तीनों सेनाओं में समलैंगिक संबंध बनाने पर दो साल से सात साल की जेल का प्रावधान है। सूत्रों के अनुसार, पूर्व में जब भी ऐसा कोई मामला अधिकारियों के समक्ष आया, आरोपी को कोर्ट मार्शल का सामना करना पड़ा। दोषी पाए जाने पर उसे सेवा से बर्खास्त कर घर भेज दिया गया।
देश में समलैंगिक संबंधों को अपराध के दायरे से बाहर करने के सुप्रीम कोर्ट के फैसले के बाद तीनों सेनाओं के लिए नया संकट खड़ा हो गया है। अब तीनों सेनाओं में अपने-अपने अधिनियमों की समीक्षा करने पर विचार हो रहा है। सैन्य कानूनों के अनुसार, सेवारत सैन्यकर्मी का समलैंगिक संबंध बनाना कोर्ट मार्शल की कार्यवाही के दायरे में आता है। इसमें कुछ मामलों में दोषी सैन्यकर्मी को सेवा से बर्खास्त किया गया है। वहीं कुछ मामलों में उन्हें सजा भी सुनाई गई है।
सरकार के एक सूत्र ने 'माय नेशन' को बताया, 'तीनों सेनाओं के अपने-अपने कानूनों के अनुसार, समलैंगिक संबंध बनाने पर कोर्ट मार्शल की कार्यवाही का सामना करना पड़ता है। आरोपी का दोष सिद्ध होने पर उसे सेवा से बर्खास्त किया जा सकता है। अब सुप्रीम कोर्ट के आईपीसी की धारा 377 को लेकर ऐतिहासिक फैसला सुनाने के बाद तीनों सेनाओं में अपने-अपने कानूनों की समीक्षा को लेकर सवाल खड़े हो गए हैं। तीनों सेनाओं में इस बात पर मंत्रणा हो रही है कि इस मामले से कैसे निपटा जाए।'
तीनों सेनाओं में समलैंगिक संबंध बनाने पर दो साल से सात साल की जेल का प्रावधान है। सूत्रों के अनुसार, पूर्व में जब भी ऐसा कोई मामला अधिकारियों के समक्ष आया, आरोपी को कोर्ट मार्शल का सामना करना पड़ा। दोषी पाए जाने पर उसे सेवा से बर्खास्त कर घर भेज दिया गया।
अब तीनों सेनाएं उन परिस्थितियों पर विचार कर रही हैं कि अगर कोई समलैंगिक संबंधों को दोषी सैन्यकर्मी सेवा से बर्खास्त कर दिए जाने के बाद कोर्ट मार्शल के खिलाफ अदालत चला जाता है, तो उसे सेवा में फिर से लेना पड़ सकता है। सूत्रों ने कहा कि तीनों सेनाएं अब इस मुद्दे पर रक्षा मंत्रालय के साथ बैठक कर मामले का हल निकालने और भविष्य की रणनीति बनाने पर विचार कर रही हैं।
कुछ साल पहले, ब्रिगेडियर रैंक के एक अधिकारी को समलैंगिक संबंध बनाने पर नौकरी से इस्तीफा देना पड़ा था। कुछ सैनिकों ने उसका एक अन्य सैनिक के साथ संबंध बनाते हुए वीडियो बना लिया था। यह मामला उच्च अधिकारियों तक पहुंचा था।
सुप्रीम कोर्ट की पांच जजों की संवैधानिक पीठ ने बुधवार को सुनाए फैसले में दो बालिगों के बीच समलैंगिक संबंधों को अपराध मानने वाली 158 साल पुरानी धारा 377 के प्रावधान को खत्म कर दिया था। सुप्रीम कोर्ट के चीफ जस्टिस दीपक मिश्रा का अगुवाई वाली संवैधानिक पीठ ने निजी पसंद को सम्मान देने की बात कही। इस पीठ में चीफ जस्टिस दीपक मिश्रा के अलावा जस्टिस रोहिंटन नरीमन, एएम खानविल्कर, डी वाई चंद्रचूड़ और जस्टिस इंदु मल्होत्रा शामिल थे।
Last Updated Sep 9, 2018, 12:11 AM IST