समाजवादी पार्टी के अध्यक्ष अखिलेश यादव राज्य की 12 विधानसभा सीटों पर होने वाले उपचुनावों के लिए बहुजन समाज पार्टी की काट खोज रहे हैं। इन सीटों पर सितंबर तक चुनाव होने हैं। ये सीटें विधायकों के लोकसभा चुनाव जीतने के बाद खाली हुई है। लेकिन इस उपचुनाव में अखिलेश को बीजेपी के साथ ही बीएसपी से भी लड़ना है। 

असल में पहली बार बीएसपी प्रमुख मायावती ने उपचुनाव में उतरने का फैसला किया है। लिहाजा एसपी के लिए बीएसपी के खिलाफ चुनाव लड़ना बड़ी चुतौती है। क्योंकि बीएसपी एसपी के वोट पर ही निशाना साध रही है। बीएसपी खासतौर से मुस्लिम वोटरों को टारगेट कर रही है। जबकि इसे एसपी का वोटर माना जाता है।

एक सच्चाई ये भी है कि इस बार लोकसभा चुनाव में मुस्लिमों वोटरों का झुकाव बीएसपी की तरफ रहा। जिसके कारण वह लोकसभा की 10 सीटें जीतने में कामयाब रही है। मुस्लिमों वोटरों के एसपी के पक्ष में न जाने से एसपी को महज 5 सीटों पर भी संतोष करना पड़ा है। अब असल परीक्षा उपचुनाव को लेकर है।

हालांकि एसपी का एक ही विधायक सांसद के लिए चुना गया। लिहाजा एक सीट को बचाना एसपी की पहली प्राथमिकता है। जबकि 10 सीटें बीजेपी के विधायकों के सांसद चुने जाने के बाद खाली हुई हैं। वहीं बीएसपी ने उपचुनाव के लिए अभी से तैयार कर दी है। जिसका सीधे तौर पर नुकसान एसपी को होगा।

इसके पीछे बीएसपी की ये रणनीति है कि ज्यादा से ज्यादा सीटें जीतकर वह 2022 में होने वाले विधानसभा चुनाव में मुख्य विपक्षी दल बनना चाहती है। अगर बीएसपी 12 में से कुछ सीटें जीतने में कामयाब रहती है तो ये उनकी बड़ी जीत मानी जाएगी।

फिलहाल एसपी के लिए अब दोतरफा चुनौती है। पहले तो उसे मोदी लहर पर सवार बीजेपी से मुकाबला करना है वहीं दूसरी तऱफ से उसे बीएसपी के खिलाफ मोर्चे पर लड़ना होगा। जबकि एक महीने पहले तक दोनों दलों ने मिलकर लोकसभा का चुनाव लड़ा था और विधानसभा चुनाव में भी गठबंधन के जरिए चुनाव लड़ने का फैसला किया।

हालांकि बीएसपी जिस रणनीति के तहत अखिलेश पर वार कर रही हैं। उससे उसकी रणनीति को समझा जा सकता है। क्योंकि अखिलेश के जरिए वह मुस्लिम और यादव वोटरों को साध रही है।