हम लोगों की तरह कई लोग अभी भी क्रांतिकारी अभिनेता नसीरउद्दीन शाह से प्यार करते हैं। खुले तौर पर उनके बोलने के साहस का सम्मान करते हैं। लेकिन यहाँ पाँच उदाहरण हैं जो पूरी तरह से उनके आक्रोश का इंगित करता है। वह असहिष्णुता, अभिव्यक्ति की आजादी के नाम पर होने वाली हिंसा , गाय के नाम पर हत्या पर और सेलिब्रिटी किए गए भयावह व्यवहार पर बोलने पर विफल रहे।
अभिनेता नसीरउद्दीन शाह ने भारतीय संविधान के तहत सच्चाई के साथ जो कहा कि देश रहने के लिए सुरक्षित नहीं है। ये उनके कहने का पूरा अधिकार है कि पाकिस्तान में घर जैसा अहसास होता है। जो वो पहले कह चुके हैं। जो उन्होंने कहा कि वो सही कहा कि एक पुलिस अफसर की तुलना में एक गाय की मौत को महत्व दिया जा रहा है(हालांकि एक बार पूछा जाना चाहिए कि दोनों के जीवन के मूल्य की तुलना कैसे की जा सकती)। लेकिन अब भारतीय द्वारा उनके शब्दों पर हमला करने को उसी आधार पर सामान्तर जायज नहीं ठहराया जा सकता है।
उनके खिलाफ अजमेर लिटरेचर फेस्टिवल में विरोध और विरोध करने वालों ने किसी हिंसा का सहारा नहीं लिया। यह एक पूरी तरह से नियमसंगत है। अपनी विचारों को व्यक्त करने की आजादी एक तरफा नहीं हो सकती है, जैसे सांप्रदायिकता और राजनीति की पहचान एक तरफा नहीं हो सकती है। शाह अपने मुस्लिम साथियों के लिए बोलने के लिए पूरी तरह से हकदार हैं और वह ऐसा पहले भी कर चुके हैं। लेकिन पहचान की राजनीति पहचान की राजनीति को भूल जाती है। जो कह रहे है कि उन्होंने हिंदुओं को एक व्यापक, अंधेरे में रखा तो वो भी उसी तरह से अपने विचारों को रखने के लिए समान हैं।
हम लोगों की तरह कई लोग अभी भी क्रांतिकारी अभिनेता नसीरउद्दीन शाह से प्यार करते हैं। खुले तौर पर उनके बोलने के साहस का सम्मान करते हैं। लेकिन यहाँ पाँच उदाहरण हैं जो पूरी तरह से उनके आक्रोश का इंगित करता है। वह असहिष्णुता, अभिव्यक्ति की आजादी के नाम पर होने वाली हिंसा , गाय के नाम पर हत्या पर और सेलिब्रिटी किए गए भयावह व्यवहार पर बोलने पर विफल रहे।
गौ तस्करों द्वारा हत्या
जिस घटना के लिए शाह ने विवादित बयान दिया है। उसी के परिपेक्ष्य में बताना चाहता हूं कि उत्तर प्रदेश में 2015 में गौ तस्करों ने एक सब इंस्पेक्टर मनोज मिश्रा की हत्या कर दी थी। गाय के तस्करों के द्वारा हर साल कई लोगों को पूरे भारत में मारा जा रहा है। गौ तस्करों द्वारा 2015 में प्रशांत पूजारी का अपहरण कर उसकी हत्या तलवारों और चापर से की थी। जबकि 2016 में बीएसएफ के सिपाही की हत्या बंगाल में गौ तस्करों द्वारा की गयी थी।
गौ तस्करों के लिए गाय के गोश्त अहमियत सीमा का रक्षक से ज्यादा थी। गौ तस्करों ने आगरा में चरन सिंह की हत्या की और उसी वक्त गौ तस्करों ने आगरा में ही दलित के ऊपर गाड़ी चढ़ा दी और उसको मार दिया था। पिछले साल ही मणिपुर में गौ तस्करों ने तीन ग्रामीणों की हत्या कर दी और इस साल अगस्त में यूपी के औरेया में गौ तस्करों ने दो साधुओं की हत्या कर दी जबकि दूसरे को बुरी घायल कर दिया और उसकी जुबान काट दी। करोड़ों किसान देश में मवेशियों के जरिए जीवन यापन कर रहे हैं और इनमें से कई लोग गौ तस्करों के खतरनाक डर के साथ जी रहे हैं। लेकिन शाह ने कभी इन लोगों के बारे में कुछ नहीं बोला।
बोलने की आजादी का गला दबाने के लिए...
कोलकाता में तस्लीमा नसरीन की पुस्तक के विमोचन पर कार्यक्रम को रोकना और उसी दौरान हिस्सा होना और सलमान रूश्दी को लिटरेरी फेस्टिवल में आने से रोकने के लिए नसीरउद्दीन शाह के पास विरोध करने के लिए शब्द नहीं थे। यही नहीं जब पत्रकार अभिजित अय्यर मित्रा को जेल में पचास दिन तक रखा। 2015 में ही हिंदू समाज पार्टी के नेता कमलेश तिवारी की मोहम्मद साहब पर की गयी एक टिप्पणी के बाद बंगाल, यूपी और बिहार के तीन शहरों को आग के हवाले कर दिया गया था। सब से ज्यादा बुरा हाल तो मालदा का था, जहां पर एक लाख से ज्यादा भीड़ ने पुलिस स्टेशन के साथ ही बस, घर और दुकानों को जला दिया था
यही नहीं घरों के साथ ही शनि और दुर्गा के साथ ही कई मंदिरों में भी आग लगा दी थी। हजारों लोगों की जान खतरे में पड़ गयी थी और वह अपने स्थानों में डर के साथ रह रहे थे, वह भी एक टिप्पणी के कारण। यह एक ऐसा केस है जो उनके बोलने के लिए उपयुक्त था। लेकिन वह नहीं बोले।
केवल विराट कोहली बॉलीवुड क्यों नहीं....
शाह को सबसे ज्यादा समस्या भारत क्रिकेट टीम के कप्तान विराट कोहली के मैदान में उनकी आक्रामकता के साथ ही कभी-कभार बोले जाने वाले अपशब्दों को लेकर है। लेकिन यह ये इससे गंभीर है कि फिल्म स्टार जानवरों को मार रहे हैं, कई लोगों को गाड़ियों से रौंद रहे हैं, किसी व्यापारी को पांच सितारा होटल में सरेआम थप्पड़ मार रहे हैं, पुलिस वालों को गाली दे रहे हैं या फिर अपने घरेलू काम करने वाली के साथ रेप कर रहे हैं। पनामा पेपर में नाम आ रहे हैं या फिर अपने घरों में ऑटोमैटिक राइफल रख रहे हैं। इस तरह के उदाहरणों में कितनी बार उन्होंने एक्टर, डाइरेक्टर्स और कॉमेडियन के खिलाफ खुलकर इस तरह के आश्चर्य करने वाले बर्ताव पर बोला ?
भारत में हर किसी धर्म, जाति और मजहब का व्यक्ति नसीरउद्दीन शाह की प्रशंसा और सम्मान करते हैं। उनके तरह के प्रमुख व्यक्ति को जब किसी अन्याय के खिलाफ बोलना चाहिए तो उन्हें अपने को चुनिंदा और सीमित करके बात करनी चाहिए। क्या उन्हें एक समुदाय पर आक्षेप करना चाहिए। क्या इसके लिए उनके पास अधिकार है। यह एक नैतिक रुप संदिग्ध है।
Last Updated Dec 22, 2018, 5:57 PM IST