नई दिल्ली।  पाकिस्तान में सेना का मोह भंग अपने कठपुतली प्रधानमंत्री इमरान खान से हो रही है। देश में इमरान खान से हालात नहीं सुधर रहे हैं।  लिहाजा माना जा रहा है कि आने वाले दिनों में सेना इमरान खान के खिलाफ कुछ कदम उठा सकती है। हालांकि इससे पहले सेना इमरान की मर्जी के बगैर राज्य सरकार के साथ मिलकर लॉकडाउन लागू करा चुकी है। जबकि इमरान खान इसके खिलाफ थे।


पाकिस्तान में सेना के गढ़ कहे जाने वाले रावलपिंडी सैन्य मुख्यालय में कोरोना संकट का कहर थमने का नाम नहीं ले रहा है। वही देश के हालत भी खराब है। देश में कोरोना के मामले बढ़ रहे है। लेकिन हालत  को काबू पाने में इमरान सरकार विफल साबित हुई है। पाकिस्तान मीडिया के मुताबिक सेना पाकिस्तान वजीर-ए-आजम इमरान खान से नाराज है। क्योंकि अभी तक जिस मकसद के लिए इमरान को सत्त पर बैठाया गया था वह पूरा नहीं हुआ है।  पाकिस्तान  की सेना हमेशा चाहती है कि सरकार उसके इशाकों पर काम करे। वहीं  इमरान खान को सत्ता में बैठने में सेना की अहम भूमिका भी रही। इसका दावा पाकिस्तान के विपक्षी दल भी करते हैं कि इमरान खान को सेना ने सत्ता में बैठाया है।

अंतरराष्ट्रीय स्तर पर पाकिस्तान पूरी तरह से अलग थलग पड़ चुका है और अर्थव्यवस्था भी बिगड़ चुकी है।  जिसको देखते हुए लगता है कि पाकिस्तान में कभी गृहयुद्ध छिड़ सकता है।  लिहाजा स्थिति बिगड़ने से पहले ठोक कदम उठाना चाहती है। हालांकि पाकिस्तान के कई विशेषज्ञ और इमरान खान की पूरी पत्नी दावा कर चुकी है कि सेना कभी इमरान खान को सत्ता से बाहर सकती है। कहा जा रहा है कि पाकिस्तानी सेना ने इमरान खान को जून तक की मोहलत दी है। वहीं इमरान खान की मर्जी के बगैर देश के कई राज्यों में सेना ने स्थानीय सरकारों के साथ मिलकर लॉकडाउन लागू कर दिया था।  जबकि इमरान खान इसके खिलाफ थे। क्योंकि इमरान खान को डर था कि लॉकडाउन के बाद के बाद देश के हालात और ज्यादा बिगड़ सकते थे।


तबलीगी जमात के लोग बने मुसीबत

भारत की तरह पाकिस्तान में भी तब्लीगी जमात के लोग सरकार के लिए मुसीबत बने हुए हैं। तबलीगी जमात के पाकिस्तान में जलसे हुए और जमात के लोग देश के हर हिस्से में फैल रहे हैं और कोरोना वायरस को फैला रहे हैं। जिसके बाद पाकिस्तान में  कोरोना के सैकड़ों मरीज बढ़ गए। कहा जा रहा है कि जमात को मंजूरी इमरान खान के करीबी ने ही दिलाई। जिसको लेकर सेना नाराज है। कहा जा रहा है कि इमरान की इस अक्षमता के बाद खुद सेना प्रमुख कमर जावेद बाजवा को 1 अप्रैल को केंद्र और प्रांतों की सरकारों के साथ बैठक करनी पड़ी। जिसमें इमरान खान को शामिल नहीं किया गया।