नई दिल्‍ली। महाराष्ट्र के अमरावती के एक छोटे से गांव के रहने वाले रविंद्र मेटकर ने सिर्फ 16 साल की उम्र में अपना बिजनेस शुरू किया था। कभी 5 रुपये दिहाड़ी पर काम करते थे। आज 60,000 रुपये डेली कमाते हैं। उन्हें शुरूआती दिनों में मुर्गी पालन यानी पोल्ट्री व्यवसाय के काम में काफी दिक्कतों का सामना करना पड़ा। पिता चपरासी थे, परिवार की माली हालत ठीक नहीं थी। ऐसी परिस्थिति में तमाम उतार-चढ़ाव से जूझते हुए रविंद्र मेटकर ने सक्सेस हासिल की।

कैसे मिली बिजनेस शुरू करने की प्रेरणा?

16 साल की उम्र में रविंद्र ने 5 रुपये दिहाड़ी पर एक केमिस्ट शॉप पर काम शुरू किया।  इतने कम पैसों में गुजारा संभव नहीं था। फिर भी उन्हीं परिस्थितियों के बीच रविंद्र ने अपनी पढ़ाई जारी रखी। पर्याप्त पैसे नहीं थे तो अक्सर पैदल ही कॉलेज तक जाते थे। उन्हें मुर्गी पालन व्यवसाय शुरू करने की प्रेरणा अपने पड़ोसी से मिली, क्योंकि पड़ोसी को मुर्गी पालन में सफलता मिली थी। बस वही देखकर रविंद्र ने भी पोल्ट्री बिजनेस शुरू करने का फैसला लिया।

पिता के PF के 3,000 रुपये से शुरू किया था काम

रविंद्र मेटकर ने साल 1984 में पोल्ट्री बिजनेस शुरू किया। पिता के प्रोविडेंट फंड (PF) से 3,000 रुपये लिए और 100 मुर्गियां लाएं। धीरे-धीरे उनकी मेहनत ने रंग दिखाना शुरू कर दिया। साल 1994 तक उनके पास मुर्गियों की संख्या 400 तक हो गई। एजूकेशन भी कन्टीन्यू रखा। साल 1992 में पोस्‍ट ग्रेजुएशन किया।

5 लाख रुपये लोन लेकर काम बढ़ाया

इसी बीच रविंद्र ने मैरिज की और अपना बिजनेस बढ़ाने के लिए अमरावती में एक एकड़ जमीन खरीदी। बैंक से 5 लाख रुपये लोन लेकर 4,000 मुर्गियों के लिए फार्म बनाया। उनका बिजनेस फल—फूल रहा था। कमाई के पैसों से घर को रिनोवेट कराया। धीरे-धीरे उनके फार्म में मुर्गियों की संख्या बढ़कर 12,000 तक हो गईं।

पोल्ट्री बिजनेस में इन चुनौतियों का करना पड़ा सामना?

उनका बिजनेस ठीक-ठाक चल रहा था। उसी दरम्यान साल 2006 में भारत में बर्ड फ्लू फैला। जिसने पोल्ट्री उद्योग को बुरी तरह डैमेज कर दिया। रविंद्र का भी नुकसान हुआ। 16,000 ब्रॉयलर कम कीमत में बेचने पड़ें। उनके लिए यह बड़ा झटका था। पर उन्होंने धैर्य नहीं खोया। 

अब 50 एकड़ में फार्म, 1.8 लाख मुर्गियां

रविंद्र ने साल 2008 में फिर 25 लाख रुपये का लोन लिया और 20,000 मुर्गियों के साथ बिजनेस को आगे बढ़ाया। अब उनका ​पोल्ट्री फार्म 50 एकड़ में तब्दील हो चुका है। 1.8 लाख मुर्गियों के साथ बिजनेस फल-फूल रहा है। डेली 60,000 तक कमाई हो जाती है।

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