अटल बिहारी वाजपेयी को यूं ही भारतीय राजनीति का अजातशत्रु नहीं कहा जाता। उन्होंने अपने व्यक्तित्व और कृतित्व से व्यापक स्वीकार्यता और यह सम्मान अर्जित किया। वाजपेयी को सांस्कृतिक समभाव, उदारवाद और राजनीतिक तर्कसंगतता के लिए जाना जाता है। अटल तीन बार भारत के प्रधानमंत्री बने। उनके कार्यकाल में ही भारत ने पोखरण में सफल परमाणु परीक्षण किया। उन्होंने भारत-पाकिस्तान के बीच शांति की उम्मीदों को नया आयाम दिया। नई दिल्ली से शांति का पैगाम लेकर लाहौर तक की बस यात्रा की। एक अनुभवी राजनीतिज्ञ और उत्कृष्ट सांसद होने के अलावा वाजपेयी एक प्रसिद्ध कवि और सभी राजनीतिक दलों में सबसे लोकप्रिय व्यक्तित्व रहे हैं।
 
वाजपेयी का जन्म 25 दिसंबर 1924 को ग्वालियर (मध्य प्रदेश) में एक मध्यमवर्गीय ब्राह्मण परिवार में हुआ। पिता कृष्ण बिहारी वाजपेयी एक कवि होने के साथ ही स्कूल में शिक्षक थे। वाजपेयी की शुरुआती पढ़ाई ग्वालियर के सरस्वती शिशु मंदिर में हुई। बाद में उन्होंने विक्टोरिया कॉलेज ग्वालियर से स्नातक की उपाधि ली। कानपुर के एंग्लो-वैदिक कॉलेज से वाजपेयी ने राजनीतिक विज्ञान में स्नातकोत्तर की पढ़ाई पूरी की। वे 1939 में राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आरएसएस) से जुड़े और 1947 में उसके प्रचारक (पूर्णकालिक कार्यकर्ता) बन गए। उन्होंने इस दौरान राष्ट्रधर्म हिंदी मासिक, पांचजन्य हिंदी साप्ताहिक और दैनिक स्वदेश और वीर अर्जुन जैसे अखबारों के लिए भी काम किया।
 
 
उन्होंने एक स्वंतत्रता संग्राम सेनानी के तौर पर करियर शुरू किया था। बाद में वे भारतीय जनसंघ से जुड़े। इसका नेतृत्व डॉ. श्याम प्रसाद मुखर्जी करते थे। वे भारतीय जनसंघ के राष्ट्रीय सचिव बने और उनके पास उत्तरी क्षेत्र का प्रभार आया। जनसंघ के नेता के तौर पर वाजपेयी 1957 में पहली बार बलरामपुर से लोक सभा के लिए चुने गए। वे 1968 में जनसंघ के राष्ट्रीय अध्यक्ष बने। नानाजी देशमुख, बलराज मधोक और लालकृष्ण आडवाणी जैसे सहयोगियों की मदद से वाजपेयी ने जनसंघ की पहुंच बढ़ाई।
 
 
1975 में तत्कालीन प्रधान मंत्री इंदिरा गांधी ने आपातकाल लागू किया था। विरोधियों का दमन हुआ था। इसके खिलाफ जय प्रकाश नारायण (जेपी) ने संपूर्ण क्रांति आंदोलन शुरू किया, जिसमें वाजपेयी भी जुड़े। 1977 में जनसंघ का जनता पार्टी में विलय कर दिया गया। 1977 में मोरारजी देसाई के नेतृत्व में जनता पार्टी ने पहली बार केंद्र में सरकार बनाई। उस समय वाजपेयी केंद्रीय मंत्री बने। उन्हें विदेश मंत्रालय की जिम्मेदारी दी गई। विदेश मंत्री के तौर पर वाजपेयी संयुक्त राष्ट्र महासभा में हिंदी में भाषण देने वाले पहले राजनेता थे।
 
 
वाजपेयी ने लाल कृष्ण आडवाणी, भैरो सिंह शेखावत और जनसंघ के कुछ अन्य नेताओं के साथ मिलकर और राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आरएसएस) के समर्थन से 1980 में भाजपा का गठन किया। अटल जी 1980 से 1986 तक भाजपा के अध्यक्ष पद पर रहे। 1984 में हुआ लोकसभा चुनाव अटल बिहारी बाजपेयी के नेतृत्व में लड़ा गया था और भाजपा को मात्र दो ही सीटे मिली थी। 1984 का पूरा चुनाव इंदिरा लहर में बह गया था। कांग्रेस ने इस चुनाव में अभूतपूर्व 401 सीटें जीती थीं। 1989 में हुए लोकसभा चुनाव में भाजपा ने भारी बढ़त के साथ कुल 85 सीटें जीती और एक बार फिर राजनीति में वापसी की।
 
सन 1996 में हुए लोकसभा चुनाव में भाजपा ने भारी सफलता प्राप्त करते हुए 161 सीटें जीती और सबसे बड़ी पार्टी बनकर उभरी। वाजपेयी के नेतृत्व में सरकार बनी जो बहुमत न होने कारण मात्र 13 दिन ही चली। सन 1996 से 1998 तक भारतीय राजनीति में उथल पुथल मची रही और कोई भी पार्टी स्थायी सरकार न बना पाई। इस बीच भाजपा ने कई अन्य दलों के मिलकर राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन यानी एनडीए बनाया। इस गठबंधन ने सरकार बनाई और वाजपेयी 13 महीने तक भारत के प्रधानमंत्री रहे। प्रधानमंत्री के तौर पर वाजपेयी के दूसरे कार्यकाल को राजस्थान के पोखरण में परमाणु परीक्षण के लिए जाना जाता है, जो मई 1998 में किया गया था। अटल जी के प्रधानमंत्री रहते हुए भारत और पाकिस्तान के बीच कारगिल युद्ध हुआ जिसे भारतीय सैनिकों ने बहुत ही बहादुरी के साथ लड़ा और विजय हासिल की। इससे भारतीय के मन में भाजपा और अटल बिहारी वाजपेयी के प्रति और भी विश्वास जगा। 1999 में हुए 14वीं लोकसभा चुनाव में भाजपा फिर से उभर कर सामने आई एनडीए गठबंधन ने 298 सीटें हासिल कीं। अटल जी तीसरी बार देश के प्रधानमंत्री बने और पूरे 5 साल तक सरकार चलाई। 
 
वाजपेयी के तीसरे कार्यकाल का उजला पक्ष यह है कि उस दौरान कई आर्थिक और अधोसंरचनात्मक सुधार किए गए। इनमें निजी क्षेत्र और विदेशी निवेश को बढ़ावा देना शामिल था। नेशनल हाईवे डेवलपमेंट प्रोजेक्ट्स और प्रधानमंत्री ग्राम सड़क योजना जैसी कुछ योजनाएं शुरू की। वाजपेयी ने व्यापार-हितैषी, मुक्त-बाजार सुधार के साथ-साथ भारत के आर्थिक विकास की दिशा में महत्वपूर्ण फैसले लिए थे। मार्च 2000 में, वाजपेयी ने तत्कालीन अमेरिकी राष्ट्रपति बिल क्लिंटन के प्रवास के दौरान उनके साथ ऐतिहासिक विजन डॉक्यूमेंट पर हस्ताक्षर किए थे। इस घोषणा पत्र में कई रणनीतिक मुद्दे शामिल थे। इस दौरान मुख्य रूप से दोनों देशों के बीच व्यापार और आर्थिक रिश्तों को मजबूती देने की कोशिश की गई थी। वाजपेयी ने आगरा समिट के दौरान तत्कालीन पाक राष्ट्रपति परवेज मुशर्रफ के साथ मिलकर पाकिस्तान के साथ एक बार फिर शांति बहाल करने की कोशिश की थी। लेकिन बातचीत विफल हो गई क्योंकि मुशर्रफ कश्मीर मुद्दे को अलग रखकर बातचीत आगे बढ़ाने के लिए तैयार ही नहीं हुए। 2004 में 15वीं लोकसभा के चुनाव में एनडीए हार गया। 2005 के बाद वाजपेयी भारतीय राजनीति से दूर हो गए।