सुप्रीम कोर्ट ने अयोध्या विवाद पर मध्यस्थता के लिए तीन सदस्यों के पैनल का गठन किया है। इसमें आध्यात्मिक गुरु श्री श्री रविशंकर भी शामिल हैं। लेकिन उनके नाम पर एआईएमआईएम के सांसद असदुद्दीन ओवैसी ने आपत्ति जाहिर की है।
नई दिल्ली: अयोध्या विवाद पर मध्यस्थता के लिए के लिए सुप्रीम कोर्ट द्वारा गठित पैनल सुप्रीम कोर्ट के पूर्व न्यायाधीश एफएफ कलीफुल्लाह, आध्यात्मिक गुरु श्री श्री रविशंकर और वरिष्ठ वकील श्रीराम पंचू शामिल हैं। इस पैनल की अगुवाई जस्टिस कलीफुल्लाह करेंगे।
लेकिन असदुद्दीन ओवैसी को इसमें एक श्री श्री रविशंकर के नाम पर आपत्ति है। उनका कहना है कि 'यह ज्यादा बेहतर होता कि सुप्रीम कोर्ट उनकी जगह किसी तटस्थ व्यक्ति को पैनल में शामिल किया होता।'
ओवैसी ने श्री श्री के एक पुराने बयान का हवाला देते हुए कहा कि 'श्री श्री रविशंकर पहले कह चुके हैं कि मुस्लिम यदि अयोध्या पर अपना दावा नहीं छोड़ते तो भारत सीरिया बन जाएगा। यह बेहतर होता कि सुप्रीम कोर्ट उनकी जगह एक तटस्थ व्यक्ति को पैनल में शामिल करता।'
हालांकि इसके साथ ही ओवैसी ने यह भी कहा कि फिर भी मुसलमानों को श्री श्री रविशंकर के पास जाना चाहिए और उन्हें भी याद रखना चाहिए कि वो मध्यस्थ हैं। हम उम्मीद करते हैं कि वो तटस्थ रहेंगे।
ओवैसी ने आगे कहा कि हम सुप्रीम कोर्ट के मध्यस्थता के आदेश का स्वागत करते हैं। बाकी नामों से कोई ऐतराज नहीं है।
उधर खुद को मध्यस्थ बनाए जाने पर श्री श्री रविशंकर ने कहा है कि ' राम मंदिर पर मध्यस्थता देश के लिए अच्छा है. मध्यस्थता से राम मंदिर का हल निकल सरकता है. समाज में समरसता बनाए रखना लक्ष्य है'।
आपको बता दें कि शीर्ष अदालत ने पैनल का गठन करते समय कई दिशा-निर्देश दिए हैं। जिसमें से एक यह भी है कि मध्यस्थता की प्रक्रिया एक सप्ताह के भीतर शुरू हो जानी चाहिए। पैनल को मध्यस्थता का काम फैजाबाद में ही रहकर करना है।
इसके अलावा यह पूरी प्रक्रिया आठ सप्ताह यानी दो महीने के भीतर पूरी कर लेनी है। पैनल मध्यस्थता की पहली प्रगति रिपोर्ट चार सप्ताह में कोर्ट को सौंपेगा।
अदालत ने यह भी कहा है कि पैनल के सदस्यों को यदि लगता है कि इस कार्य के लिए उन्हें और लोगों की जरूरत है तो वे सुप्रीम कोर्ट आ सकते हैं। अदालत ने मीडिया को मध्यस्थता प्रक्रिया की रिपोर्टिंग करने से रोक दिया है।
मध्यस्थता का यह प्रयास भी यदि विफल हो जाता है तो सुप्रीम कोर्ट इस विवाद पर अपना फैसला सुनाना पड़ेगा। इससे पहले अयोध्या विवाद का हल निकालने की चार बार कोशिशें हो चुकी हैं लेकिन उनका कोई नतीजा नहीं निकल सका।