अदालत ने 34 साल बाद नवंबर 1984 सिख विरोधी दंगों से जुड़े एक मामले में दोषी करार दिये गए नरेश सेहरावत व अवतार सिंह की सजा पर पटियाला हाउस कोर्ट ने फैसला सुरक्षित रख लिया है। 

कोर्ट सजा पर 20 नवंबर को फैसला सुनायेगा। सजा पर बहस के दौरान पीड़िता के वकील ने कोर्ट से फांसी की सजा देने की मांग की है। कहा इन लोगो ने जिस तरह से निर्दोषों की हत्या की वह जघन्यतम की श्रेणी में आता है। क्योंकि पूरी प्लांनिग के साथ घटना का अंजाम दिया गया है। 

सिर्फ दिल्ली में 2700 के आसपास लोग मारे गए थे। जिसके चलते काफी परिवार प्रभावित हुआ था। परिवार की माली हालत काफी खराब है। इसलिये इन दोनों को फाँसी की सजा से कम सजा नही मिलनी चहिये। 

सुनवाई के बाद पीड़ितों के परिजनों ने दोषियों पर हमला कर दिया और उनकी पिटाई की। जिसके बाद पुलिस ने उन्हें बहुत मुश्किल से सुरक्षित निकाला। 

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पीड़ित की ओर से पेश एक अन्य वकील एच एस फूलका ने भी फांसी की सजा की मांग की। वही दोषियों की ओर से पेश वकील ने काम से कम सजा की मांग की। कहा उनके मुताबिक उनके पक्ष को अच्छी तरह नही सुना गया ना ही सबूतों पर ध्यान दिया गया। 

इतना ही नही एसएचओ महरौली, एस के मालिक और किशोर कुमार को भी आरोपी बनाने की मांग की। दोषी के वकील ने जांच पर सवाल उठाते हुये कहा कि मरने वाले की दुकान लूटने की बात गलत है। दोषी के वकील के मुताबिक महिपाल पुर में रहते थे या नही इसका कोई सबूत नही है। मारने से संबंधित कोई सबूत नही मिला है।

 नरेश काफी बीमार है वह 68 साल का है उसको लिवर की बीमारी है। इसलिये कम से कम सजा मिलनी चाहिये।

 एक दिन पहले ही कोर्ट ने दोनों को हत्या, हत्या की कोशिश, लूटपाट, आगजनी व अन्य धाराओं में दोषी करार दिया था। कोर्ट यह भी तय करेगा कि पीड़ितों को कितना मुआवजा दिया जाये। बतादें कि यह पहला मामला है जिसमें एसआईटी की जांच के बाद किसी मामले में किसी को फाँसी की सजा हुई है।

 पटियाला हाउस अदालत के अतिरिक्त सत्र न्यायाधीश अजय पांडे ने  यह फैसला सुनाया है। कोर्ट ने नरेश सेहरावत व यशपाल सिंह को महिपालपुर क्षेत्र निवासी हरदेव सिंह व अवतार सिंह की हत्या का दोषी करार दिया था। अदालत ने अपने फैसले में कहा था कि सभी दस्तावेजों व गवाहों के बयानों से स्पष्ट है कि दोनों दोषी इस इलाके में हुए दंगे, लूटपाट व हत्या के मामले में लिप्त थे। इन दोनों ने निर्दोष लोगों के साथ लूटपाट ही नहीं की बल्कि उनके घरों में आग लगाई व निर्दोषों की हत्या कर उनके शव तक जला दिए। 

मृतक के भाई संतोष सिंह की शिकायत पर यह मामला दर्ज किया गया था। दिल्ली पुलिस ने साक्ष्यों के अभाव में इस मामले की जांच 1994 में बंद कर दी थी। एसआईटी ने मामले की जांच कर चार्जशीट दाखिल की थी। अदालत ने एसआईटी की चार्जशीट में दिये साक्ष्यों व गवाहों से जिरह के आधार पर हत्या, हत्या की कोशिश, लूटपाट, मारपीट, अनाधिकृत प्रवेश व अन्य धाराओं में दोषी ठहराया था। 

हत्या की धारा में दोषी ठहराये जाने पर मृत्युदंड अथवा आजीवन कारावास का ही प्रावधान है। विशेष जांच दल का आरोप था कि नरेश व यशपाल ने महिपालपुर में एक नवम्बर 1984 को 2 लोगों की हत्या की थी और तीन लोगों को जख्मी हालत में यह समझकर छोड़ दिया था कि वह भी मर चुके हैं। कई लोगों के घरों को आग के हवाले कर दिया था। 

एसआईटी ने त्रिलोक सिंह, संगत सिंह व कुलदीप सिंह को गवाह के तौर पर कोर्ट में पेश किया था। इनकी गवाही को भरोसेमंद मानते हुए अदालत ने अपना फैसला सुनाया। 

 भाजपा सरकार बनने के बाद गृहमंत्री राजनाथ सिंह ने सिख दंगों के पांच मामलों की जांच के लिए विशेष जांच दल (एसआईटी) का गठन किया था। इन सभी मामलों में चार्जशीट दाखिल की जा चुकी है। तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी की 31 अक्तूबर 1984 को हत्या के बाद दंगे भड़क गये थे। इनमें हजारों लोगों की जान चली गई थी।