आगामी लोकसभा चुनाव से पहले बिहार में कांग्रेस और राजद के बीच सीटों पर फैसला नहीं हो सका। कांग्रेस राज्य में ज्यादा सीटें मांग रही है वहीं राजद उसे ज्यादा सीटें देने के पक्ष में नहीं है। वहीं भाजपा और अन्य दलों को छोड़कर कांग्रेस का दामन थामने वाले नेताओं के टिकट पर भी कांग्रेस पर दबाव है। वहीं गठबंधन के छोटे दल ज्यादा सीटें मांग रहे हैं। लिहाजा माना जा रहा है कि 13 मार्च तक राज्य में यूपीए महागठबंधन पर तस्वीर साफ होगी।

पिछले महीने बिहार के पटना में यूपीए महागठबंधन ने बड़ी रैली का विपक्षी एकता को एक मंच पर दिखाया था। तब माना जा रहा था कि यूपीए के घटक दलों के बीच बिहार में सीटों का बंटवारा तय हो गया है। राजद कांग्रेस को दस सीटें दे रहा है जबकि कांग्रेस 12 सीटें राज्य में चाहती है। इसके साथ ही छोटे दल जैसे हम और रालोसपा भी ज्यादा सीटें मांग रही है। हम को एक सीट और रालोसपा को 2 सीटें दी गयी हैं।

वहीं राजद इस विपक्षी गठबंधन में बसपा और माकपा को भी शामिल कर एक-एक सीट देने के पक्ष में है। जिसको लेकर कांग्रेस तैयार नहीं है। वहीं कांग्रेस की दिक्कतें भाजपा और अन्य दलों से आए नेताओं को लेकर भी है। क्योंकि इन नेताओं को भी टिकट देना है। ऐसे में राजद अपने कोटे की सीटें छोड़ने के पक्ष में नहीं है। गौरतलब है कि पिछले दिनों में कांग्रेस का दिल्ली में आम आदमी पार्टी से गठबंधन टूटने के बाद अब बिहार में भी खींचतान शुरू हो गई है। हांलाकि दोनों दलों की तरफ की दावा किया जा रहा है कि 13 मार्च तक स्थिति साफ हो जाएगी।

हालांकि विपक्षी गठबंधन में दावा किया जा रहा था कि राज्य में सीटों का बंटवारा हो गया है। लेकिन अभी भी दलों के बीच पेंच फंसा है। राज्य में लोकसभा की 40 सीटें हैं और इस सीटों पर राजद, कांग्रेस के अलावा मुकेश सहनी, उपेंद्र कुशवाहा, जीतन मांझी, शरद यादव की पार्टी का गठबंधन हुआ है। कांग्रेस कम से कम 12 सीटें मांग रही है जबकि राजद ने कांग्रेस को अधिकतम 10 सीटें देने की बात कही है। राज्य में भाजपा से कांग्रेस में गए कीर्ति आजाद की सीट पर भी दुविधा है क्योंकि गठबंधन में सीटों के आधार पर ये सीट मुकेश सहनी के कोटे में गई है।