ऋतुपर्णा का शरीर मर्दों का था लेकिन उनका दिल और आत्मा औरतों की थी। किशोरावस्था में उनके महिलाओं वाले हाव-भाव के कारण उनका मजाक बनाया जाता था स्कूल में उनका कोई दोस्त नहीं था लेकिन उन्होंने दोस्ती किया किताबों से और आज अपने
असम की ऋतुपूर्णा नेओग का बचपन हर बच्चे की तरह प्यारा था लेकिन टीन एज मे उन्हें तंग किया जाने लगा क्योंकि उनके हाव भाव लड़कियों जैसे थे। स्कूल में उनका कोई दोस्त नही था सब उनको ताने देते थे। ऋतुपूर्णा ने किताबों को अपना दोस्त बनाया और यही किताबें आगे चलकर उनके लिए एक ऐसा स्तंभ बन गए जिसके जरिए उन्होंने फ्री की लाइब्रेरी खोल दिया। ऋतुपूर्णा नेओग के बारे में जानते हैं डिटेल में।
कौन है ऋतुपूर्णा
ऋतुपूर्णा एक ट्रांस वुमन हैं स्टोरीटेलर है, एजुकेटर है और जेंडर राईट एक्टिविस्ट है। ऋतुपूर्णा अपनी संस्था गम फाउंडेशन के जरिए गांव में फ्री लाइब्रेरी बना रहे हैं ताकि हर बच्चे को शिक्षा मिल सके। इसके साथ-साथ वह जेंडर डिस्क्रिमिनेशन पर काम कर रही हैं। 2015 में डाटा इंस्टीट्यूट आफ सोशल साइंसेज गुवाहाटी से पढ़ाई किया और एक एनजीओ अकाउंट फाउंडेशन की स्थापना किया।
इंटरवल के बाद जाना पड़ता था टॉयलेट
ऋतुपूर्णा को उनकी बॉडी लैंग्वेज और हाव-भाव के लिए स्कूल में तंग किया जाता था। उन्हें टॉयलेट जाने के लिए लंच तक का इंतजार करना पड़ता था क्योंकि यही एक मात्र ऐसा समय होता था जब क्लास के अन्य बच्चे वहां नहीं होते थे इस वजह से वह हमेशा दोपहर के खाने के बाद टॉयलेट जाती थी और फिर क्लास में जाती थी। स्कूल में उनका समय ज्यादा लाइब्रेरी में गुजरता था, क्योंकि वहां उनका कोई परेशान करने वाला नहीं होता था।
परिवार ने दिया साथ
ऋतुपूर्णा के माता-पिता ने उनका हर मुश्किल वक्त में साथ दिया साथ ही उन्हें पढ़ाई के लिए प्रेरित करते रहे। ऋतुपूर्णा भी समझ चुकी थी कि शिक्षा सबसे बड़ी ताकत है इसलिए उन्होंने यह तय किया कि अपने गांव के हर बच्चे को शिक्षित करेंगे और साथ ही उन्होंने गांव में फ्री लाइब्रेरी खोलने का इरादा किया। ऋतुपूर्णा ने असम की कुछ सोशल वर्क सोसाइटीज के साथ काम करना शुरू किया साथ में उन्होंने नौकरी भी किया और अपनी तनख्वाह से हर महीने थोड़ी-थोड़ी किताबें खरीदने लगी लेकिन साल 2020 में लॉकडाउन लग गया।
सोशल मीडिया आया काम
लॉक डाउन के समय ऋतुपूर्णा ने ऑनलाइन स्टोरी टेलिंग प्रोग्राम शुरूआत किया और लोगों को कहानी सुनना शुरू किया उनका यह प्लान वर्क कर गया लोगों को उनकी कहानी पसंद आने लगी इसके बाद उन्होंने 600 किताबें लेकर गांव में पहली फ्री लाइब्रेरी की शुरुआत कर दिया। आज उनकी लाइब्रेरी में 1200 से ज्यादा किताबें हैं। वही उनके गांव में दो फ्री लाइब्रेरी है। ऋतुपूर्णा समय निकालकर जेंडर डिस्क्रिमिनेशन पर लोगों को लेक्चर देती हैं घूम-घूम कर स्टोरी टेलिंग के जरिए लोगों को अच्छे संदेश देती हैं। अब तक वह 40 से ज्यादा यूनिवर्सिटीज और इंस्टिट्यूट में 10000 से ज्यादा लोगों को जेंडर डिस्क्रिमिनेशन और किताबों के प्रति लोगों को जागरुक कर चुकी हैं।
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Last Updated Feb 11, 2024, 11:51 PM IST