अहमदाबाद, गुजरात के स्लम एरिया में रहने वाले दिव्यांग पिता हिम्मत भाई रेलवे स्टेशन पर लॉक बेचते थे। मां साड़ी का काम हाथ से करके घर चलाती थी। माई नेशन हिंदी से बात करते हुए चंद्रेश बायड कहते हैं कि शुरुआती जिंदगी ऐसी थी कि घर में सबसे सस्ता खाना खिचड़ी ही मिलती थी।
अहमदाबाद। अहमदाबाद, गुजरात के स्लम एरिया में रहने वाले दिव्यांग पिता हिम्मत भाई रेलवे स्टेशन पर लॉक बेचते थे। मां साड़ी का काम हाथ से करके घर चलाती थी। माई नेशन हिंदी से बात करते हुए चंद्रेश बायड कहते हैं कि शुरुआती जिंदगी ऐसी थी कि घर में सबसे सस्ता खाना खिचड़ी ही मिलती थी। ऐसी परिस्थितियों में टी-स्टॉल खोलने के लिए 35 हजार रुपये इकट्ठा करना मुश्किलों भरा था।
तीन महीने में लगा झटका, संभले और अब 4 देशों तक बिजनेस
चंद्रेश बायड कहते हैं कि सिर्फ तीन महीने बाद जब अमेरिकी कम्पनी स्टारबक्स (दुनिया भर में कैफे चलाने वाली सबसे बड़ी कम्पनी) का नोटिस आया तो ऐसा लग रहा था कि जॉब ही कर लो। फिर सोचा कि यदि हमारे देश में किसी को टी-स्टॉल के बारे में पता नहीं है और यह बात यूएस तक गई है तो कुछ करंट है, जो हमें लेकर आगे जाएगा। फिर उन्होंने अपने टी-स्टॉल का नाम बदलकर हेली एंड चिली कैफे किया। आज उनके 75 से ज्यादा आउटलेट हैं। कनाडा में कैफे खुल चुका है। यूके, थाईलैंड और यूएस में कैफे खोलने की प्लानिंग चल रही है।
कॉफी के कप-बर्गर पर कस्टमर का नाम
चंद्रेश बायड कहते हैं कि हम लोगों ने दुनिया की पहली ऐसा तकनीक विकसित की है। ग्लास पर इंकलेस तरीके से नाम लिखकर देते हैं। वह आपको प्रिंटेड ही फील होता है। हर कस्टमर का नाम उसके काॅफी के ग्लास पर होता है। बर्गर पर भी कस्टमर का नाम लिखा होता है। उसमें किसी भी तरह के केमिकल या इंक का यूज नहीं किया जाता है। इस तकनीक को बर्निंग इफेक्ट कहते हैं। अपने कैफे में डेढ़ फीट लंबी फ्रेंच फ्राइज सर्व करते हैं।
फ्रेंचाइजी देने का इकोनॉमिक मॉडल
चंद्रेश बायड कहते हैं कि कोरोना महामारी के समय लॉकडाउन लगा था। उस समय कैफै का काम प्रभावित हुआ था। उस दौरान बिजनेस में काफी उतार-चढ़ाव भी आएं। तब कैफे में सिर्फ चाय-काफी सर्व हुआ करती थी। आज हमारे कैफे में 150 से ज्यादा वैराइटी है। हम लोग आंकड़ो पर नहीं जमीनी हकीकत पर काम करते हैं। कैफे की फ्रेंचाइजी भी इकोनॉमिक मॉडल पर देते हैं। किसी फ्रेंचाइजी होल्डर से रॉयल्टी नहीं लेते हैं, बल्कि वन टाइम इंवेस्टमेंट पर काम करते हैं।
सेना के जवानों के लिए खाना फ्री
चंद्रेश कहते हैं कि राजकोट के पास एक फ्रेंचाइजी है। वहां साल के 365 दिन अनाथ आश्रम की कन्याओं, एयरफोर्स, आर्मी और नेवी के जवानों को फ्री भोजन दिया जाता है। हम लोगों ने यह इनिशिएटिव भी शुरु किया है। सेना के जवान दिन में आएं या रात में। उन्हें फ्री खाना सर्व होता है।
सरकारी स्कूल में पढ़ें, उधार लेकर एमबीए
चंद्रेश बायड का जीवन इतना आसान नहीं था। असारवा (अहमदाबाद) के एक सरकारी स्कूल से 1 से 7 तक की पढ़ाई की। फिर पास ही स्थित एक उच्चतर माध्यमिक विद्यालय से 12वीं तक पढ़ें। उच्च शिक्षा के लिए ऐसी कंट्री का चयन किया। जहां एजूकेशन सस्ती हो। लोगों से पैसा उधार लिया और साइप्रस से एमबीए किया। उसी दौरान सबके पैसे भी चुकाए। भारत लौटे तो कॉल सेंटर में 3 महीने काम किया। पर उनका मन नहीं लगा तो एक काम्प्लेक्स में चाय की टपरी शुरु कर दी। मुंबई के डिब्बे वालों की तर्ज पर चाय की डिलीवरी का ट्रेंड सेट किया और देखते ही देखते उनकी चाय की टपरी चल पड़ी। 3 महीने में 600 क्लाइंट बनें। उसी दरम्यान स्टारबक्स ने नोटिस थमा दिया। वही उनके जीवन का टर्निंग प्वाइंट भी बना।
Last Updated Oct 18, 2023, 10:51 AM IST