कहते हैं "जहां चाह वहां राह" एकता नाहर की जिंदगी इस मुहावरे पर बिल्कुल सटीक बैठती है, जिस चीज़ की चाह उन्हें बचपन से थी वो उनकी मंज़िल बन गयी। मध्य प्रदेश के छोटे से शहर दतिया की रहने वाली एकता ने कंप्यूटर साइंस में बीटेक किया आईटी इंडस्ट्री में नौकरी किया लेकिन नौकरी में दिल नहीं लगा, वजह थी "रंग"जी हां एकता को रंगों से इतना प्यार है कि वह अपनी पर्सनल लाइफ और प्रोफेशनल लाइफ दोनों में रंगों को ढूंढ रही थी और एक दिन उन्होंने फैसला किया कि वो सर्विस छोड़ कर बिज़नेस शुरू करेंगी।

बचपन का शौक बन गया जुनून

एकता को बचपन से घर को सजाने संवारने का शौक था और यह शौक जुनून बनता चला गया यही वजह है कि सर्विस में दिल नही लगा, एकता ने नौकरी छोड़ दिया और बिजनेस स्टार्ट करने के लिए पैसे नहीं थे, जब तक नौकरी थी, तब तक रिश्तेदार नातेदार एकता पर गर्व कर रहे थे लेकिन जब बुरा वक्त आया तो सब ने साथ छोड़ दिया, एकता अकेली पड़ गई और  डिप्रेशन में चली गईं।  इस डिप्रेशन से निकलने के लिए एकता ने रंग और कला का सहारा लिया, लिहाज़ा एकता ने वुडेन आर्ट के ज़रिए रंगों को बिखेरना शुरू किया, मोटिवेशन, प्रेम, क्रांति, दर्द, इंस्प्रिरेशन यूं कहिये की इंसान के हर जज़्बात को रंगों से शब्द दिया और लोगों के घरों की दीवारों पर एकता के रंग सजने लगे।

 

परिवार को सुनने पड़े ताने

एकता तीन भाई बहन हैं, घर में माता पिता है,  पिता का कपड़े का एक छोटा सा कारोबार है। घर की माली हालत बहुत अच्छी नहीं थी इसलिए एकता नौकरी करने के लिए दिल्ली आ गईं। क्योंकि एकता मध्य प्रदेश के सबसे छोटे शहर दतिया की रहने वाली हैं, जहां लड़कियों को नौकरी कराने को लेकर लोगों की सोच भी काफी कंज़र्वेटिव है, एकता ने जब दिल्ली जाने का फैसला किया तो माता पिता को आस पास के लोगों के ताने भी सुनने पड़े, लेकिन एकता फैसला कर चुकी थी, आज एकता को बिज़नेस वीमेन के तौर पर देख कर उनके मां बाप।फूले नही समाते वहीं जो लोग कल तक ताने दे रहे थे वो भी एकता की सराहना करते नही थकते।

स्टार्टअप के साथ लाइफ पार्टनर मिल गया

नए स्टार्टअप के साथ एकता की ज़िंदगी मे आशीष आ गए,  आशीष ने अपने प्यार का इजहार एकता को रंगो का डिब्बा दे कर दिया, आशीष ने एकता के बिजनेस में उनका साथ देना शुरू कर दिया, जल्द दोनों शादी के बंधन में बंधने वाले हैं, चूंकि आशीष भी आर्ट लवर है तो दोनों ने मिलकर इस बिज़नेस को ऊंचाइयों तक पहुंचाने में दिल जान लगा दिया और नोएडा में "रंगसाजी" नाम से एक स्टूडियो खोल दिया.।

घर के वेस्ट मटेरियल से शुरू हुआ बिजनेस

एकता ने अपना बिजनेस महज़ ₹5000 और घर के वेस्ट मैटेरियल से शुरू किया,  इनमें नेल पेंट की शीशियां, बेकार डिब्बे, टूटी फूटी रस्सियां शामिल थीं, बिना किसी प्रमोशन के आज एकता को महीने में 500 से 800 आर्डर मिलते हैं लकड़ियों को तराशने का काम आशीष करते हैं और उन लकड़ियों में रंग भरने का काम एकता करती है।

पहला ऑर्डर यूएसए से आया

एकता कहती हैं मैंने अपने बिजनेस का कोई प्रमोशन नहीं किया ना किसी पीआर इंडस्ट्री का सहारा लिया ना,किसी मार्केटिंग मैनेजर का। सोशल मीडिया के जरिए मेरा काम लोगों तक पहुंच रहा था और धीरे-धीरे मेरे ग्राहक दूर दराज़ के देशों में भी हो गए, कैनेडा, लंदन, अमेरिका और दुबई से लोगों ने आर्डर देना शुरू किया है, अब इतना काम हो गया है कि स्टाफ़ रखना पड़ रहा है। मदर्स डे, फादर्स डे, वेलेंटाइन डे, फ्रेंडशिप डे, के मौके पर तो बैठने की भी फुर्सत नहीं मिलती।

लिखने का है शौक

एकता को पढ़ने लिखने का शौक था, महिलाओं को लेकर वो बहुत संवेदनशील हैं जिसे लेकर उन्होंने एक किताब भी लिखी जिसका टाइटल है "सूली पर समाज" इस किताब में उन्होंने महिलाओं के जीवन, उनके संघर्ष, उनके इमोशन, उनकी ज़िम्मेदारियों, उनके साथ होने वाले भेदभाव को हाइलाइट किया, समय मिलने पर एकता किताबें पढ़ना शुरू कर देती हैं।

लोग भेजते हैं इमोशनल मैसेज

एकता कहती हैं बिजनेस में लोगों को अक्सर ग्राहक का गुस्सा भी देखना पड़ता है लेकिन एक साल हो गया मेरे बिजनेस को आज तक किसी ने कभी कुछ नही कहा, एडवांस पेमेंट के बाद भी अगर किसी को आर्डर डिले हुआ तो भी उसने गुस्सा नही किया, आर्डर मिलने के बाद लोगों के इतने इमोशनल मेसेज मिलते हैं कि कभी कभी आंखों से आंसू गिरने लगते हैं..