भारतीय जनता पार्टी ने केरल में इसाई गिरिजाघरों, खास कर कैथोलिक चर्चों और उनकी संपत्तियों को कानून द्वारा नियंत्रित करने की मांग की है, वाम शासित राज्य में इसकी मांग ईसाई समुदाय के लोगों द्वारा ही उठ रही है।

जस्टिस वीआर कृष्णन की अगुवाई में पिछले लॉ रिफॉर्म कमीशन ने 2009 में केरल चर्च प्रॉपर्टीस एंड इंस्टिट्यूशन ट्रस्ट बिल को प्रस्तावित किया था। इसका उद्देश्य संदिग्ध तरीके से चर्च द्वारा संपत्तियों को हासिल करने और गिरिजाघरों में कुप्रबंधन को दुरुस्त करना था। 

केरल बीजेपी ने माय नेशन को बताया है कि बाद में वोटबैंक राजनीति के लिए राज्य सरकारों द्वारा प्रस्ताव को रफा-दफा कर दिया गया।

केरल बीजेपी बोद्धिक प्रकोष्ठ के संयोजक टीजी मोहनदास ने आरोप लगाया है कि कैथोलिक चर्चों ने प्रस्तावित बिल का जमकर विरोध किया जिसने कानून की धज्जियां उड़ाते जमीनों का अधिग्रहण किया। हालांकि अन्य चर्च इस मामले में ज्यादा उतावले नहीं रहे। 

"हम चर्चों के मामलों को नियंत्रित करने के लिए कानून की मांग का स्वागत करते हैं। कृष्णा आयोग ने कहा था कि केरल में लगभग 9 0 पुरातन कानून हैं, जो त्रावणकोर और कोच्चि से संबंधित हैं, जिन्हें निरस्त करने की आवश्यकता है, और नए कानून बनाए गए हैं। इसके तहत, यह प्रावधान किया जाय कि चर्चों के प्रबंधन को कॉमन अथॉरिटी के अधीन लाकर उनके कामकाज को पारदर्शी बनाया जाय" टीजी मोहनदास ने माय नेशन को यह भी बताया।

"कानून में यह प्रस्ताव था कि गिरिजाघरों को एक अथॉरिटी के अंतर्गत लाया जाय ताकि उनके सालाना काम का ऑडिट हो सके और उनकी प्रॉपर्टी के मैनेजमेंट पर नजर रखा जाय'' अपनी बात में मोहनदास यह भी जोड़ते हैं। 

मोहनदास बताते हैं कि "यह अभियान संपत्ति विवाद की पृष्ठभूमि से शुरू हुआ जिसने हाल के दिनों में चर्च  में हलचल पैदा की थी। चर्च के पास जो संपत्ति है उसको लेकर उसे असीमित अधिकार है जो अंतत: पोप से नियंत्रित है। इससे इसाई समुदाय के सदस्यों की कोई भूमिका नहीं। ना तो कोई ऑडिट किया जा सकता है ना ही कोई सवाल पूछ सकता है। पोप ही अंतिम अथॉरिटी है जो अपने अधिकारों को आर्च विशप को या सामान्य पादरियों से साझा कर सकता है। समुदाय के लोगों के पास चर्च की संपत्ति और प्रबंधन को लेकर  सवाल पूछने का कोई अधिकार नहीं। 

चर्च की इस कुव्यवस्था पर हालिया चोट अंदरखाने से ही हुई है। यह मुद्दा ऑल केरल चर्च एक्ट एक्शन काउंसिल एंड मालमकारा एक्शन कॉउंसिल फॉर चर्च द्वारा उठाया गया है। जिनके द्वारा, कानून की बहाली को लेकर इस साल 22 मई को तिरुअनंतपुरम में धरना भी किया गया।

इन संगठनों ने दलील दी कि चर्च अधिनियम को राज्य विधायिका द्वारा पारित करने की आवश्यकता है, जिसने लोकतांत्रिक ढंग से निर्वाचित फोरा की स्थापना का प्रस्ताव दिया था जिससे समाज का आम आदमी चर्च के गुणों का प्रबंधन कर सकेगा। उन्होंने कहा था कि पुराने धार्मिक कानूनों की उपज विदेशी जमीन पर थी इसलिए वो भारत में सही मायनों में अमल में नहीं लाई जा सकीं।