श्रीनगर। कभी अपने ही आवाज से पूरे कश्मीर में कर्फ्यू जैसी स्थिति को लाने वाले पाकिस्तान समर्थक अलगाववादी सियासत के दिग्गज  कट्टरपंथी सैयद अली शाह गिलानी के इस्तीफे के बाद राज्य में उनकी सियासत खत्म हो गई है। उनकी  इस सियासत को खत्म करने में केन्द्रीय गृहमंत्री अमित शाह की बड़ी भूमिका रही है। क्योंकि शाह ने पिछले साल अगस्त में धारा 370 हटाने का ऐलान किया और इसके बाद से ही राज्य में उनका सियासी दबदबा खत्म हो गया। गिलानी ने हुर्रियत के प्रमुख के पद से इस्तीफा दे दिया था।

असल में राज्य में धारा 370 हटाने के बाद राज्य में पाकिस्तान आतंक फैलाना चाहता था और उसे इन अलगाववादी नेताओं की जरूरत थी। लेकिन शाह ने इन  नेताओं को नजर बंद कर दिया और पाकिस्तान की खुफिया एजेंसी आइएसआइ जो चाहती थी वह नहीं हो सका था। शाह के कारण आईएसआई की रणनीति को बड़ा झटका लगा था और घाटी में अंतिम बड़ा मोहरा पिट गया है। गिलानी का इस्तीफा इस बात का सबूत है कि कश्मीर में जिस तरह से माहौल बदला है और आम लोग ने पाकिस्तान का साथ नहीं दिया है।

उससे पाकिस्तान परस्त इन अलगाववादियों की राजनीति खत्म हो गई है। कश्मीर में ये अलगाव नेता एक फरमान पर घाटी को बंद कर देते थे।  लेकिन अब हालत ये है कि जनता  ने ही इन नेताओं को नकार दिया है। असल में राज्य में जितने भी  बड़े अलगाववादी नेता हैं उनके  बच्चे विदेशों में अच्छी शिक्षा पाने के साथ ही नौकरियां कर रहे हैं। जबकि  ये अलगाववादी नेता आम लोगों को आतंकवाद  के लिए उकसाते थे। लिहाजा जनता इस बात  को समझ चुकी है कि ये नेता आम लोगों को मोहरा  बनाकर पाकिस्तान से मोटा पैसा लेते हैं।

गिलानी अलगाववादी सियासत का नेतृत्व करते थे और खुद फैसले लेते थे। पाकिस्तान भी गिलानी को आगे बढ़ाता था गिलानी कश्मीर के पाकिस्तान में विलय के सबसे बड़े पैरोकार माने जाते थे। लिहाजा जब भी  पाकिस्तान कश्मीर की बात उठाता था तो गिलानी उसकी आवाज से आवाज मिलाते ते। यही नहीं गिलानी कश्मीर में आतंकी घटनाओं को  भी ठहराते थे। कश्मीर में तो लोग उन्हें हड़ताली चाचा भी कहते हैं। लेकिन पिछले एक साल से गिलानी और उनके जैसे कई नेताओं की सियासत को केन्द्र सरकार के एक फैसले ने  कर दिया।

 यही नहीं  पिछले एक साल में पाकिस्तान को दुनिया में भी अपनी औकात पता चल गई। क्योंकि कश्मीर में धारा 370 हटाने को लेकर दुनिया में महज तीन देशों ने उसका साथ दिया। जबकि पाकिस्तान मुस्लिम देशों से कश्मीर में दखल की उम्मीद कर रहा था। लेकिन  केन्द्र सरकार ने जहां पाकिस्तान  अलग थलक पड़ा  पड़ा वहीं अलगाववादी नेताओं की राजनीति भी खत्म हो गई।

 पाकिस्तान हमेशा से ही कश्मीरी नेताओं को अपना मोहरा मानता था। अगर ये किसी काम आए तो ठीक नहीं तो दूध से मक्खी तरह निकाल कर फेंक दो। लिहाजा पिछले एक साल में ये नेता पाकिस्तान के किसी काम नहीं आए। लिहाजा पाकिस्तान ने इन नेताओं का भी साथ छोड़ दिया।  या यूं कहें कि अमित शाह के एक फैसले से पाकिस्तान के ये मोहरे लगातार पिटते चले गए।  आज घाटी में  शांति  है और आवाम के इस बात का अहसास हो गया है कि उनका हित देश के साथ रहने में है, उसका विरोध करने में नहीं।