मुंबई. ज़िंदगी में कभी कभी ऐसा वक़्त आता है जब इंसान को लगता है सब कुछ खत्म हो गया, हताश निराश ज़िंदगी से हार कर मौत को भी लगाने की कोशिश करते हैं लेकिन इनमे कुछ ऐसे भी होते हैं जो मुश्किल वक़्त में ज़िंदगी की जंग जीतने का ढृढ़ निश्चय करते हैं, और विजय पताका लहराते हैं। 

300 रूपये में दस लोगों का भरण पोषण 
महाराष्ट्र के अकोला ज़िले में साल 1961 में कल्पना सरोज का जन्म हुआ, उनके पिता पुलिस विभाग में कांस्टेबल थे, तनख्वाह महज़ 300 रूपये थी, इस वेतन से कल्पना के दो भाई तीन बहन दादा दादी और चाचा का खर्च चलता था, और पूरा परिवार पुलिस क्वार्टर में रहता था।  12 साल की उम्र में कल्पना की शादी उनसे दस साल बड़े व्यक्ति से कर दी गयी, ससुराल में उन पर अत्याचार होने लगे,और विवाह के 6 महीने बाद कल्पना के पिता ने जब अपनी बेटी की दुर्दशा देखी तो बेटी को वापिस घर ले आये लेकिन मायके में बेटी को बैठा देख गाँव के लोगों ने बहिष्कार करना शुरू कर दिया।

आत्महत्या का प्रयास 
लोगों के ताने से परेशान हो कर कल्पना ज़िंदगी से निराश हो चुकी थीं, उन्होंने बाजार से खटमल मारने वाली दवा की तीन बोतल खरीदी और एक साथ पी गयीं, उनकी बुआ जब किचन में पहुंची तो देखा की कल्पना के मुंह से झाग निकल रहा है, घर के लोग उन्हें डॉक्टर के पास लेकर भागे, कल्पना की क्रिटिकल कंडीशन देख कर उनका बचना नामुमकिन था लेकिन ज़िंदगी ने उन्हें एक मौका दिया। 

मुंबई में मिला दो रूपये का काम 
कल्पना के पिता पुलिस में थे तो उन्होंने भी कोशिश किया उन्हें पुलिस में नौकरी मिल जाए लेकिन अशिक्षित होने के कारण नौकरी नहीं मिल सकी। 16 साल की उम्र में कल्पना मुंबई पहुंची जहाँ उनके चाचा ने एक कपड़े की मिल में उन्हें काम दिला दिया, मिल में उन्हें धागा काटने का काम मिला जिसके उन्हें  हर रोज़ 2 रूपये मिलते थे, कल्पना को सिलाई भी आती थी तो उन्होंने सिलाई मशीन पर काम करना शुरू कर दिया और इसके उन्हें सवा दो सौ रूपये मिलने लगे और ज़िंदगी पटरी पर आने लगी।  

बहन की मौत ने ज़िंदगी बदली 
सब कुछ ठीक चल रहा था तभी कल्पना की बहन की तबियत खराब हुई इलाज के पैसे न होने की वजह से उनकी मौत हो गयी, इस घटना ने कल्पना को तोड़ कर रख दिया और उन्होंने तय कर लिया की ज़िंदगी में बेतहाशा पैसा कमाना है।  

पचास हज़ार सरकारी लोन लिया 
कल्पना बिज़नेस करना चाहती थी, लेकिन पैसे नहीं थे इसलिए उन्होंने सरकार से लोन लेने की कोशिश की, लोन लेने में भी तमाम दिक्क्तें आने लगी तो कल्पना  ने एक संगठन बनाया जो लोगों को लोन दिलाने और सरकारी योजनाओ के बारे बताता था। धीरे धीरे इस संगठन  को लोग जानने लगे और कल्पना की पहुँच ऊंचे लोगों तक पहुँचने लगी,इसी दौरान कल्पना ने महाराष्ट्र सरकार  द्वारा महात्मा ज्योति बा फुले योजना के तहत पचास हज़ार का लोन लिया और फर्नीचर का  बिज़नेस शुरू किया।  बुटीक खोला , एक ब्यूटी पार्लर खोला और मुंबई में अपना नाम पैदा कर लिया।  

और फिर किया दूसरी शादी 
कल्पना ने एक स्टील व्यापारी से शादी किया जिससे उनको एक बेटी और बेटा हुआ, 1989 में उनके पति  का देहांत हो गया , कल्पना की ज़िंदगी रफ़्तार पकड़ चुकी थी, उसी वक़्त सुप्रीम कोर्ट ने 17 साल से बंद पड़ीं कमानी ट्यूब्स कम्पनी का मालिकाना हक वर्कर्स को दे दिया।  ये वर्कर्स कल्पना  के पास पहुंचे मदद के लिए और साल 2000 में कल्पना ने कम्पनी के सारे क़र्ज़ और विवाद मुक्त कराए , साल 2006 में कल्पना कम्पनी की मालिक बन गयी और  आज उस कम्पनी का सालाना टर्न ओवर 3 हज़ार करोड़ से ऊपर है । 

कई कम्पनी की मालकिन 
कल्पना आज कई कम्पनी की मालकिन हैं, जिन  सड़को पर कल्पना पैदल चलती थीं, बसों में धक्के खाती थी आज उसी मुंबई में उनके नाम से दो सड़क है, कल्पना को पदम् श्री और राजीव गाँधी सम्मान से सम्मनित किया गया इसके अल्वा भी उन्हें देश विदेश में कई सम्मान मिले हैं। 

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