लखनऊ. वो तीन लोग थे जो स्कूटी से आए, बहुत जल्दी में थे, इधर उधर देखा और फिर कुछ नदी में फेंक कर बहुत स्पीड से भाग गए। नदी के पास झुग्गी झोपडी के बच्चे तौसीफ, हसीब  एहसान और गुफरान खेल रहे थे, उन्हें लगा कोई टेडी बियर टाइप का खिलोना नदी में फेंक गए हैं, वह बच्चे दौड़े और नदी में कूद गए और जब उस खिलौने को निकाला तो वह भी हैरत में पड़ गए। छोटा नवजात बच्चा था जिसे जन्म लेते ही मरने के लिए फेंक दिया गया। माय नेशन हिंदी से मासूम बच्चों ने पूरी आप बीती बताई। 

मासूम बच्चों ने बचाई नवजात की जान 
लखनऊ के कुड़ियाघाट की घटना है जहां 10 से 12 साल के बच्चों ने वो कर  दिखाया जिसे देख कर हर आदमी उन पर गर्व कर रहा है। 10 साल का तौसीफ कहता है सुबह साढ़े ग्यारह बजे हम लोग खेल रहे थे तभी 3 लोग आए और छोटा बच्चा नदी में फेंक कर भाग गए, हम लोगों ने बच्चे को निकाला और घर ले गए। घर पर अब्बू को बच्चा दिया तो उन्होंने फूफी को दे दिया, वहीं तौसीफ के पिता वारिस  कहते हैं कि हम बच्चो की गोद में नवजात को देखकर घबरा गए।कि पता नहीं बच्चे किसका बच्चा उठा लाए हैं।  फिर जब बच्चों ने पूरी कहानी बताई तो मेरा सीना फख्र से चौड़ा हो गया। मैंने बच्चा अपनी बीवी हाजरा को दिया, उसने बच्चे के जिस्म को जल्दी जल्दी साफ किया फिर साफ चादर में लिटा दिया। 

 

निसंतान महिला ने किया नवजात की देख भाल 

वारिस कहते हैं मेरी एक बहन बेऔलाद है, मैंने बच्चा उसको दिया उसने बच्चे की देखभाल करना शुरू किया लेकिन साथ ही हमने पास के पार्क में कैंटीन चलने वाले पुलिस को भी सूचना दे दिया।  उस पुलिस वाले ने चाइल्डलाइन को बुलाकर बच्चा सौंप दिया जहां डॉक्टर ने बताया कि बच्चा प्रीमेच्योर लग रहा है, उसके बाद बच्चे को मातृ शिशु रेफरल हॉस्पिटल में भर्ती करा दिया गया। मेरी बहन इस बात से बहुत मायूस हो गयी की बच्चा चाइल्ड लाइन में रहेगा। लेकिन प्रक्रिया, नियम कानून के खिलाफ भी तो नहीं जाया जा सकता। 

चौकी इंचार्ज ने कटवाए बच्चों के बाल 

बच्चों की बहादुरी के चर्चे पूरे शहर में है।इन बच्चों को सम्मानित करने के लिए राज्यपाल आनंदीबेन पटेल ने बुलाया। राज्यपाल के पास भेजने से पहले सतखंडा चौकी इंचार्ज संजीव कुमार चौधरी ने पहले इन बच्चों को सैलून ले जाकर बाल कटाया फिर नए कपड़े दिलाए और फिर  राजभवन के लिए रवाना किया। राजयपाल ने बच्चों को सम्मानित किया, उनसे ढेरों बातें की। उन्हें नए कपड़े दिए। स्कूल बैग, किताबे कॉपी शूज़ दिया।इन नंन्हे मुन्नो की ख़ुशी देखते ही बन रही थी। राजयपाल इन बहादुर बच्चों के मां बाप से भी मिलीं और उनकी हौसला अफ़ज़ाई किया। 



बस्ती के लोगों ने बच्चो की किया तारीफ 
वारिस मजदूरी करते हैं उनकी एक आंख की रोशनी जा चुकी है, वारिस कहते हैं मुझे अपनी आंख की रोशनी जाने पर जितनी तकलीफ थी उससे ज्यादा खुशी आज अपने बच्चे की बहादुरी पर हो रही है। हसीब के पिता रफीक और मां नजारा खातून अपने बच्चे पर गर्व कर रहे हैं हसीब पांच भाई बहनों में सबसे छोटा है। गुफरान के पिता वाजिब और मां बकरीदन भी बच्चों की बहादुरी पर फूले नहीं समा रहे हैं। एहसान के पिता सुफियान और मां रेशमा  का भी गर्व से सीना चौड़ा हो चुका है। यह बच्चे जब नए कपड़े कॉपी किताब लेकर अपनी बस्ती में पहुंचे तो बस्ती के लोग भी बच्चो की प्रशंसा करते रहे । 

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