नई दिल्ली। आमतौर पर IIT और NIFT जैसे देश के प्रतिष्ठित संस्थानों से पढ़ाई पूरी करने वाले छात्र बड़ी कंपनियों में हाई पैकेज की नौकरी करते हैं। लेकिन क्या हो जब इन्हीं संस्थानों से पढ़ाई करने वाले युवा कबाड़ के व्यापार से करोड़ों की कमाई करें? यह सुनने में अजीब जरूर लगता है, लेकिन दो भाइयों, विकास कुमार और राहुल वाशुखी ने अपनी मेहनत से ऐसा संभव कर दिखाया है और अब महीने में करोड़ो रुपये की कमाई कर रहे हैं।

शुरुआत में घर-घर जाकर इकट्ठा किया कचरा 

विकास कुमार ने IIT से पोस्ट ग्रेजुएशन किया और उनके भाई राहुल वाशुखी ने NIFT से ग्रेजुएशन किया। दोनों भाइयों ने प्लास्टिक पॉल्यूशन के बढ़ते खतरे को देखा और इसे कम करने के लिए कुछ नया और यूजफूल करने की ठानी। उन्होंने प्लास्टिक कचरे को फर्नीचर में बदलने का आइडिया आया। शुरुआत में वे घर-घर जाकर कचरा इकट्ठा करते थे। कई बार लोग उनका मजाक उड़ाते थे, लेकिन उन्होंने पीछे मुड़कर नहीं देखा।

बिना फंडिंग के शुरू किया काम

दोनों भाइयों ने बिना किसी बाहरी फंडिंग के अपने काम की शुरुआत की। इलेक्ट्रॉनिक्स और प्लास्टिक के कचरे को रीसाइकिल करना आसान नहीं था। इसके लिए उन्होंने अपनी खुद की मशीनें तैयार कीं। इन मशीनों की मदद से वे प्लास्टिक कचरे को प्रोसेस करने लगे और उससे टिकाऊ और स्टाइलिश फर्नीचर बनाने लगे।

बड़े ब्रांड्स के साथ जुड़ा कारोबार

आज विकास और राहुल के ब्रांड माइनस डिग्री (Minus Degre) का नाम बड़े-बड़े ब्रांड्स के साथ जुड़ा हुआ है। वे टाटा, एडिडास और बीएमडब्ल्यू जैसी कंपनियों के लिए भी फर्नीचर डिजाइन कर रहे हैं। वह अपने कारोबार से हर महीने लगभग 10 लाख रुपये कमा रहे हैं। सालाना रेवेन्यू 1.20 करोड़ रुपये तक पहुंच चुका है। उन्होंने 10,000 रुपये की मशीन से अपने बिजनेस की शुरुआत की थी, और आज करोड़ों का कारोबार कर रहे हैं। 

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