसान विकास मंच' बनाकर किसानों को उन्नत खेती के बारे में जागरुक करना भी शुरु कर दिया। आने वाले 10 साल में पूरे इलाके में बड़े पैमाने पर किसानों ने टमाटर की खेती शुरु कर दी। वाराणसी के भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद की भी मदद मिली। समय के साथ यह पूरा इलाका टमाटर की खेती के लिए प्रसिद्ध हो गया। शुरुआती दिनों में जब टमाटर का उत्पादन कम होता था तो किसान अपनी उपज गाजीपुर मंडी में बेचते थे। पर मंडी काफी छोटी थी और किसानों के लिए वहां टमाटर ले जाना भी मुश्किल हो रहा था। 

खरीददार के सुझाव पर शुरु हुई पाताल गंगा मंडी

किसानों की दिक्कतों को देखते हुए एक खरीददार ने ही शेख अब्दुल्ला को सुझाव दिया कि आप लोग अपने इलाके में ही मंडी लगाइए। हम लोग खरीददारी करने वहीं आएंगे। शेख अब्दुल्ला कहते हैं कि फिर हम लोगों ने महेशपुर गांव के पास ही साल 2005-06 में 'पाताल गंगा' नाम के जगह पर मंडी लगानी शुरु कर दी। मंडी से डेली 100 ट्रक टमाटर निकलना शुरु हो गया। देश की तमाम मंडियों के अलावा नेपाल तक टमाटर जाते थे। पश्चिमी यूपी में जब टमाटर की फसल कम होती थी तो उन वर्षों में पाकिस्तान वाया पंजाब भी टमाटर गएं। अब, 'पाताल गंगा' मंडी गाजीपुर जिले की बड़ी मंडी मानी जाती है। ध्यान देने की बात यह है कि बिना किसी सरकारी सुविधा के यह मंडी चलती है।

 

टमाटर में नुकसान शुरु हुआ तो शुरु हुई मिर्च की खेती

इलाके में साल 2010 तक टमाटर की खेती खूब हुई। पर टमाटर का सही मूल्य किसानों को नहीं मिल पा रहा था। नुकसान भी होता था। शेख अब्दुल्ला कहते हैं कि इसी वजह से कृषि विविधीकरण (Crop Diversification) की तरफ ध्यान गया। कृषि अनुसंधान केंद्रों के जरिए देश के विभिन्न जगहों पर गए और फिर ट्रायल के तौर पर एक बीघे खेत में हाईब्रिड मिर्च की खेती शुरु की। शुरुआत से ही लगा कि मिर्च की खेती टमाटर को पीछे छोड़ देगी, क्योंकि मिर्च की खेती अक्टूबर-नवम्बर से लेकर अप्रैल-मई तक चलती है। उस दौरान मिर्च के कई रेट मिलते हैं, जबकि टमाटर की खेती कुछ महीनों तक ही चल पाती थी। धीरे-धीरे लोगों ने टमाटर की जगह मिर्च की खेती करनी शुरु कर दी। 8-9 साल में 95 फीसदी मिर्च की खेती होने लगी और टमाटर की खेती 5 प्रतिशत रह गई।

डेली बिकती है 150-200 गाड़ी मिर्च

अब पाताल गंगा मंडी से हर दिन करीबन 150-200 गाड़ियां मिर्च की निकलती हैं। लाल और हरी मिर्च देश ही नहीं विदेशों तक जाती है। नेपाल, बांग्लादेश, भूटान, गल्फ कंट्री में हरी मिर्च जाती है, जबकि लाल मिर्च वाया मध्य प्रदेश, चीन तक जाता है। इलाके के लोग सिर्फ मिर्च ही नहीं बल्कि मटर की भी खेती करते हैं। सीजन में डेली सैकड़ो ट्रक मटर भी ​'पाताल गंगा' मंडी से निकलता है।

'पाताल गंगा' नाम के पीछे ये है कहानी

गाजीपुर से बक्सर रोड पर करीबन 30 किमी की दूरी पर भंवरपुर ब्लाक के महेशपुर गांव के पास 'पाताल गंगा' मंडी है। गांव के बुजुर्ग बताते हैं कि साल 1913 में इलाके में प्रचंड बाढ़ आई थी। जिस जगह पर मौजूदा समय में मंडी लगती है। वहां पानी का सोता फूट गया था। उसकी वजह से उस जगह का नाम 'पाताल गंगा' पड़ गया। 'पाताल गंगा' नाम से यहां कोई गांव नहीं है, बल्कि जगह के नाम की वजह से मंडी का नाम 'पाताल गंगा' मंडी पड़ गया, जहां सब कुछ किसान ही मिलकर कर रहे हैं। यह सब्जियों का फ्रेश मार्केट है। इलाके के किसान दिन भर सब्जियों की तुड़ाई करते हैं और शाम तक साइकिल, ठेला या किसी अन्य साधन से मंडियों तक उपज ले आते हैं। 

कौन है शेख अब्दुल्ला?

शेख अब्दुल्ला महेशपुर गांव के साल 1988 से 2015 तक लगातार 27 साल प्रधान रहें। कृषि व​ विकास कार्यों के लिए उन्हें यूपी के तत्कालीन गवर्नर टीवी राजेश्वर ने भी सम्मानित किया था। भारतीय अनुसंधान कृषि परिषद, वाराणसी से भी रजत पदक मिला है। तत्कालीन डीएम राजन तिवारी ने भी शेख अब्दुल्ला को उनके कार्यों के लिए सम्मानित किया था। साल 1990 से शेख अब्दुल्ला ने इलाके में किसानों को आधुनिक खेती की जो राह दिखाई। वर्तमान में उसी राह पर चलते हुए हजारो किसान तरक्की कर रहे हैं। उनकी कमाई भी बढ़ी है। मंडी विकसित होने की वजह से होटल, चाय की दुकान के अलावा कॉमर्शियल व्हीकल का कारोबार बढ़ा है। जिससे इलाके के लोगों को रोजगार मिला है।

ये भी पढें-साउथ कोरिया में सीखी तकनीक, नोएडा के एक कमरे में केसर उगाया, कम लागत में कमाई की ट्रेनिंग दे रहें रमेश गेरा