अमरावती। आंध्र प्रदेश के मुख्यमंत्री वाईएस जगन मोहन रेड्डी राज्य में राज्य विधान परिषद को खत्म करने का फैसला किया है। इसका प्रस्ताव कैबिनेट में पारित कर दिया और अगर सही रहा तो राज्य की विधान परिषद खत्म हो जाएगी। इसके साथ ही राज्य में महज विधानसभा ही बची रहेगी। आखिर राज्य के सीएम जगन मोहन रेड़्डी इतिहास क्यों दोहराना चाहते हैं और राज्य की मुख्य विपक्षी टीडीपी इसका विरोध क्यों कर रही है। जबकि कुछ साल पहले टीडीपी ने राज्य की विधान परिषद को खत्म  कर दिया था। जिसके बाद राज्य एक सदन वाला हो जाएगा।

राज्य में 2018 के विधानसभा चुनावों में वाईएसआरसीपी ने 175 विधानसभा सीटों में से 151 सीटों पर जीत हासिल की, जबकि टीडीपी को महज 23 सीटें मिली थी। राज्य की जनता ने टीडीपी और कांग्रेस को पूरी तरह से नकार दिया था। लेकिन इसके बावजूद राज्य की वाईएसार कांग्रेस के पास वो ताकत नहीं है। जिसके जरिए वह राज्य के दोनों सदनों में किसी प्रस्ताव को पारित करा सके।

विधानसभा में तो वाईएसआर के पार पूर्ण बहुमत है। लेकिन विधान परिषद में पार्टी कमजोर पड़ जाती है। लेकिन उच्च सदन में टीडीपी के पास 26 विधायक हैं जबकि राज्य का सदन 58 सदस्यों का है। वहीं भाजपा के पास तीन और वाईएसआर कांग्रेस के पास महज 9 सदस्य हैं। जबकि चार सीटें अभी रिक्त हैं। लिहाजा सत्ता में रहने के बावजूद वाईएसआर कांग्रेस के कई प्रस्ताव उच्च सदन में पारित नहीं हो पाते हैं।

असल में राज्य की वाईएसआरस कांग्रेस पिछली टीडीपी सरकार द्वारा अमरावती कैपिटल रीजन डेवलपमेंट अथॉरिटी के खिलाफ कार्यवाही करने के लिए कई तरह के बिल लाना चाहती है। जिसके जरिए वह राज्य में टीडीपी की ताकत को खत्म कर सके। जाहिर है कि इसमें भ्रष्टाचार एक बड़ा मुद्दा होगा। असल में वाईएसआर कांग्रेस भी वही काम कर रही है जो 1983 में पहली बार सत्ता में आने के बाद टीडीपी ने किया था। टीडीपी ने 1985 से लेकर 2007 तक राज्य को एक सदन में ही रखा था। यानी टीडीपी सरकार ने द्विसदनीय व्यवस्था को खत्म कर विधान परिषद को खत्म कर दिया था।

हालांकि कांग्रेस के राज्य की सत्ता में आने के बाद कांग्रेस ने इसे पुनर्जीवित किया कर दिया गया। इस दौरान राज्य की टीडीपी सरकार ने कई बिलों को विधानसभा में बहुमत होने के कारण पारित किया था। अब यही फार्मूला वाईएसआर कांग्रेस अपना रही है। वाईएसआर का माना है कि राज्य में उच्च सदन में पूर्ण बहुमत के लिए उसे इंतजार करना होगा। तब तक वह कोई अहम फैसला नहीं कर सकेगी।