कांग्रेस हो सकती है गठबंधन से बाहर

रालोद को साथ रखने पर सहमति

मकरसक्रांति पर यूपी की सियासत में राजनैतिक तापमान में जबरदस्त इजाफा देखने को मिलेगा। ऐसा माना जा रहा है कि सपा और बसपा 15 जनवरी यानी मायावती के जन्मदिन के मौके लोकसभा चुनाव के लिए सियासी गठबंधन का ऐलान कर सकते हैं। अभी खरमास चल रहा है और जैसे ही सूर्य 15 जववरी को मकर राशि में प्रवेश करेंगे वैसे ही यूपी की सियासत इस गठबंधन से एक नया इतिहास लिखेगी। दोनों ही दलों के बीच सीटों को लेकर रजामंदी हो चुकी है। सपा और बसपा के बीच होने वाले गठबंधन में कांग्रेस को शामिल न करने पर भी सहमति बनी है। हालांकि अजित सिंह की पार्टी राष्ट्रीय लोकदल को इसमें शामिल किया गया है।

अगर राजधानी के सत्ता के गलियारों की खबरों पर विश्वास किया जाए तो अगले महीने सपा और बसपा के बीच यूपी की सियासत का सबसे बड़ा गठबंधन हो सकता है। हालांकि इसके कयास पहले से ही लगाए जा रहे थे। लेकिन दोनों दलों के बीच सीटों के बंटवारे पर सहमति बनने की खबरें आ रही हैं। असल में सपा और बसपा के लिए ये गठबंधन बहुत जरूरी है। क्योंकि दोनों ही पार्टियां अपने राजनैतिक जीवन के खराब दौर से गुजर रही हैं। जबकि दोनों दलों ने राज्य की सत्ता पर कई बार सरकार बनायी है। उसके बाद भी दोनों की दल अपने अस्तित्व के लिए लड़ रहे हैं।

लोकसभा में सपा के सात सांसद हैं तो बसपा की स्थिति शून्य है। जबकि विधानसभा में सपा 47 तो बसपा के 19 विधायक हैं। यूपी की सियासत में मायावती और मुलायम के बीच अदावत जगजाहिर है और उसके बाद भी दोनों दल फिर से चुनाव के मैदान में एक साथ जाने की तैयारी में हैं। असल में अब सपा की कमान अखिलेश यादव के पास है। ऐसा माना जा रहा है कि बसपा सबसे ज्यादा सीटों पर चुनाव लड़ेगी और इसके मुताबिक बसपा 40 सीटों पर चुनाव लड़ने की तैयारी में है तो सपा को 30 और 5 सीटें अजित सिंह की पार्टी को दी गयी हैं। इसके साथ ही छोटे दलों के हिस्से में भी पांच सीटें आ रह हैं। जबकि इस गठबंधन में विपक्षी दलों को एक मंच पर लाने की कोशिश कर रही कांग्रेस को शामिल नहीं किया गया है।

अगर देखें पिछले कुछ समय से बसपा और सपा कांग्रेस पर लगातार हमला कर रही हैं और जबकि मध्य प्रदेश और राजस्थान में दोनों दल कांग्रेस को समर्थन दे रही हैं। गठबंधन में कांग्रेस को शामिल न कर दोनों दलों ने कांग्रेस को बड़ा झटका दिया है। सपा और बसपा ने दो दिन पहले तीन राज्यों के शपथ ग्रहण समारोह से भी बराबर की दूरी बनाकर रखी थी। जबकि सुप्रीम कोर्ट से राफेल डील पर भाजपा को क्लीन चिट मिलने के बाद दोनों ही दलों ने कांग्रेस पर भी निशाना साधा था।

ऐसा माना जा रहा है कि कांग्रेस को राहत देने या फिर भविष्य की राजनीति को देखते हुए दोनों दल अमेठी और रायबरेली में अपने प्रत्याशी नहीं उतारेगी। आमतौर पर बसपा मायावती के जन्मदिन को कल्याणकारी दिवस के तौर पर मनाया जाता है। लेकिन बार दोनों दलों के बीच गठबंधन होने पर बड़े जलसे का आयोजन होने की संभावना है। असल में दोनों दलों ने अपनी क्षमता को इस साल राज्य में हुए लोकसभा उपचुनाव के दौरान आजमाया था। इन चुनाव में इन दोनों दलों ने केन्द्र और राज्य की सत्ताधारी भाजपा को जबरदस्त झटका दिया था।

हालांकि बसपा ने उपचुनाव नहीं लड़ा था। लेकिन उसने सपा और रालोद के प्रत्याशी को अपना समर्थन दिया था। जबकि कांग्रेस ने फूलपुर और गोरखपुर में चुनाव लड़ा था लेकिन उसका प्रत्याशी अपनी जमानत भी नहीं बचा पाया। गोरखपुर में सपा के टिकट पर निषाद पार्टी और फूलपुर में सपा प्रत्याशी ने जीत दर्ज की थी जबकि कैराना में रालोद का प्रत्याशी दोनों दलों के समर्थन से जीता। हालांकि इस बीच ये भी खबरें आ रही थी कि मायावती सपा के साथ गठबंधन नहीं कर रही हैं। लेकिन पार्टी के रणनीतिकारों ने इस गठबंधन के लिए मायावती को तैयार किया।