अमेरिकी विमान कंपनी बोइंग 2000 के दशक में 787 ड्रीमलाइनर प्रोजेक्ट लांच करना चाहती थी। जिसके लिए उसे टाइटेनियम धातु की जरुरत थी। टाइटेनियम बेहद सख्त होने के साथ-साथ बहुत हल्की धातु है। इसलिए विमान  निर्माण के लिए यह सर्वोत्तम मानी जाती है। 

बोइंग कंपनी भारत के आंध्रप्रदेश में मौजूदा टाइटेनियम की खदान से धातु निकालकर अपना प्रोजेक्ट पूरा करना चाहती थी।

न्यूयार्क टाइम्स की रिपोर्ट के मुताबिक बोइंग ने मैकिन्जी एंड कंपनी को भारत में टाइटेनियम माइनिंग की संभावनाएं तलाशने के लिए लगाया। जो कि दुनियाभर में बड़ी कंपनियों और सरकारों के साथ संपर्क साधने में अपनी साख बना चुकी थी। 

अनुमान के मुताबिक कंपनी को प्रतिवर्ष वह लगभग 500 मिलियन डॉलर (3,500 करोड़ रुपये) का खर्च खदान से टाइटेनियम निकालने के लिए करना था। 

बोइंग की इस डील में भारत में खदान लेने के प्रोजेक्ट में उसके साथ यूक्रेन की कंपनी भी शामिल थी जिसे इस प्रोजेक्ट की फाइनेंसिंग करनी थी। 

न्यूयार्क टाइम्स में छपी रिपोर्ट के मुताबिक इस डील के तहत यूक्रेन की कंपनी जो मसौदा सामने किया उसमें कहा गया कि भारत में सरकार के उच्च अधिकारियों को रिश्वत के जरिए माइनिंग का लाइसेंस प्राप्त किया जाएगा। 

 कंपनी की तरफ से पेश किए गए एक पावर पाइंट प्रेजेंटेशन में 8 अहम भारतीय अधिकारियों का नाम दिया गया जिन्हें रिश्वत देकर इस डील को सफल करने की बात कही गई। 

यूक्रेन की कंपनी की इस रणनीति पर कंसल्टिंग फर्म मैकिन्जी एंड कंपनी ने कोई आपत्ति नहीं उठाई थी। यह कंपनी यूक्रेन के प्रभावशाली कारोबारी दिमित्री फिरताश के नेतृत्व में थी। जिसने रूस और पूर्व सोवियत गणराज्यों से यूक्रेन के लिए गैस डील में अहम भूमिका अदा की थी।

लेकिन बोइंग और यूक्रेन की कंपनी की भारत में टाइटेनियम खदान लेने की योजना विफल हो गई।  जिसके बाद अमेरिकी कोर्ट में बोइंग ने फिरताश के खिलाफ इसलिए मुकदमा कर दिया क्योंकि विफल डील में भी फिरताश ने भारतीय अधिकारियों को लगभग 130 करोड़ बतौर रिश्वत देने का बिल बोइंग को थमा दिया था।   

न्यूयार्क टाइम्स की रिपोर्ट के मुताबिक अमेरिकी कोर्ट में दिमित्री फिरताश के इस बयान की आगे जांच नहीं की जा सकी कि उसने भारतीय अधिकारियों को लगभग 130 करोड़ रुपये की रिश्वत दी थी। 

क्योंकि तत्कालीन भारत सरकार ने अमेरिका और यूक्रेन की कंपनियों के बीच उठे इस विवाद में दखल नहीं दिया और न ही यूक्रेन के कारोबारी के दावों की जांच की गई।

ऐसे में सवाल यह उठता है कि 130 करोड़ रुपए में किसने कितने पैसे लिए ? इस सवाल का जवाब तलाश किया जाना अभी बाकी है।