Athletics Paralympics India: एथलेटिक्स पैरालंपिक्स में रुबीना फ्रांसिस के शानदार प्रदर्शन की बदौलत Athletics Paralympics के तीसरे दिन भारत की झोली में पांचवां मेडल आया। उन्होंने महिला 10 मीटर एयर पिस्टल एसएच1 फाइनल में कांस्य पदक जीता है, हालां​कि क्वालिफिकेशन में वह सातवें स्थान पर थीं, लेकिन फाइनल में दमदार प्रदर्शन किया। निशानेबाजी में अवनि लेखरा, मोना और मनीष नरवाल के बाद रुबीना ने चौथा पदक जीता है। 

टोक्यों पैरालंपिक की निराशा को पेरिस में हराया

25 वर्षीय रुबीना क्वालिफिकेशन दौर में 556 के स्कोर के साथ सातवें पायदान पर थीं। लेकिन अंत में उनकी तेजी काम आई और वह टॉप तीन शूटर्स में अपनी जगह बनाने में कामयाब रहीं। तीन साल पहले इसी तरह टोक्यो पैरालंपिक के क्वालिफाइंग दौर में भी वह सातवें नंबर पर थीं। लेकिन तब टॉप थ्री में जगह नहीं बना सकी थी। इस बार उन्होंने टोक्यो की हार को पेरिस में पीछे छोड़ दिया। आपको बता दें कि एसएच1 वर्ग में वही पैरा निशानेबाज शामिल होते हैं, जो बिना किसी परेशानी के व्हीलचेयर या चेयर पर बैठकर पिस्टल संभाल सकें या​ फिर खड़े होकर निशाना लगा सकें।

कौन हैं रुबीना फ्रांसिस?

मध्य प्रदेश के जबलपुर की रहने वाली रुबीना फ्रांसिस जन्म से ही दिव्यांग हैं। उनके दोनों पैर कमजोर और मुड़े हुए हैं। पिता साइमन फ्रांसिस बाइक रिपेयरिंग का काम करते थे। परिवार की माली हालत खराब थी। इसकी वजह से रुबीना को शारीरिक दिक्कतों की वजह से उपजी मुश्किलों के साथ फाइनेंशियल क्राइसिस भी झेलनी पड़ी।

2014 में शुरू किया था शूटिंग कॅरियर

इतनी दिक्कतों के बाद भी रुबीना ने साल 2014 में शूटिंग कॅरियर शुरू किया। जबलपुर स्थित गगन नारंग शूटिंग एकेडमी के ट्रॉयल कैंप में शामिल हुईं, जो सेंट एलॉयसिस स्कूल की तरफ से लगाया गया था। उसमें 47 का स्कोर किया। 15 दिन की ट्रेनिंग के लिए चयन हुआ और फिर एक साल की ट्रेनिंग ली।

नगर निगम ने तोड़ी पिता की दुकान, परिवार ने किया भूख का सामना

रुबीना के जीवन की गाड़ी लाइन पर आ ही रही थी कि तभी परिवार पर दुख का पहाड़ टूट पड़ा। जबलपुर के ग्वारीघाट रोड पर पिता साइमन की बाइक रिपेयरिंग की दुकान नगर निगम दस्ते द्वारा तोड़ दी गई। परिवार चलाने का एकमात्र साधन वही दुकान थी। ऐसे में एक समय परिवार को खाने की दिक्कतों भी हुईं। भूख का सामना करना पड़ा। 

छोड़नी पड़ी ट्रेनिंग, एमपी स्टेट शूटिंग एकेडमी से शुरू हुआ नया सफर

इसका असर रुबीना की ट्रेनिंग पर पड़ा। उनके एकेडमी का खर्च निकालना भी मुश्किल हो गया। पिता ने परिवार चलाने के लिए घर-घर जाकर बाइक रिपयेरिंग का काम करना शुरू कर दिया। लेकिन उनका वह प्रयास भी अपर्याप्त था। रुबीना के भाई एलेक्जेंडर ने पढ़ाई के साथ पीओपी का काम शुरू किया। फिर भी वह उनके एकेडमी की फीस पूरी नहीं कर सकें। नतीजतन, रुबीना को एकेडमी छोड़नी पड़ी। फिर एमपी स्टेट शूटिंग एकेडमी भोपाल में एडमिशन मिला और बैंकॉक तक अपने खेल का जौहर दिखाया। राष्ट्रीय स्तर की प्रतियोगिताओं में 6 गोल्ड और एक सिल्वर मेडल हासिल कर चुकी हैं। कई इंटरनेशनल टूर्नामेंट में भी शामिल हुईं। दुबई में इंटरनेशनल इवेंट में शामिल होने वाली सबसे कम उम्र की शूटर थीं।

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