जनरल बिपिन रावत ने सैन्य सचिव शाखा और परिप्रेक्ष्य योजना निदेशालय को तीन अलग-अलग अध्ययन करने को कहा है। उन्हें इस साल के अंत तक अपनी-अपनी रिपोर्ट सौंपने को कहा गया है। दोनों को मिलाकर एक बनाया जाएगा और फिर रक्षा मंत्रालय को आगे की कार्रवाई के लिए सौंप दिया जाएगा।
ऐसे समय जब सेना को मिलने वाले बजट की ज्यादातर राशि वेतन भुगतान में इस्तेमाल हो रही है, सेना प्रमुख जनरल बिपिन रावत सेना के बड़े पैमाने पर पुनर्गठन की योजना पर काम कर रहे हैं। इससे सेना को आधुनिक हथियार प्रणाली खरीदने के लिए अतिरिक्त धनराशि की बचत होगी। पहले चरण में सेना में अधिकारियों एवं जवानों की संख्या 50,000 तक घटाई जा सकती है।
जनरल रावत ने सैन्य सचिव शाखा और परिप्रेक्ष्य योजना निदेशालय को तीन अलग-अलग अध्ययन करने को कहा है। उन्हें इस साल के अंत तक अपनी-अपनी रिपोर्ट सौंपने को कहा गया है। दोनों को मिलाकर एक बनाया जाएगा और फिर रक्षा मंत्रालय को आगे की कार्रवाई के लिए सौंप दिया जाएगा।
सेना के वरिष्ठ सूत्रों ने 'माय नेशन' को बताया, 'सेना की योजना इन बदलावों को अगले साल के मध्य तक अमल में लाने की है। इसमें शुरुआती तौर पर राष्ट्रीय राइफल्स महानिदेशालय को जम्मू-कश्मीर स्थानांतरित करने, सैन्य प्रशिक्षण महानिदेशक को शिमला स्थित सैन्य प्रशिक्षण कमान भेजने और एक जैसा काम करने वाले सूचना प्रणाली एवं सूचना प्रौद्योगिकी निदेशालय को मिलाने जैसे कदम उठाए जा सकते हैं।'
सूत्रों के अनुसार, 'सेना में ब्रिगेडियर के रैंक को खत्म करने की पहल से ज्यादातर अधिकारी मेजर जनरल के रैंक से सेवानिवृत्त हो सकेंगे। यह प्रशासनिक सेवा के ज्वाइंट सेक्रेटरी के स्तर का पद होता है। प्रस्ताव में इस पर भी कोई फैसला हो सकता है।'
भारत के आतंकवाद रोधी दल राष्ट्रीय राइफल्स के महानिदेशक को जम्मू-कश्मीर के ऊधमपुर भेजने के पीछे का कारण बताते हुए सूत्रों ने कहा, लेफ्टिनेंट जनरल रैंक के अधिकारी को राज्य के तमाम अभियानों के प्रमुख उत्तरी कमान के कमांडर के संपर्क में रहने की जरूरत होती है। लेकिन ग्राउंड जीरो पर मौजूद सैनिकों से दूर दिल्ली में मौजूद रहने के चलते कई तरह की बाधाएं आती हैं।
इसी तरह, दो दशक पहले सैन्य प्रशिक्षण कमान खड़ी की गई थी। यह बल की संपूर्ण प्रशिक्षण जरूरतों का ध्यान रखती है। लेकिन सैन्य प्रशिक्षण महानिदेशालय अब भी मौजूद है और नई दिल्ली से काम कर रहा है, जबकि इसकी कोई आवश्यकता नहीं है। अगर ये लोग एआरटीआरएसी मुख्यालय में बैठते हैं तो उनका बेहतर इस्तेमाल किया जा सकता है। ऐसे ही, सूचना प्रौद्योगिकी निदेशालय और सूचना प्रणाली निदेशालय भी एक जैसा ही काम कर रहे हैं, लेकिन दोनों का संचालन अलग-अलग होता है। दोनों को मिलाया जा सकता है।
सूत्रों के अनुसार, राजस्व व्यय और पूंजीगत व्यय में सेना का मौजूदा व्यय अनुपात 83:17 है, यह नौसेना और वायुसेना के मुकाबले काफी कम है। दोनों 65:35 के अनुपात को बनाकर रखते हैं। इसका अर्थ यह हुआ कि वे अपने लिए आवंटित राशि का 65 प्रतिशत वेतन, उपकरण के रखरखाव और श्रमबल पर खर्च करते हैं। शेष 35 प्रतिशत राशि नई हथियार प्रणालियों की खरीद पर खर्च की जाती है।
सूत्रों के अनुसार, यह कोई नया विचार नहीं है। पूर्व के सेना प्रमुखों ने भी इसे आगे बढ़ाने की कोशिश की थी। पूर्व सेना प्रमुख जनरल वीपी मलिक ने सैनिकों की संख्या में कटौती कर सेना को चुस्त और मारक लड़ाकू मशीन बनाने विचार दिया था। वहीं पूर्व सेना प्रमुख जनरल वीके सिंह ने भी इस विचार को आगे बढ़ाते हुए सेना को ट्रांसफॉर्म करने की बात कही थी।
सेना प्रमुख का कहना है कि सेना मुख्यालय के पुनर्गठन से सिर्फ दिल्ली से 300 अधिकारी कम किए जा सकते हैं। बल के पुनर्गठन के पहले चरण में 13 लाख की मजबूत सेना में से 50,000 अधिकारियों एवं जवानों की कटौती की जा सकती है। आगे चलकर यह आंकड़ा डेढ़ लाख तक पहुंच सकता है।
Last Updated Sep 19, 2018, 9:19 AM IST