नई दिल्ली: गृह मंत्री के तौर पर अमित शाह के कार्यभार संभालते ही सरकार ने अलगाववादी नेता मसर्रत आलम भट को दिल्ली की तिहाड़ जेल में स्थानांतरित कर दिया।

राष्ट्रीय जांच एजेंसी (एनआईए) और स्थानीय पुलिस मंगलवार को मसरत को राष्ट्रीय राजधानी में ले गई और उसे दिल्ली की स्थानीय अदालत में पेश किया गया है।  राज्य सरकार ने पिछले गुरुवार को मसरत पर एक सार्वजनिक सुरक्षा अधिनियम (पीएसए) लगाया है। 

 

मसर्रत अलगाववादी ऑल पार्टी हुर्रियत कॉन्फ्रेंस का महासचिव है, उसे सैयद अली शाह गिलानी के उत्तराधिकारी के रूप में देखा जाता है।

जम्मू-कश्मीर में कानून व्यवस्था बनाए रखने के लिए सरकार द्वारा उठाए गए कई दंडात्मक उपायों के बीच यह कदम उठाया गया है। अधिकारियों ने पहले ही इस क्षेत्र में पथराव करने वालों के खिलाफ शिकंजा कसना शुरू कर दिया है, जो देश विरोधी गतिविधियों में शामिल हैं।

इसके अलावा, उन सभी अलगाववादी नेताओं को भी कानून का सामना करना पड़ रहा है, जिन पर घाटी में तैनात राष्ट्र और सुरक्षा बलों के खिलाफ साजिश रचने का आरोप है। ऐसे सभी लोगों को  गिरफ्तार किया जा रहा है। यह लोग जेल में बैठकर अपनी समानांतर सत्ता चलाते थे। जिसे खत्म करने के लिए ऐसे सभी लोगों को जम्मू जेल से तिहाड़ भेजा जा रहा है। इस मामले में सबसे ताजा कार्रवाई मसर्रत आलम पर की गई है। 

सरकार ने पहले ही यासीन मलिक को दिल्ली की तिहाड़ जेल में भेज दिया था, एनआईए ने उसके खिलाफ आतंक और अलगाववाद फंडिंग मामले में उसके खिलाफ प्रोडक्शन वारंट हासिल किया था। यह कार्रवाई तब की गई जब अप्रैल में पुलिस स्टेशन से 100 मीटर की दूरी पर किश्तवाड़ अस्पताल के अंदर दो सशस्त्र आतंकवादियों के हमले में स्थानीय आरएसएस नेता चंद्रकांत शर्मा और उनके निजी सुरक्षा अधिकारी की हत्या कर दी गई थी। 

राज्य सरकार जम्मू-कश्मीर के 1978 के सार्वजनिक सुरक्षा अधिनियम (पीएसए) का उपयोग करते हुए ऐसे सभी लोगों को हिरासत में ले रही है जिनपर राष्ट्रीय सुरक्षा के लिए खतरा होने का संदेह होता है। 

मसर्रत के बाद उम्मीद की जा रही है कि मोहम्मद यूसुफ मीर को भी जल्दी ही लाया जाएगा। जो कि घाटी में कानून और व्यवस्था को बाधित करने का आरोपी है।