यूपीए चेयरपर्सन सोनिया गांधी को उनके गढ़ में चुनौती देने के लिए बीजेपी रायबरेली से मेजर सुरेंद्र पूनिया को मैदान में उतारने की रणनीति पर काम कर रही है। आगामी लोकसभा चुनावों में गांधी परिवार को उनके चुनाव क्षेत्र में कड़ी चुनौती देने के लिए बीजेपी एक साफ-सुधरी छवि वाले उम्मीदवार की तलाश में लगी है।
रायबरेली लोकसभा क्षेत्र कांग्रेस का पुराना गढ़ है और अब कांग्रेस की वरिष्ठ नेता को चुनौती देने की दिशा में बीजेपी ने उम्मीदवारों की सूचि तैयार की है। सूत्रों के मुताबिक मेजर सुरेंद्र पूनिया सेना से रिटायर्ड होने के साथ-साथ अंतरराष्ट्रीय स्तर पर ख्याति प्राप्त खिलाड़ी हैं। हालांकि सूत्रों का कहना है कि फिलहाल मेजर पूनिया को रायबरेली से उम्मीदवार बनाने पर अंतिम फैसला नहीं लिया गया है।
माइ नेशन ने मेजर पूनिया से बात की और पूनिया ने कहा कि यदि प्रधानमंत्री मोदी उन्हें रायबरेली में सोनिया गांधी का मुकाबला करने के लिए कहते हैं तो वह इस चुनौती को स्वीकार करेंगे। पूनिया ने कहा कि उनकी उम्मीदवारी से रायबरेली में चोर बनाम चौकीदार का मुकाबला होगा. पूनिया ने दावा किया कि वह सेना में रहते हुए देश की चौकीदारी कर चुके हैं और अब मौका मिलता है तो वह ऐसे चोर से भी देश की चौकीदारी करेंगे जो कई घोटालों में शरीक है। रायबरेली में प्रचार में जुटे मेजर पूनिया ने कहा कि फिलहाल उन्हें पार्टी से हरी झंडी का इंतजार है।

वहीं पार्टी से टिकट मिलने की स्थिति में अपनी रणनीति को साझा करते हुए पूनिया ने कहा कि एक समय ऐसा था जब मुगल साम्राज्य और ब्रिटिश हुकूमत को हराना बड़ी चुनौती थी। लेकिन जब उन दोनों ताकतों को हराने का काम सफलतापूर्वक किया गया तब रायबरेली में सोनिया गांधी को हराने का काम भी सफलतापूर्वक किया जा सकता है। पूनिया ने कहा कि गांधी परिवार के पास जनता के बीच जाने के लिए सिवाए अपने भ्रष्टाचार के लेखाजोखा और कुछ नहीं है वहीं आगामी चुनावों में मोदी सरकार के पास अपनी सफलता गिनाने के लिए एक लंबी लिस्ट मौजूद है।  
मेजर सुरेन्द्र पूनिया बीते हफ्ते बीजेपी नेता जेपी नड्डा और रामलाल की मौजूदगी में पार्टी में शामिल हुए थे। हालांकि पूनिया राजनीति के लिए नए नहीं हैं और पूर्व में कुछ दिनों तक आम आदमी पार्टी की गतिविधियों में वह शिरकत करते रहे हैं और 2014 के लोकसभा चुनावों में वह राजस्थान की सीकर सीट से किस्मत आजमा चुके हैं। हालांकि पूनिया ने 2015 में दिल्ली विधानसभा चुनावों से पहले अरविंद केजरीवाल से मनभेद के चलते आम आदमी पार्टी को अलविदा कह दिया था।