असम के अशांत कार्बी आंगलोंग में अवैध तरीके से रह रहे 1672 बांग्लादेशी परिवारों की पहचान हुई है। इतने परिवारों की पहचान होने का सीधा अर्थ यह हुआ कि इस इलाके में 8000 बांग्लादेशी अवैध तरीके से रह रहे हैं। सूत्रों के अनुसार, यह आदिवासियों के प्रभाव वाले जिले की मूल प्रकृति पर सीधा हमला माना जा रहा है। इसका मकसद यहां की डेमोग्राफी में बदलाव करना है। असम में सिटीजन अमेंडमेंट बिल के खिलाफ बने माहौल को देखते हुए इसे काफी अहम माना जा रहा है। शरणार्थियों के कारण ही असम की संस्कृति प्रभावित होने की आशंका जताई जा रही है। सूत्रों के अनुसार, इन्हें निकालने की तैयारी की जा रही है।

क्यों गंभीर है कार्बी आंगलोंग का मामला?

असम और पूर्वोत्तर के राज्य अपनी जातीय पहचान को लेकर काफी मुखर रहे हैं। यह कहना अनुचित नहीं  होगा कि एनआरसी (नेशनल रजिस्टर फॉर सिटीजन) में बदलाव असम के लोगों की अनुमति से ही किया जा रहा है। इसका मकसद गैर-असमिया लोगों खासतौर पर बांग्लादेशियों की पहचान करना है। कार्बी आंगलोग के इस पर्वतीय इलाके में कार्बी आदिवासियों की तादाद ज्यादा है। इसलिए यह काफी बड़ा मुद्दा है। इस जिले की मूल प्रकृति आदिवासी है। असम में होने के बावजूद यहां असमिया नहीं बल्कि स्थानीय भाषा कार्बी बोली जाती है। 16वीं अनुसूची के तहत यहां का संचालन स्वायत्त परिषद द्वारा किया जाता है। यहां के लोग डेमोग्राफी से छेड़छाड़ को मूल निवासियों के प्रति बड़ा आघात मानते हैं। अब 1672 अवैध बांग्लादेशियों के यहां रहने की जानकारी बाहर आने के बाद कानून-व्यवस्था बिगड़ने की आशंका व्यक्त की जा रही है। 

बांग्लादेशियों का अतिक्रमण और निष्कासन

कार्बी आंगलोंग स्वायत्त परिषद (केएएसी) के मुख्य कार्यकारी सदस्य तुलीराम रोनघान ने आधिकारिक तौर पर बताया कि कैसे अवैध बांग्लादेशियों को यहां स्थापित करने के प्रयास किए गए। मीडिया से बात कहते हुए रोनघान ने कहा, ये सभी इस्लाम के अनुयायी हैं। ये लोग असम के हिंसाग्रस्त कार्बी आंगलोंग में 'अवैध ढंग' से रह रहे हैं। इन अवैध बांग्लादेशियों को बाहर निकालने के लिए परिषद ने एक निष्कासन ड्राइव चलाई है। परिषद ने यह भी पुष्टि की है कि अब तक अवैध बांग्लादेशी मुस्लिमों को 1672 घर खाली कराए गए हैं। 

अधिकारियों के लिए चिंता की बात यह है कि पहली बार ऐसा नहीं हुआ है जब अवैध बांग्लादेशियों की रिहाइश का पता चला है। 'माय नेशन' को मिली भरोसेमंद सूचना के मुताबिक, जिले के लांगकाइजन इलाके में इसी तरह का अभियान चलाया था। यहां अवैध रूप से रह रहे बांग्लादेशियों की 100 रिहायशी संपत्तियों को खाली कराया गया था। सूत्रों के अनुसार, इस बार जंगली इलाकों में बड़े पैमाने पर अवैध रूप से रहने वालों का अतिक्रमण पाया गया है। यह आदिवासियों में आक्रोश की एक बड़ी वजह बन रहा है। 

तुलीराम रोनघांग ने कहा, 'कार्बी आंगलोंग का कुल क्षेत्रफल 10,434 वर्ग किलोमीटर है। कार्बी आंगलोंग जिले में बड़ी संख्या में बांग्लादेशी मुस्लिम रहते हैं। हमने इस अवैध बांग्लादेशी मुस्लिमों को यहां से बाहर करने के लिए व्यापक अभियान शुरू किया है।'

40 लाख से ज्यादा लोगों को एनआरसी के पूर्ण मसौदे से बाहर कर दिया गया। इसे पिछले साल 30 जुलाई को प्रकाशित किया गया था। कइयों को अपने भविष्य पर तलवार लटकती नजर आ रही है। यह सारा मामला सुप्रीम कोर्ट की निगरानी में चल रहा है। इसका मकसद 'विदेशियों' को राज्य से बाहर करना है। कार्बी आंगलोंग जैसी सुरक्षित पनाहगाह का खुलासा होने के बाद अधिकारी इस बात की आशंका जता रहे हैं कि अवैध रूप से भारत में रह रहे बांग्लादेश दूसरे आदिवासी इलाकों में छिपे हो  सकते हैं, ताकि एनआरसी की जांच से बच सकें।