राजस्थान. जयपुर के अनिल थडानी को पेड़ पौधे लगाने के लिए जमीन की जरूरत नहीं पड़ती। पक्का फर्श हो या घर की छत अनिल कहीं भी खेती किसानी कर लेते हैं। अनिल की नर्सरी है पौधशालम जिसमे  साठ हज़ार से ज्यादा पौधे हैं। जयपुर और पटना में अनिल ने 200 घरों को नर्सरी में तब्दील कर दिया है। माय नेशन हिंदी से अनिल थडानी ने अपने विचार साझा किए।

कौन है अनिल थडानी
अनिल जयपुर के रहने वाले हैं उनकी स्कूलिंग जयपुर से हुई है। अजमेर से उन्होंने एग्रीकल्चर में ग्रेजुएशन किया है और इलाहाबाद से एग्रीकल्चर में मास्टर किया है। अनिल के पिता गौशाला में काम करते हैं जबकि उनकी मां हाउसवाइफ है। 2018 में अनिल ने विवेकानंद ग्लोबल यूनिवर्सिटी में 1 साल तक असिस्टेंट प्रोफेसर के रूप में काम किया लेकिन नौकरी छोड़कर अपनी खुद की नर्सरी पौधशालम शुरू किया।

पढ़ाई के दौरान खेती से लगाव हो गया

अनिल कहते हैं हमारे परिवार में कोई भी खेती किसानी नहीं करता लेकिन मैंने एग्रीकल्चर में मास्टर्स किया है। मेरे पास खेती किसानी के लिए जमीन भी नहीं थी लेकिन  दिलचस्पी थी इसलिए पौधों पर काम करना शुरू कर दिया। मैंने कृषि में ग्रेजुएशन और पोस्ट ग्रेजुएशन किया है और उसी के दौरान हमें गांव ले जाया जाता था, किसानों के साथ काम करने के लिए और काम को समझने के लिए। हमें जो प्रोजेक्ट मिलता था उसमें किसानी का भी काम होता था। पढ़ाई के दौरान मुझे खेती किसानी में इंटरेस्ट पैदा होने लगा लेकिन आमतौर पर मिडिल क्लास फैमिली में जब पढ़ाई कंप्लीट हो जाती है तो मां बाप चाहते हैं कि बच्चा सरकारी नौकरी कर ले तो मैंने भी वही किया लेकिन नौकरी करने में मुझे मजा नहीं आ रहा था इसलिए छोड़ दिया।

नौकरी छोड़ दिया अनिल ने

2020 में अनिल ने अपनी नौकरी छोड़ दिया और अपनी नर्सरी पौधशालम में काम करना शुरू किया। अमित ने अपने घर की दीवारों और छतों को नर्सरी में तब्दील कर दिया एक दर्जन से ज्यादा और आईटी के फूल और सब्जियां लगाईं अपनी नर्सरी में तैयार फूलों और सब्जियों के बीजों की मार्केटिंग शुरू कर दी।


क्या होती है हाइड्रोपोनिक फार्मिंग
अनिल ने अपनी नर्सरी पौधशालम की शुरुआत की जिसमें हाइड्रोपोनिक फार्मिंग सिखाया जाता है साथ ही किसानों को ऑर्गेनिक फार्मिंग पर सलाह देने का काम किया जाता है। अनिल कहते हैं इस तरह की फार्मिंग एडवांस फार्मिंग की कैटेगरी में आती है इस विधि में मिट्टी की कम जरूरत पड़ती है। अलग-अलग साइज के पाइप को मिलाकर एक आकार तैयार किया जाता है। इस फार्मिंग में एक साथ 48 पौधे लगाए जा सकते हैं और महज 10 से 12 हज़ार रुपये में इस तरह की खेती की शुरुआत की जा सकती है। अनिल अपनी नर्सरी और किसानों के लिए जैविक खाद और उर्वरक तैयार करने का काम करते हैं।

टेरेस गार्डन फार्मिंग
किचन गार्डन या टेरेस गार्डन का आजकल चलन ज्यादा चल गया है जिसको लेकर अनिल कहते हैं इसके लिए घर की छत या बरामदे की फर्श का भी इस्तेमाल किया जा सकता है इसके लिए प्लास्टिक बैग लिए जाते हैं उसमें खाद और मिट्टी डाल दिया जाता है और फिर उसने पौधा लगा दिया जाता है अगर आपके पास प्लास्टिक बैग नहीं है तो कोई पुराना डिब्बा या बाल्टी का भी इस्तेमाल कर सकते हैं। यह खेती फल और सब्जियों के लिए बेहतर होती है और इसमें आसानी से मिर्च टमाटर बैगन लगाया जा सकता है।

किसानों को देते हैं ट्रेनिंग
पढ़ाई के दौरान अमित ने जैविक तरीकों से अलग-अलग तरह की खाद, पॉटिंग मिक्स बनाना सीखा। वह किसानों को खेती के नए-नए तरीके, कीट प्रतिरोध आदि बनाने की ट्रेनिंग देते हैं उनके साथ अब तक 50 किसान जुड़ चुके हैं। अमित कहते हैं ट्रेनिंग से पहले हमें किसानों की समस्या को समझना पड़ता है। खेती के दौरान किसानो को  क्या परेशानी आ रही है फिर उस परेशानी का हल निकालने का हम प्रयास करते हैं। अमित जयपुर के एक सामाजिक संगठन सीकोइडिकोन से जुड़े हुए हैं जिसके अंतर्गत वह अलग-अलग समूहों में लगभग साडे 3000 किसानों को ट्रेनिंग दे रहे हैं।

कैसे करते हैं बिजनेस
अनिल कहते हैं हाइड्रोपोनिक फार्मिंग, टेरेस फार्मिंग और वर्टिकल फार्मिंग, इन तीन कांसेप्ट पर मैं काम कर रहा हूं जिनको अपने घर पर इन तीनों में से कोई भी सेटअप लगाना होता है हम उन्हें बीज से लेकर मेंटेनेंस तक की सर्विस प्रोवाइड कराते हैं।  जयपुर और पटना के 200 घरों को मैं नर्सरी में तब्दील कर चुका हूं। लोगों की डिमांड के हिसाब से मैं उनकी नर्सरी बनाता हूं।मैं अपने घर की छत पर भी इस तरह की फार्मिंग करता हूं पन्द्रह हज़ार खर्च करने के बाद महीने में साठ से सत्तर हजार रुपए कमा लेता हूं।

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