नई दिल्ली— आईपीसी की धारा 497 को गैरसंवैधानिक करार देने वाले जजों की पीठ में चीफ जस्टिस दीपक मिश्रा, जस्टिस एम खानविलकर, जस्टिस इंदु मल्होत्रा, जस्टिस आरएफ नरीमन और डीवाई चंद्रचूड़ के सामने यह मामला था, जिसने एकमत से फैसला लिया। 

चीफ जस्टिस दीपक मिश्रा ने कहा कि "IPCकी धारा सेक्शन 497 महिला के सम्मान के खिलाफ है। उन्होंने कहा कि महिलाओं को हमेशा समान अधिकार मिलना चाहिए और उनको समाज की इच्छा के हिसाब से सोचने के लिए मजबूर नहीं किया जा सकता। महिलाओं के खिलाफ संसद ने भी घरेलू हिंसा पर कानून बनाया हुआ है"। उन्होंने यह भी कहा कि पति कभी भी पत्नी का मालिक नहीं हो सकता है।


बता दें कि 8 अगस्त को हुई सुनवाई के बाद सुप्रीम कोर्ट की संवैधानिक बेंच ने फैसला सुरक्षित रख लिया था। सुप्रीम कोर्ट में केंद्र सरकार ने कहा था कि व्याभिचार अपराध है और इससे परिवार तबाह होता है। तब चीफ जस्टिस दीपक मिश्रा की अगुआई वाली संवैधानिक बेंच ने सुनवाई के बाद कहा था कि मामले में फैसला बाद में सुनाया जाएगा। 


केरल के एक एनआरआई जोसेफ साइन ने इस मामले में याचिका दाखिल करते हुए आईपीसी की धारा-497 की संवैधानिकता को चुनौती दी थी जिसे सुप्रीम कोर्ट ने पिछले साल दिसंबर में सुनवाई के लिए स्वीकार कर लिया था और जनवरी में इसे संविधान पीठ को भेजा गया था।
 

 

राष्ट्रीय महिला आयोग की अध्यक्ष रेखा शर्मा ने सुप्रीम कोर्ट के इस फैसले का स्वागत किया है। रेखा शर्मा ने आईपीसी की धारा 497 को अंग्रेजों के जमाने का कानून बताया है।

 

 

(खबर में लगी तस्वीर प्रतीकात्मक है)