आगामी लोकसभा चुनाव को देखते हुए बिहार सरकार ने भी राज्य में गरीब सवर्णों के लिए लागू दस फीसदी आरक्षण को राज्य में लागू कर दिया है। केन्द्र सरकार के आरक्षण को लागू करने के बाद गुजरात, झारखंड, उत्तर प्रदेश में इसे लागू कर दिया गया था। अब बिहार में भी आरक्षण को लागू कर दिया गया है। इन सभी राज्यों में भाजपा की सरकारे हैं।

बिहार सरकार ने आर्थिक रूप से पिछड़े सामान्य वर्ग के लोगों को 10 फीसदी आरक्षण को मंजूरी दे दी। मुख्‍यमंत्री नीतीश कुमार की अध्‍यक्षता में हुई कैबिनेट की बैठक के बाद सवर्ण आरक्षण के प्रस्ताव को स्‍वीकृति दी गई। बिहार सरकार से पहले राजस्थान सरकार ने भी कुछ दिन पहले इस आरक्षण को राज्य में लागू करने का फैसला किया था। हालांकि पहले जनता दल (यू) राज्य में सवर्ण आरक्षण को जल्दी लागू करने के पक्ष में नहीं था। जबकि राज्य में भाजपा और जदयू मिलकर सरकार चला रहे हैं। लेकिन राज्य के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार आबादी से आधार पर आरक्षण के समर्थक हैं। हालांकि नीतीश सरकार के इस फैसले के बाद भाजपा पर आरक्षण को लागू करने का जबरदस्त दबाव था।

कुछ दिन पहले ही राज्य के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने साफ किया था कि पार्टी राज्य में आबादी के हिसाब से आरक्षण के समर्थन में है। इसके लिए उन्होंने केन्द्र सरकार से तीन साल बाद होने वाली जनगणना को जातीय आधार कर कराने का आग्रह किया था। असल में राज्य में मुख्य विपक्षी दल राजद ने सवर्ण आरक्षण के खिलाफ बयान दिया है और जदयू उसे आरक्षण लागू कर राज्य के पिछड़े और दलितों के वोटबैंक को अपनी तरफ खिंचने का मौका नहीं देना चाहते थे। नीतीश कुमार ने कहा था कि जातीय जनगणना होने पर पता चलेगा कि किस जाति की कितनी आबादी है। इससे खासतौर पर ओबीसी के बारे में स्थिति पूरी तरह स्पष्ट हो जाएगी।

जबकि अभी तक एससी, एसटी और अल्पसंख्यकों की आबादी की जानकारी तो इससे मिल जाती है, लेकिन ओबोसी की आबादी की जानकारी नहीं मिल पाती है। जातीय जनगणना होने के बाद आबादी के आधार पर आरक्षण का बंटवारा होना चाहिए। हम चाहते हैं कि ना सिर्फ ओबीसी बल्कि सभी वर्गों की जाति के हिसाब से जनगणना होनी चाहिए।