पढ़ोगे-लिखोगे तो बनोगे नवाब, खेलोगे-कूदोगे तो होगे खराब..। प्रतापगढ़ के संग्रामपुर गांव के मो. इबरार ने इस धारणा को बदलकर रख दिया। गांव में नागपंचमी पर हाेने वाले खेलों से शुरुआत की। स्टेट, नेशनल और इंटरनेशनल लेबल पर मेडल जीते।
प्रतापगढ़। पढ़ोगे-लिखोगे तो बनोगे नवाब, खेलोगे-कूदोगे तो होगे खराब..। प्रतापगढ़ के संग्रामपुर गांव के मो. इबरार ने इस धारणा को बदलकर रख दिया। My Nation Hindi से बातचीत करते हुए मो. इबरार ने जिंदगी के संघर्ष को बताया। पढ़ें शब्दशः बचपन से आम बच्चों की तरह खेलने कूदने वाले इबरार की खेल में रूचि थी। पर तब न कोई साधन था न सुविधा, ट्रेनिंग तो दूर की बात थी। गांव में नाग पंचमी के मौके पर होने वाला खेल उनको भाता था। साल 2001 का समय था। उन्होंने नागपंचमी के मौकों पर गांव में होने वाले खेलों में हिस्सा लिया, जीत मिली तो उत्साह बढ़ा।
उसी दरम्यान प्रतापगढ़ जिले के स्टेडियम में भी खेल का ट्रायल चल रहा था। बगैर जूतों के दौड़ने वाले इबरार उत्सुकतावश खेल देखने पहुंच गए। परफार्मेंस का मौका मिला तो 100 मीटर रेस और लांग जम्प में पहली पोजीशन पाई। उनके टैलेंट ने प्रशिक्षकों को भी अचंभित कर दिया और उनका चयन राज्य स्तर पर हो गया। फिर इबरार खेल में सीढ़ी दर सीढ़ी आगे बढ़ते गए और गांव के बच्चों को भी प्रोत्साहित करते रहें। उन्होंने गांव में खेल की ऐसी अलख जगाई कि अब तक संग्रामपुर गांव से निकले खिलाड़ी 62 मेडल जीत चुके हैं।
मामा से 5 रुपये लेकर बनियान ली और खेलने गए
माई नेशन से बात करते हुए इबरार कहते हैं कि गांव में नाग पंचमी के मौके पर होने वाले खेल में प्रोत्साहन मिलता था, लोग तालियां बजाते थे। मुझे लगा कि इसमें अच्छा सम्मान मिलता है तो क्यों न यही किया जाए। बस फिर क्या था, वह भी गांव के खेलों में शामिल होने की तैयारी में जुट गए। उस समय उनके पास बनियान नहीं थी। संयोग से मामाजी घर आए हुए थे। उनसे 5 रुपये लेकर बनियान खरीदी और खेल में शामिल हुए।
स्टेट लेबल पर खेल में पाई पहली पोजीशन
साल 2003 में लखनऊ के स्पोर्ट्स कॉलेज में उनका सेलेक्शन हो गया। प्रतापगढ़ स्टेडियम से लखनऊ जाने का प्रोग्राम तय हुआ। उन्हें स्टेडियम पहुंचने में देर हो गई। तब तक टीम लखनऊ के लिए निकल चुकी थी। उस समय एक प्रशिक्षक ने उनकी मदद की और लखनऊ जाने के लिए 20 रुपये दिए। राज्य स्तरीय खेल में भी उन्होंने पहली पोजीशन पाई।
पिता ने कहा-नौकरी नहीं मिली तो टैक्सी चलानी पड़ेगी
इबरार ने साल 2006 में हाईस्कूल की परीक्षा पास की। उस समय घर की स्थिति बेहद खराब थी। उनके पिता टैक्सी चलाते थे। घर में पांच भाई और बहनें थी। इबरार कहते हैं कि वालिद ने हाईस्कूल पास करते ही स्पष्ट कर दिया कि यदि आपको नौकरी नहीं मिलती है तो टैक्सी चलानी पड़ेगी। उनके सामने भी मजबूरी थी कि 5—5 बच्चे संभालें, बेटियों की शादी करें या उनकी जिम्मेदारी संभाले, क्योंकि खेल के दौरान खर्चे भी होते थे।
हाईस्कूल पास करते ही एयरक्राफ्ट मैन की मिली नौकरी
इबरार कहते हैं कि उस समय सर्टिफिकेट भी नहीं आई थी। एयरफोर्स में वैकेंसी निकली थी तो ट्रायल देने चला गया। उसी साल एयरफोर्स में एयरक्राफ्ट मैन की जॉब मिल गई। फिर देश ही नहीं विदेशों में भी जाकर देश के लिए मेडल जीता। साउथ एशियन गेम्स (ढाका) में लांग जम्प में गोल्ड मेडल, इंडियन इंडोर एथलेटिक्स चैम्पियनशिप (ईरान) में नेशनल रिकार्ड बनाया। एशियन इंडोर एथलेटिक्स चैम्पियनशिप ईरान में ब्रान्ज मेडल जीता। वर्ल्ड मिलिट्री चैम्पियनशिप (ग्रीस) में शामिल हुए।
62 मेडल जीत चुके हैं गांव से निकले खिलाड़ी
इबरार ने गांव के बच्चों को खेल के प्रति प्रोत्साहित किया। उसका फायदा मिला। इबरार कहते हैं कि गांव से एशिया लेबल तक के प्लेयर निकल रहे हैं। गांव के ही मोहम्मद हदीस, जेवलिन थ्रो में देश के लिए खेल चुके हैं। शाहरूख खान ने जूनियर नेशनल एथेलेटिक्स में गोल्ड और देश में पहला स्थान प्राप्त किया। शेख नायाब ने सीबीएसई नेशनल में जूनियर स्टेट 2022 में सिल्वर मेडल झटका। अब तक गांव से निकले खिलाड़ी स्टेट, नेशनल और इंटरनेशनल लेबल पर 62 मेडल जीत चुके हैं।
Last Updated Jul 25, 2023, 8:10 PM IST