फिरोजाबाद: उत्तर प्रदेश के फिरोजाबाद जिले के रहने वाले सिंगराज यादव ने शुरूआती दिनों में पढ़ाई के साथ घर-घर जाकर साबुन बेचा। उसमें सक्सेस नहीं हुए तो सरकारी नौकरी की तरफ फोकस किया। फिर भी सफलता नहीं मिली तो बिजनेस की दुनिया में उतर गए। अब करोड़ों की कंपनी के मालिक हैं। सैकड़ों लोगों को रोजगार दिया है। उनके प्रोडक्ट की विदेशों में धाक है। आइए जानते हैं उनकी इंस्पिरेशनल स्टोरी।

44 साल पहले बीएससी, साबुन बेचने के काम में फायदा नहीं

सिंगराज यादव ने लगभग 44 साल पहले अपनी बीएससी की पढ़ाई पूरी की। पढ़ाई के साथ-साथ उन्होंने अपना गुजारा करने के लिए गली-गली जाकर साबुन बेचने का काम शुरू किया। यह उनके लिए आसान नहीं था, पर उन्होंने कभी किसी काम को छोटा नहीं समझा। हालांकि, उन्हें इस काम से उतना आर्थिक लाभ नहीं मिला, जितनी उन्होंने उम्मीद की थी। इसके बावजूद, उन्होंने इसे लाइफ के एक अनुभव के रूप में लिया और आगे बढ़ें।  

दरोगा के एग्जाम में फेलियर, छोड़ दिया गवर्नमेंट जॉब का विचार

साबुन बेचने के दौरान सिंगराज ने महसूस किया कि उन्हें एक सम्मानजनक नौकरी की जरूरत है। इसलिए उन्होंने सरकारी नौकरी की तैयारी शुरू की। दरोगा बनना चाहते थे। कई बार परीक्षाएं भी दी। लिखित एग्जाम में पास भी हुए, लेकिन फिजिकल टेस्ट में बाहर हो गए। लगातार असफल होने के बाद भी सिंगराज ने हार नहीं मानी। हालांकि, बार-बार असफलता मिलने के कारण उन्होंने सरकारी नौकरी का विचार छोड़ दिया और कुछ नया करने की सोची।

फिरोजाबाद में बनाने शुरू कर दिए कांच के हैंडीक्राफ्ट आइटम 

सरकारी नौकरी में असफलता के बाद सिंगराज ने बिजनेस के क्षेत्र में कदम रखने का निर्णय लिया। फिरोजाबाद में कांच के हैंडीक्राफ्ट आइटम बनाने शुरू कर दिए। एक बड़े उद्योगपति का साथ मिला। पर बाद में वह आर्मी के लिए कांच के विशेष सामान तैयार करने लगे, यही उनके करियर का टर्निंग प्वाइंट साबित हुआ। फिर सिंगराज ने कांच के हस्तशिल्प का हुनर सीखने का फैसला किया और धीरे-धीरे इस काम में माहिर हो गए।

सिंगराज के प्रोडक्ट ने इंटरनेशनल मार्केट में बना ली पहचान

सिंगराज के बनाए हुए कांच के आइटमों की क्वालिटी और डिज़ाइन ने जल्दी ही इंटरनेशनल मार्केट में पहचान बना ली। आज उनके बनाए गए कांच के हैंडीक्राफ्ट आइटम यूरोप, अमेरिका और अन्य देशों में एक्सपोर्ट किए जाते हैं। उनकी कंपनी का सालाना टर्नओवर सात करोड़ से ज्यादा है। वह फिरोजाबाद में बेरोजगारों को हस्तशिल्प का हुनर भी सिखा रहे हैं। उनके यहां अब सैकड़ों लोग काम करना सीखते हैं और फिर खुद का छोटा-मोटा कारोबार शुरू करके आत्मनिर्भर बनते हैं। इसके अलावा, मूंज की घास से टोकरी आदि बनाना भी सिखाया जाता है, जो विदेशों में निर्यात किया जाता है।

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