देवरिया। ज्यादातर लोग खेती को घाटे का सौदा मानते हैं। यूपी के देवरिया के रहने वाले कमलेश मिश्रा ने जब खेती शुरू करने का फैसला किया तो लोगों ने उन्हें फॉर्मिंग करने से मना किया। माय नेशन हिंदी से बात करते हुए वह कहते हैं कि शुरुआत में लोग खेती में इतना पैसा लगाने के लिए मना कर रहे थे। घर वाले, रिश्तेदार, पड़ोसी भी कह रहे थे कि यह काम क्यों कर रहे हो? कमलेश ग्रेजुएशन के बाद कई जगहों पर नौकरी कर चुके थे और अंत में खेती में हाथ आजमाने का पक्का निर्णय कर आगे बढ़े थे। इसलिए उन्होंने किसी की बात पर ध्यान नहीं दिया। एक एकड़ एरिया में पॉलीहाउस लगाकर रंग-​बिरंगे शिमला मिर्चा और बीजरहित खीरे की फसल लगाई। पांच लाख रुपये की लागत आई। साल भर में 30 लाख रुपये कमाई कर चुके हैं।

कैसे आया पॉलीहाउस फॉर्मिंग का आइडिया?

कमलेश कहते हैं कि इं​टनेट से यह काम करने का आइडिया मिला। उन्होंने जाना कि पॉलीहाउस के जरिए बेमौसमी सब्जियों का उत्पादन संभव है और उससे अच्छी आमदनी की जा सकती है। अब उनके सामने बड़ा सवाल था कि पॉलीहाउस कैसे लगाया जाए? उसमें सब्जियों का उत्पादन कैसे शुरु किया जाए? इस बारे में जानकारी के लिए वह राजस्थान और पश्चिमी यूपी के उन गांवों तक गए। जहां पॉलीहाउस से खेती कर किसान अच्छा मुनाफा कमा रहे थे। 

कैसे शुरू की खेती?

कमलेश कहते हैं कि मैंने पढ़ा था कि यह टे​क्निक पहले इजरायल की थी और भारत में सबसे पहले राजस्थान में आई। पॉलीहाउस फॉर्मिंग के मामले में राजस्थान का एक गांव गुड़ा कुमावतान मशहूर है, उसे मिनी इजरायल कहा जाता है। वहां के किसानों से मिला। एक-ए​क किसान ने 20-20 पॉलीहाउस लगा रखे हैं। राजस्थान में पानी की कमी है। उनकी अपेक्षा हमारे यहां पानी भी है और उपजाऊ मिट्टी भी। मध्य प्रदेश और पश्चिमी यूपी के किसानों से भी मिला, बारीकियां समझी। जिले के उद्यान विभाग के कार्यालय से मदद के लिए सम्पर्क साधा।

2022 में लगाया पॉलीहाउस का स्ट्रक्चर

उन्होंने मार्च 2022 में 43 लाख रुपये की लागत से पॉलीहाउस स्ट्रक्चर लगाया। उसके बदले यूपी गवर्नमेंट की तरफ से उनको 20 लाख रुपये की सब्सिडी मिली। कमलेश कहते हैं कि खीरा और शिमला मिर्च की खेती की। पिछले साल उन्होंने सब्जियों की खेती में करीबन 5 लाख रुपये इंवेस्ट किए। 30 लाख रुपये की कमाई हुई। पॉलीहाउस में एक साल में खीरे की 3 फसल उगाते हैं। साल भर में शिमला मिर्च की एक फसल तैयार कर बाजार में बेचते हैं, जो 150 रूपये किलो तक बिक जाती है। खास यह है कि उन्हें अपनी फसल बेचने के लिए मंडी तक नहीं जाना पड़ता है, बल्कि अब उनके पॉलीहाउस से ही खीरे और शिमला मिर्च की बिक्री हो जाती है।

मल्च तकनीक से निराई-गुड़ाई की जरूरत नहीं

कमलेश का पॉलीहाउस कृषि की उन्नत तकनीकों से लैस है। ड्रिप सिंचाई, स्प्रिंकलर और फॉगर का भी यूज किया जाता है। जमीन पर अल्ट्रावायलेट प्रोटेक्टेड सीट बिछाकर मल्च तकनीक से खीरा उगाते हैं। इस विधि की खासियत है कि इसमें निराई-गुड़ाई की जरूरत नहीं पड़ती। अब लोग उनका पॉलीहाउस देखने आते हैं। आसपास के किसान उनकी खेती देखकर प्रेरित भी हो रहे हैं। वह किसानों को पॉलीहाउस फॉर्मिंग के लिए प्रेरित भी कर रहे हैं।

पॉलीहाउस में प्राकृतिक तरीके से खेती

पॉलीहाउस में साल भर सब्जी, फूल या फल का उत्पादन संभव है, क्योंकि पॉलीहाउस में जलवायु परिस्थितियां नियंत्रित होती हैं। पूरा स्ट्रक्चर कवर्ड होता है। इससे ओलावृष्टि, बारिश और चिलचिलाती गर्मी में भी फसल सुरक्षित रहती है। कमलेश अपने पॉलीहाउस में गोमूत्र, हल्दी, नीम, वर्मी कम्पोस्ट का यूज करते हैं। प्राकृतिक तरीक से बनाए गए लिक्विड स्प्रे करते हैं। उससे फसल कीट-पतंगों से सुरक्षित रहती है। फसल की कटाई और पौधों की छंटाई के दौरान मजदूरों की संख्या बढ़ जाती है।

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