जयपुर। महज 8 साल की उम्र में फीस न भर पाने की वजह से स्कूल से निकाल दिया गय। ₹11.50 से अपनी दुकान शुरू की थी और अब करोड़ों का कारोबार खड़ा कर लिया है। राजस्थान के जयपुर के एक छोटे से गांव बेगरू के रहने वाले राधा गोविंद की जर्नी उतार-चढ़ाव से भरी रही। कई बार सफलता हाथ से फिसली भी। पर उन्होंने कभी हार नहीं मानी। अब उनकी कम्पनी Oho Jaipur का सालाना 40 से 50 करोड़ का टर्नओवर है। 150 लोगों को रोजगार दे रखा है। आइए जानते हैं उनकी संघर्षों से भरी सफलता की कहानी।

ब्लॉक प्रिंटिंग का पुश्तैनी कारोबार ठप

दरअसल, राधा गोविंद के परिवार का ब्लॉक प्रिंटिंग का पुश्तैनी कारोबार था, जो तकरीबन 500 साल से चल रहा था। कपड़ो पर छपाई के काम को उनके पिता आगे बढ़ा रहे थे। पर किस्मत को कुछ और ही मंजूर था। बिजनेस में नुकसान शुरू हो गया तो परिवार की आर्थिक स्थिति बिगड़ गई।  एक इंटरव्यू में राधा गोविंद कहते हैं कि उन्होंने 7-8 साल की उम्र में अपनी मां को दूसरों के घर से राशन मांगते देखा है। घर में खाने तक की तंगी हो गई।

फीस न भर पाने की वजह से स्कूल से निकाले गए

वह कहते हैं कि महज 8 साल की उम्र में फीस न भर पाने की वजह से स्कूल से निकाल दिया गया था। तब घर से भाग गया पर जब लौटा तो मां देखकर बहोश हो गई। उसके बाद तय कि अब जीवन में कुछ बड़ा करना है। गांव में ही घर-घर न्यूज पेपर डालने का काम शुरू किया। महज 11.50 रुपये से घर के बाहर दुकान खोली। ताकि खुद पढ़ पाऊं और घर की आर्थिक तंगी दूर कर सकूं। 12वीं में सातवीं और आठवीं के बच्चों को टयूशन पढ़ाना शुरू किया। उसी समय किसी ने बताया कि प्रशासनिक सेवा की जॉब बहुत अच्छी होती है तो एक गवर्नमेंट कॉलेज में एडमिशन लिया।

मुंबई एग्जीबिशन में किया काम

राधा गोविंद एलएलबी के टॉपर स्टूडेंट थे। पर फाइनल ईयर में उनके ताऊ के लड़के ने पढ़ाई की वजह से सुसाइड कर लिया। जिसकी वजह से वह मानसिक परेशानी से घिर गए। उसी दरम्यान परिवार ने उनकी सगाई करा दी। शादी से पहले वह मुंबई गए और एक एग्जीबिशन किया था। उनके पास स्टॉल लगाने वाले नितिन से उनकी दोस्ती हो गई। उसने मुंबई में काम के स्कोप के बारे में बताया। फिर गांव लौटे पर मन में मुंबई में बिजनेस करने का ख्वाब चलता रहता था। 

बोरिवली स्टेशन पर सोएं, सबसे मांगते थे काम

फाइनली राधा गोविंद एक दिन मुंबई के लिए निकल पड़े। वहां बोरिवली स्टेशन पर सोएं। जिसको भी अच्छे कपड़ों में देखते थे। उससे काम मांगने लगते थे। दो दिन गुजर गए पर कोई रिस्पांस नहीं मिला तो अपने दोस्त नितिन को फोन किया और फिर उसने एक स्टॉल पर रहने की अरेंजमेंट किया। वहीं दिन में काम भी किया करते थे। कुछ दिन काम करने के बाद जब गांव लौटें तो उनकी शादी करा दी गई और शादी के सात से आठ दिन बाद मुंबई लौट गए।

पत्नी ने बढ़ाई हिम्मत, बोरिवली में एग्जीबिशन

बरहाल, पत्नी ने उनकी सारी स्थिति समझी तो हिम्मत बढ़ाया। दोनों ने मिलकर बोरिवली में ही एग्जीबिशन शुरू किया, जो समय के साथ एक स्टोर में तब्दील हो गया। उसका नाम 'ओहो जयपुर' रखा। धीरे—धीरे चार दुकानें हो गईं। लोगों की फ्रेंचाइजी के लिए डिमांड आने लगी। लोन लेकर एक बढ़िया फर्नीचर के साथ जूहू में स्टोर शुरू किया। 

स्टोर खुलने के पांच दिन बाद लॉकडाउन

राधा गोविंद कहते हैं कि स्टोर की ओपनिंग के लिए मम्मी पापा को बुलाया। उसके पांच दिन बाद कोविड का पहला लॉकडाउन लग गया। कोविड खत्म होने के बाद फिर बिजनेस ने धीरे धीरे स्पीड पकड़ी। चौथी दुकान खुलने के बाद कुछ दिन बाद दूसरा लॉकडाउन लग गया। पर उन्होंने हार नहीं मानी। धैर्य से काम लिया। अब गांव में ही एक फैक्ट्री डाली है। वहां की 40 से 50 महिलाओं को रोजगार दिया है। राधा गोविंद कहते हैं कि कभी 11.50 रुपये से बिजनेस शुरू किया था। आज 40 से 50 करोड़ का टर्नओवर है। 4 स्टोर मुंबई में हैं। 150 से 200 लोगों को रोजगार दिया है। 

ये भी पढें-Success Story: न ग्रेजुएट न MBA, सिर्फ 10वीं पास भारतीय अमेरिका में बना करोड़पति...