यूपी की सियासत में ये महीना अहम साबित होने वाला है। यूपी की राजनीति में दबदबा रखने वाले बसपा प्रमुख के जन्मदिन पर यूपी ही नहीं, बल्कि देश के सभी राजनैतिक दलों की नजर है। क्योंकि इस दिन देश की राजनीति में एक नया अध्याय लिखा जा सकता है। क्योंकि जो परस्पर विरोधी दल एक साथ मिलकर चुनाव लड़ने का फैसला कर सकते हैं।

असल में बसपा सुप्रीमो मायावती का 15 जनवरी को जन्मदिन मनाया जाता है। इस बार ये जन्मदिन इसलिए भी अहम है। क्योंकि उम्मीद की जा रही है कि बसपा आगामी लोकसभा चुनाव सपा के साथ मिलकर लड़ेगी। ऐसा माना जा रहा है कि सपा और बसपा महागठबंधन बनाकर चुनाव लड़ सकते हैं। इस महागठंबन में दोनों दल छोटे दलों को शामिल करेंगे, जबकि कांग्रेस को इससे बाहर रखे जाने की संभावना है। हालांकि बसपा ने मध्य प्रदेश में लोकसभा चुनाव अकेले लड़ने का फैसला किया है। पिछले दिनों बसपा ने इस बात को खारिज किया था कि राज्य में वह किसी के साथ गठबंधन करने जा रही है।

लेकिन राज्य में दोनों दलों के लिए आपस में गठबंधन करना जरूरी है। क्योंकि पिछले लोकसभा चुनाव बसपा एक भी सीट नहीं जीत पायी जबकि सपा पांच सीटों में सिमट कर रह गयी थी। लिहाजा अब दोनों दलों का भविष्य इस गठबंधन पर टिका है। बहरहाल ऐसा माना जा रहा कि दोनों दलों के इस गठबंधन में कांग्रेस के शामिल होने की गुंजाइश कम है। क्योंकि बसपा प्रमुख मायावती पिछले कुछ समय से कांग्रेस को लेकर आक्रामक तेवर अपनाए हुए हैं।

अकसर बसपा प्रमुख मायावती अपने चौंकाने वाले फैसलों के लिए जानी जाती हैं। लिहाजा उनका जन्मदिन इस बार पिछले सालों की अपेक्षा काफी महत्वपूर्ण माना जा रहा है। लोकसभा चुनाव से पहले मनाए जाने वाले इस जन्मदिन पर अन्य राजनीतिक दलों की भी नजर है। बहरहाल मायावती काफी समय बाद लखनऊ आ रही हैं। जनवरी के पहले हफ्ते में उनके आने की संभावना जताई जा रही है। वह अकसर अपना जन्मदिन लखनऊ में बड़े स्तर पर मनाती हैं और जिसमें हजारों की संख्या में कार्यकर्ता हिस्सा लेते हैं। जन्मदिन के मौके पर मायावती दलित मूवमेंट ऑफ मायावती पुस्तक यानी ब्लू बुक का विमोचन भी करती हैं। ऐसा माना जा रहा है कि अपने जन्मदिन पर मायावती बड़ा ऐलान कर सकती हैं।

वह अकसर गठबंधन को लेकर हमेशा से यह कहती रही हैं कि सम्मानजनक स्थिति पर ही वह समझौता करेंगी। फिलहाल सपा और विपक्षी दल मायावती के 15 जनवरी के जन्मदिन पर लगाए हुए हैं। क्योंकि अगर राज्य में सपा और बसपा के बीच गठबंधन होता है तो इसका सीधा नुकसान भाजपा को होगा और इसके चलते दिल्ली में फिर से सरकार बनाने की संभावनाएं कम होगीं। क्योंकि पिछले लोकसभा चुनाव में भाजपा ने राज्य में 73 सीटें जीती थी। लेकिन राज्य में हुए लोकसभा उपचुनाव में उसे तीन सीटें गंवानी पड़ी थी। इन चुनाव में बसपा ने सपा और रालोद को समर्थन दिया था।