वाराणसी। साल 2017 में वाराणसी के कुछ छात्र खुशियारी गांव से बच्चों को पढ़ा कर लौट रहे थे। उसी समय, गांव की एक बुजुर्ग महिला ने अपना दर्द साझा करते हुए छात्रों से कहा था कि आप हमारे गांव का विकास मत करिए, बल्कि हमारे गांव में जुआ और दारू बंद करा दीजिए। बुजुर्ग महिला ने यह भी बताया कि होली के त्यौहार पर उनके बेटे ने बहू पर खौलता हुआ तेल डाल दिया। जिससे उसके दोनों हाथ जल गए। यह सुनकर छात्रों के रोंगटे खड़े हो गए। 

2016 में गांव को लिया था गोद

इन छात्रों की टीम पहले ही साल 2016 में खुशियारी गांव को गोद ले चुकी थी और वहां के लोगों जीवन में बदलाव लाने के लिए काम कर रही थी। छात्रों के पास संसाधन भी सीमित थे तो ऐसे में सवाल उठा कि इस समस्या का क्या समाधान निकाला जा सकता है? कहा जाता है कि युवा शक्ति किसी देश या समाज के उत्थान में अहम भूमिका निभाती है। रवि मिश्रा और दिव्यांशु उपाध्याय की टीम ने भी वही किया। महिलाओं को घरलू हिंसा से मुक्ति दिलाने की राह ढूंढ़ी और फिर खुशियारी गांव में ग्रीन आर्मी अस्तित्व में आई। 

ग्रीन आर्मी की महिलाओं को पुलिस मित्र का दर्जा

होप वेलफेयर ट्रस्ट के दिव्यांशु उपाध्याय कहते हैं कि ग्रीन आर्मी बनाने के लिए महिलाओं को मोटिवेट किया गया। तत्कालीन वरिष्ठ पुलिस अधीक्षक आकाश कुलहरी भी गांव आए। ग्रीन आर्मी की महिलाओं को पुलिस मित्र का दर्जा मिला। अब इस ग्रीन आर्मी का 6 जिलों (वाराणसी, मिर्जापुर, सोनभ्रद, जौनपुर, अयोध्या और बलिया) में विस्तार हो चुका है। करीबन 1800 महिलाएं ग्रीन आर्मी से जुड़ी हैं।

कैसे काम करती है ग्रीन आर्मी?

यदि किसी ने शराब पीकर अपनी पत्नी को पीट दिया तो सूचना मिलने पर ग्रीन आर्मी की महिलाएं उसके घर पहुंचती हैं। पीड़ित महिला के पति को समझाती हैं। चेतावनी भी देती हैं कि दोबारा ऐसा नहीं होना चाहिए। वरना हम पुलिस में कंप्लेन करेंगे। सभी महिलाएं एक ही तरह की हरे रंग की साड़ी में होती हैं तो पीड़िता के पति पर इसका असर पड़ता है। वैसे हरा रंग शांति और सद्भावना का प्रतीक माना जाता है। पर हरे ड्रेस में ग्रीन आर्मी की महिलाओं को देखकर पत्नियों के साथ मारपीट करने वाले पति सहम जाते हैं। हरे रंग का यह खौफ महिलाओं के जीवन में शांति के रंग भर रहा है। उन्हें घरेलू हिंसा से मुक्ति दिला रहा है। 

ग्रीन आर्मी की टीम कैसे बनती है?

दिव्यांशु बताते हैं कि गांव की 25 महिलाओं का ग्रुप बनाकर ट्रेनिंग दी जाती है। उन्हें नाम लिखना सिखाया जाता है। वीरांगना रानी लक्ष्मीबाई और सावित्रीबाई ज्योतिराव फुले के बारे में बताया जाता है। मोटिवेशन से उनके अंदर हिम्मत आती है कि वह भी गांव के विकास में मदद कर सकती हैं। एक टीम महिलाओं को सेल्फ डिफेंस की ट्रेनिंग देती है। 

गुलाबी गैंग से अलग है काम काज का तरीका

ग्रीन आर्मी के काम काज का तौर तरीका साल 2006 में बांदा में गठित गुलाबी गैंग से अलग है। गुलाबी गैंग को अपने दम पर मामले को सुलझाने के लिए जाना जाता है, जबकि ग्रीन आर्मी पहले पुरुषों को समझाती हैं, उन्हें जुआ खेलने और शराब पीने के नुकसान के बारे में बताती हैं। फिर जरुरत पड़ने पर ग्रीन आर्मी पुलिस की सहायता भी लेती है। महिलाएं हरी साड़ी पहनकर हफ्ते में दो दिन पूरे गांव का दौरा करती हैं। वह जुआ खेल रहे लोगों को समझाती भी हैं। उनके ताश के पत्ते भी नष्ट करती हैं। हरे रंग का गांव में इतना प्रभाव होता है कि जुआ खेलने वाले उन्हें दूर से ही देखकर भाग खड़े होते हैं।