2002 के गुजरात दंगों के दौरान सेना की तैनाती में देरी का सनसनीखेज दावा करने वाले लेफ्टिनेंट जनरल (रिटा.) जमीरुद्दीन शाह अब खुद ही घिर गए हैं। शाह ने अपनी किताब 'द सरकारी मुसलमान' में दावा किया है कि 28 फरवरी और 1 मार्च 2002 की आधी रात के 2 बजे अहमदाबाद में तत्कालीन रक्षामंत्री जार्ज फर्नांडीस के साथ उनकी गुजरात के मुख्यमंत्री नरेंद्र मोदी से मुलाकात हुई थी। इस मौके पर उन्होंने तत्काल जरूरत वाली एक लिस्ट सौंपी थी जिससे सेना  को कानून-व्यवस्था को बहाल करने में मदद मिल सके।

शाह का कहना है कि सेना के 3000 जवान पहली मार्च को सुबह 7 बजे ही अहमदाबाद के एयरफील्ड में उतर चुके थे लेकिन गुजरात प्रशासन द्वारा यातायात साधन मुहैया न कराए जाने के चलते सेना को पूरा एक दिन इंतजार करना पड़ा। इससे काफी अहम समय यू हीं बर्बाद हो गया। इस दौरान सैकड़ों लोग मारे जा चुके थे। समय पर सेना तैनात होती को कई लोगों को बचाया जा सकता था। 

हालांकि उनका यह दावा तथ्यों से मेल नहीं खाता, क्योंकि उस समय कई अखबारों ने पहली मार्च को सेना के फ्लैगमार्च की खबर प्रकाशित की थी। 'द हिंदू' ने पहली मार्च, 2002 की खबर में लिखा है कि सेना ने सबसे ज्यादा प्रभावित अहमदबाद, बड़ौदा, राजकोट और गोधरा में फ्लैग मार्च किया है। दंगाइयों को देखते ही गोली मारने के आदेश दिए गए हैं।

यही नहीं एसीएस (गृह) अशोक नारायण ने दंगों की जांच के बाद जो नोट दिया उसमें भी सेना की समय पर तैनाती की बात कही गई है। 

अपने संस्मरण में शाह लिखते हैं कि गुजरात सरकार ने 28 फरवरी 2002 को केंद्रीय गृह मंत्रालय और रक्षा मंत्रालय के जरिए सेना की तैनाती का निवेदन किया था। तत्कालीन सेना प्रमुख जनरल एस पद्मनाभन के हवाले से वह कहते हैं कि ‘जूम आज रात को अपने फार्मेशन को गजुरात के लिए तैयार करो और दंगे को कुचल दो।' मैंने जवाब दिया ‘सर सड़क के रास्ते से दो दिन लगेंगे।’ उन्होंने जवाब दिया, ‘जोधपुर से तुम लोगों के जाने की एयरफोर्स जिम्मेदारी लेगी। ज्यादा से ज्यादा सेना को एयरफील्ड में ले जाओ। तेजी से और पूरी ताकत के साथ कार्रवाई समय की जरूरत है।’

अहमदाबाद के अंधेरे और वीरान एयरफील्ड में पहुंचने के बाद जब पूछा गया कि 'दूसरे साजो सामान और गाड़ियां कहां हैं, जिनका वादा किया गया था। उन्हें पता चला कि राज्य सरकार अभी भी जरूरी व्यवस्था करने में लगी है।'

शाह के मुताबिक, 'अगर हमें रात में ही गाड़ी मुहैया करा दी जाती तो नुकसान कम होता। जो पुलिस छह दिनों में नहीं कर सकी उसे हम लोगों ने 48 घंटे में कर दिखाया जबकि संख्या में हम उनके छह गुना कम थे। हम लोगों ने 4 मार्च को 48 घंटे में पूरा आपरेशन खत्म कर दिया लेकिन इसे 2 मार्च को ही खत्म किया जा सकता था। अगर हम उस महत्वपूर्ण समय को नष्ट नहीं किए होते तो।'

फिल्म अभिनेता नसीरुद्दीन शाह के भाई लेफ्टिनेंट जनरल जमीरुद्दीन शाह को 2012 में यूपीए द्वारा अलीगढ़ मुस्लिम यूनिवर्सिटी का वाइस चांसलर बनाया गया था। वह उस समय विवादों में घिर गए थे, जब उन्होंने यह कहते हुए लड़कियों को मौलाना आजाद लाइब्रेरी में आने की इजाजत देने से इनकार कर दिया था कि लड़कियों के आने से यहां 'लड़कों की संख्या चार गुना बढ़' जाएगी।  उनकी किताब का 13 अक्तबूर को इंडिया इंटरनेशनल सेंटर में पूर्व राष्ट्रपति हामिद अंसारी विमोचन करने वाले हैं।