नई दिल्ली। केन्द्र में सत्ताधारी राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन यानी राजग से शिरोमणि अकाली दल (शिअद) ने किनारा कर लिया है। शिअद ने करीब 22 साल के बाद राजग से नाता तोड़ा है जबकि शिअद ने भाजपा के साथ मिलकर पंजाब में  तीन बार सरकार बनाई है और वह केन्द्र में भाजपा के साथ भी रही है। वहीं बताया जा रहा है कि शिअद की नाराजगी भाजपा से सिर्फ किसानों के मुद्दे और कृषि के कारण नहीं है बल्कि वह अपनी उपेक्षा से नाराज थी  और उसे मौके की तलाश थी। लिहाजा कृषि बिल के जरिए बहाना  बनाकर उसने भाजपा से किनारा करना बेहतर समझा। हालांकि पंजाब में शिअद और भाजपा के अलग होने से सत्ताधारी कांग्रेस को फायदा मिलने की उम्मीद की जा रही है।

असल में शिअद का आरोप है कि उसे अपने बड़े सहयोगी से अपेक्षित सहयोग नहीं मिल रहा था और वह राजग में उपेक्षित  महसूस कर रहा था। उसने कई बार राजग में इस बात को उठाया लेकिन उसकी सुनवाई नहीं हुई। लिहाजा मौजूदा कृषि कानूनों को लेकर राजग से अलग होने का निर्णायक फैसला लेने के लिए बाध्य होना पड़ा। पिछले महीने केंद्र सरकार ने कश्मीरी, डोगरी तथा हिन्दी को कश्मीर की आधिकारिक भाषाओं में शामिल किया था और शिअद चाहता था कि इसमें  पंजाबी को भी शामिल किया जाए। लेकिन इसमें पंजाबी को भी शामिल किया जाए। शिअद का कहना था कि कश्मीर में पंजाबी बोलने वाले लोग हैं और यह राज्य में पुरानी भाषा रही है। इसके लिए शिअद प्रमुख ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और केन्द्रीय गृहमंत्री अमित शाह को पत्र भी लिखा था।

लेकिन सरकार ने इस पर कोई सुनवाई नहीं की। वहीं शिअद नेता नरेश गुजराल का कहना है कि कश्मीर में पंजाबी को शामिल करना छोटी सी बात थी। लेकिन सरकार ने शिअद की मांग को नहीं माना। इसके साथ ही शिअद का नाराजगी का बड़ा कारण पिछले साल संसद के मानसून सत्र में सरकार ने अकाली दल के विरोध के बावजूद अंतर-राज्यीय नदी जल विवाद (संशोधन) विधेयक को पारित कराना है। क्योंकि इस  विधेयक के जरिए जल विवादों का तय समय के भीतर निपटारे का प्रावधान है। पंजाब और हरियाणा के बीच जल विवाद चल रहा है और बताया जा रहा है कि पंजाब के हिस्से का पानी अन्य राज्यों को जा सकता है। इसको लेकर शिअद केन्द्र सरकार से नाराज था।  वहीं इसके सियासी कारण भी बताए जा रहे हैं।

क्योंकि हरियाणा में शिअद का एकमात्र विधायक पिछले दिनों भाजपा में शामिल हो गया था। हालांकि दिल्ली विधानसभा चुनाव से पहले शिअद ने भाजपा के खिलाफ चुनाव लड़ने का फैसला किया। हालांकि बाद में उसने भाजपा के प्रत्याशियों के पक्ष में समर्थन दिया था। वहीं पिछले साल हुए लोकसभा चुनावों के दौरान अकाली दल ने अमृतसर और होशियारपुर सीट उसे देने की मांग की थी।  इसके बदले में  शिअद भाजपा  को लुधियाना एवं जालंधर देना चाहती थी। लेकिन भाजपा ने इससे साफ मना कर दिया। जिसको लेकर शिअद भाजपा से नाराज थी।