उड़ीसा के पंकज कुमार तरई पिछले 18 सालों से रोड एक्सीडेंट का शिकार हुए लोगों को बचाने का काम कर रहे हैं। अब तक वो  हजार से ज्यादा लोगों की जान बचा चुके हैं। अपने इस काम के लिए उन्होंने एक संस्था भी बनाई है जिसका नाम है देवदूत सड़क सुरक्षा वाहिनी।  उनके इस ग्रुप से करीब 300 लोग जुड़े हुए हैं। माय नेशन हिंदी से पंकज ने अपनी पूरी मुहिम के बारे में डिटेल में बताया। 

कौन हैं पंकज कुमार तरई 
पंकज उड़ीसा के कटक के रहने वाले हैं।  उनके परिवार में पांच भाई, दो बहन पत्नी और दो बच्चे हैं। पेशे से पंकज बिजनेसमैन है । बालू और चिप्स का छोटा सा बिजनेस करते हैं और बिजनेस का 30% सड़क हादसे में शिकार लोगों की जान बचाने में खर्च करते हैं। पीड़ितों को  अस्पताल ले जाते हुए पंकज फर्स्ट एड अपने पास से दे देते हैं।



कैसे शुरू हुई ये मुहीम
पंकज ने बताया कि साल 2005 की बात है जब पंकज एक ट्रक ड्राइवर हुआ करते थे। ड्यूटी से वापसी करने के दौरान वह कटक पारादीप स्टेट हाईवे से घर लौट रहे थे तभी उन्हें भूटामुंडाई के पास दो लोग दिखे जिनकी मोटरसाइकिल को ट्रक ने टक्कर मार दिया था और वह सड़क पर लहू लुहान पड़े थे।  लोगों की भीड़ उनके पास इकट्ठा थी लेकिन मदद के लिए कोई सामने नहीं आया। पंकज ने फॉरन लोगों को उठाया और अस्पताल लेकर पहुंचे जहां डॉक्टर ने बताया की दोनों की जान जा चुकी है।   10, 15 मिनट पहले आते है तो उनकी जान बच जाती है। डॉक्टर की इस बात में पंकज के दिल में घर कर लिया और उन्होंने तय किया कि वह सड़क हादसे में घायल लोगों की सुरक्षा आजीवन करेंगे।



एक मुहीम से पंकज का कारवां बढ़ता चला गया
पंकज कहते हैं मैंने देवदूत सड़क सुरक्षा वाहिनी के नाम से एक व्हाट्सएप ग्रुप बनाया और उसमें ढाई सौ लोगों को जोड़ा।  इनमें वकील, पत्रकार, सरपंच, मुखिया जैसे तमाम लोग जुड़े हुए हैं। इस ग्रुप के जरिए पंकज के काम की चर्चा जगह-जगह होने लगी और धीरे-धीरे सड़क हादसे की खबरें पंकज तक खुद आने लगी। जैसे ही पंकज के पास फोन आता है किसी सड़क हादसे का वह फौरन मौके पर पहुंचते हैं घायलों को फर्स्ट एड देते देते अस्पताल पहुंचाते हैं।

अब तक हजार से ज्यादा लोगों की जान बचा चुके हैं पंकज
पंकज ने बताया कि वह अब तक हजार से ज्यादा लोगों की जान बचा चुके हैं और अपनी आमदनी का 30% इस मुहिम में खर्च करते हैं उन्होंने बताया कि हर महीने 30 से 35 हजार रुपए मेरे इस काम में खर्च होते हैं क्योंकि मैं घायलों के परिवार का इंतजार नहीं करता।

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