उत्तर प्रदेश की योगी सरकार का 17 ओबीसी जातियों को एससी में शामिल का फैसला सरकार के लिए मुसीबत बनता जा रहा है। केंद्र की सरकार द्वारा इस फैसले को रद्द करने के बाद सवैधानिक संकट आ गया है। क्योंकि अब एससी में शामिल की गई 17 जातियां जनरल कैटगरी में आ गई हैं। हालांकि यूपी की योगी सरकार का कहना है कि राज्य में प्रमाण पत्र देने का कार्य चलता रहेगा।

केंद्र की मोदी सरकार द्वारा उत्तर प्रदेश की योगी आदित्यनाथ की सरकार को 17 अति पिछड़ी जातियों को अनुसूचित जाति में शामिल करने के फैसले पर झटका दिए जाने के बाद, मायावती इस मामले को राज्य में होने वाले 12 विधानसभा उप चुनाव में बड़ा मुद्दा बनाने जा रही है। बसपा इसके जरिए राज्य में खुद को अनुसूचित जातियों की हितैषी साबित करने की जुगत में है।

केंद्र की सरकार द्वारा राज्य सरकार के फैसले को खारिज कर दिया है। जो एक तरह से योगी सरकार की हार है। केंद्र सरकार ने साफ किया कि राज्य सरकार केवल प्रस्ताव भेज सकती है, फैसला नही कर सकती है। अगर राज्य सरकार इस पर कोई ठोस कदम चाहती है तो प्रस्ताव केंद्र को भेजे। हालांकि राज्य सरकार के फैसले के बाद बसपा बैक फुट पर आ गई थी।  

वह विधानसभा उपचुनाव से पहले भाजपा के इस दांव की काट में लग गई है। बसपा के रणनीतिकारों को लग रहा था कि अगर भाजपा का यह दांव चल गया तो उपचुनाव में पार्टी को नुकसान हो सकता है। बसपा की संजीदगी को इसी बॉब्स समझा जा सकता है कि बसपा प्रमुख मायावती ने पार्टी नेताओं को इस मुद्दे पर जनता के बीच ले जाने के निर्देश भी दिए थे।

हालांकि बसपा को डर है कि योगी सरकार इस मामले पर फिर से प्रस्ताव तैयार कर केंद्र को भेज सकती है। क्योंकि योगी सरकार इस मुद्दे को आसानी से हाथ से नहीं जाना चाहती है।

मुश्किल में योगी सरकार।

केंद्र की सरकार द्वारा इस फैसले को रद्द करने के बाद  17 जातियां किसी भी कैटगरी में नहीं रहीं हैं। वो अब न अति पिछड़ी रह गई हैं और न ही अनुसूचित जाति में शामिल हुईं। अब ये जातियां सामान्य कैटिगरी में शामिल हो गई हैं। जो योगी सरकार की लिए बड़ा झटका है। जो उपचुनाव में बीजेपी के लिए फायदे की जगह नुकसानदायक हो सकता है।