जानें डॉ. ज्वाला प्रसाद की प्रेरणादायक कहानी, जिन्होंने बिहार के छोटे से गांव से निकलकर ऑक्सफोर्ड यूनिवर्सिटी से सम्मान प्राप्त किया। गरीबी और कठिनाइयों के बावजूद, उन्होंने महात्मा गांधी लीडरशिप अवार्ड जीता।
Success Story: बिहार के चंपारण के छोटे से गांव से निकलकर लंदन के ऑक्सफोर्ड यूनिवर्सिटी से अवार्ड पाने तक का सफर तय किया। कभी दो वक्त की रोटी के भी लाले थे। कठिन परिस्थितियों का डटकर मुकाबला करने वाले डॉ. ज्वाला प्रसाद की कहानी न केवल प्रेरणादायक है, बल्कि यह साबित भी करती है कि यदि हौसले बुलंद हों तो इंसान किसी भी हालात में अपने सपनों को पूरा कर सकता है। आपको बता दें कि डॉ. ज्वाला प्रसाद को हाल ही में महात्मा गांधी लीडरशिप अवार्ड से नवाज़ा गया है। वह गांधी स्मृति एवं दर्शन समिति के निदेशक के पद पर कार्यरत हैं, जो संस्कृति मंत्रालय के अधीन एक स्वायत्त संस्था है।
आर्थिक दिक्कतों से टूटे नहीं, 10वीं में टॉपर
डॉ. ज्वाला प्रसाद का बचपन बेहद कठिनाइयों में बीता। एक समय ऐसा था जब उनके पास भोजन की भी पर्याप्त व्यवस्था नहीं थी, लेकिन उनके माता-पिता ने कभी हार नहीं मानी। पिता एक किसान थे और माता-पिता दोनों ही शिक्षित नहीं थे, फिर भी उन्होंने अपने बच्चों को अच्छी एजूकेशन दिलाने की हर संभव कोशिश की। डॉ. प्रसाद ने अपनी प्रारंभिक शिक्षा सरस्वती विद्या मंदिर से पूरी की। आर्थिक स्थिति बेहद कमजोर थी। पर पढ़ाई पर उसका असर नहीं पड़ने दिया। 10वीं क्लास के टॉपर स्टूडेंट थे।
हॉस्टल और मैस की फीस देने के भी नहीं थे पैसे
दसवीं के बाद हॉयर एजूकेशन के लिए पटना के प्रतिष्ठित साइंस कॉलेज में दाखिला लिया। यहां भी उनके सामने अनेक आर्थिक चुनौतियां आईं। हॉस्टल और मैस की फीस देने में परेशानी होती थी और दो वक्त की रोटी जुटाना भी एक चुनौती बन गया था। लेकिन, उनके आत्मविश्वास ने कभी उन्हें टूटने नहीं दिया। अपनी पढ़ाई को प्रॉयोरिटी दी और सभी कठिनाइयों का सामना करते हुए आगे बढ़ते गए।
दिल्ली यूनिवर्सिटी के हिंदू कॉलेज में दाखिला
पटना साइंस कॉलेज के बाद डॉ. ज्वाला प्रसाद ने दिल्ली यूनिवर्सिटी के हिंदू कॉलेज में दाखिला लिया। पढ़ाई के साथ-साथ विभिन्न सरकारी पदों पर काम किया। अपनी मेहनत और लगन से वह कई अहम पदों पर पहुंचे। डॉ. ज्वाला प्रसाद सिर्फ अपने लिए ही नहीं, बल्कि अपने परिवार के लिए भी एक प्रेरणा बने। उन्होंने अपने भाई-बहनों को भी दिल्ली बुलाकर उनकी पढ़ाई में मदद की। उनका एक भाई अब जज है और एक बहन टीचर बन चुकी हैं। उनके प्रयासों से आज पूरा परिवार गर्व महसूस करता है।
ये भी पढें-पैर खोए, हौसला नहीं: तैराकी में मिसाल बने शम्स आलम
Last Updated Nov 14, 2024, 1:56 PM IST