लखनऊ। आम तौर पर नौकरी से रिटायरमेंट या 60 साल की उम्र के बाद लोग थके थके से दिखते हैं। यह उम्र का वह पड़ाव होता है। जब बच्चे अपनी अपनी दुनिया में मशगूल होते हैं। सेहत भी ज्यादा साथ नहीं देती है। तकनीक के बढ़ते चलन की वजह से एक दूसरे से मिलना जुलना भी मुश्किल हो गया है। ऐसे में लखनऊ गोमतीनगर के रविकांत श्रीवास्तव बुझे बुझे से चेहरों पर मुस्कान ला रहे हैं। उनके ठहाके लोगों के चेहरों पर बरबस हंसी ला देते हैं और पल भर में ही चेहरों की रंगत बदल जाती है। कुछ समय के लिए बच्चे हों या बुजुर्ग उम्र की सीमा भूल जाते हैं।  

मुस्कान लाने की जगा रखी है अलख

जल निगम से रिटायर रविकांत श्रीवास्तव ने लोगों के चेहरों पर मुस्कान लाने की अलख जगा रखी है। वह हर रोज सुबह मार्निंग वॉक पर निकले बड़े बुजुर्गों को इकट्ठा करते हैं और फिर ठहाकों का सिलसिला शुरु होता है, जो दूर दूर तक सुनाई देता है। ठहाकों की फूलझड़ी भी ऐसी की आसपास के लोग भी उसमें शामिल होने से खुद को रोक नहीं पाते हैं। समय के साथ धीरे धीरे ठहाके लगाने वाले लोगों की संख्या भी बढ़ी है। अब दर्जनों बुजुर्ग डेली इस अभ्यास में शामिल होते हैं। इसका असर यह हुआ कि मुरझाए चेहरों पर मुस्कानें लौट आई हैं। 

रिटायरमेंट के बाद शुरु कीजिए नई जिंदगी

रविकांत श्रीवास्तव कहते हैं रिटायरमेंट के बाद लोग खुद को चुका हुआ मानकर बैठ जाते हैं। आज के भागदौड़ के समय में बच्चों के पास भी इतना समय नहीं होता है कि वह घर के बड़े बुजुर्गों के साथ बैठकर बात कर सकें। उनका दुख दर्द साझा कर सकें। ऐसे में लोग घर पर पड़े रहते हैं। इसका असर उनकी मानसिकता पर पड़ता है। पर जब वह खुलकर ठहाके मारकर हंसते हैं तो इसका असर उनके स्वास्थ्य पर पड़ता है। सेहत ठीक रहती है।

मनोबल बढ़ता है तो उम्र का ज्यादा प्रभाव नहीं

वह कहते हैं यदि हमारा मनोबल मजबूत है तो उम्र का ज्यादा प्रभाव महसूस नहीं होता है। ऐसे में लोगों को एक दूसरे से मिलते जुलते रहना चाहिए। ऐसा नहीं कि सिर्फ बुजुर्ग ही उनके ठहाकों में  शामिल होते हैं। हर उम्र के लोग उनका साथ देते हैं। एक दूसरे के साथ स्वास्थ्य संबंधी मुद्दों पर डिस्कस करते हैं और एक दूसरे की मदद भी करते हैं। उनका कहना है कि यदि हर शहर, गांव और कस्बों में यदि लोग इस तरफ ध्यान दें तो लोगों की जिंदगियों में बदलाव आएगा।