कश्मीर के शोपियां जिले में स्थानीय निकाय चुनाव में बीजेपी के 13 उम्मीदवार निर्विरोध जीत गए हैं। इसके साथ ही कश्मीर के सबसे ज्यादा आतंकवाद प्रभावित जिले के स्थानीय निकाय पर बीजेपी का नियंत्रण पक्का हो गया है। 

शोपियां जिले में 17 सदस्यों का स्थानीय निकाय है, जिसमें से 13 सीटों पर बीजेपी ने अपने उम्मीदवार उतारे थे, जबकि चार सीटों पर किसी ने नामांकन ही नहीं भरा था। 

जम्मू कश्मीर के राजनीतिक दल नेशनल कांफ्रेन्स और पीडीपी के उम्मीदवारों ने तो पर्चा ही नहीं भरा था। हालांकि इन दोनों दलों ने पर्चा नहीं भरने के लिए अनुच्छेद 35-A को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दिए जाने का बहाना बनाया था। 

लेकिन मूल वजह है आतंकवादियों का डर। जिसकी वजह से कश्मीर की राजनीति करने वाले एनसी और पीडीपी के उम्मीदवारों ने पर्चा भरने से परहेज किया। 

दरअसल शोपियां है ही ऐसा इलाका। यह क्षेत्र आतंकवादियो का गढ़ माना जाता था। वैसे तो दक्षिण कश्मीर के पुलवामा, अनंतनाग, कुलगाम और अवंतीपुरा जैसे जिलों में आतंकवाद का खूनी चेहरा सबसे ज्यादा दिखता रहा है।

 लेकिन आतंकवादी पैदा करने में शोपियां जिला सबसे आगे रहा है। हालात इतने बदतर थे, कि जुलाई 2018 तक पूरे जम्मू कश्मीर में 110 लोग आतंकवादी बने थे और इसमें से 28 आतंकी अकेले शोपियां जिले के थे। 

यहां का हेफ शरीमल इलाका आतंकियों का पसंदीदा ठिकाना रहा है। यहां सेब के बाग और घने जंगलों में अक्सर आतंकी अपने छुपने का अड्डा बनाते हैं।  इस इलाके से गुजरने पर तथाकथित ‘आजादी’ समर्थक नारे दीवारों पर लिखे नजर आते हैं। सुरक्षाबलों के हाथों मारे गए आतंकियों की शवयात्रा में भारी भीड़ उमड़ती दिखती है। 

लेकिन जल्दी यह सब इतिहास के जर्द पन्नों में विलीन हो जाएगा। 

क्योंकि शोपियां में माहौल बदल रहा है। इसका पहला संकेत अब दिखाई दिया है। शोपियां में राष्ट्रवाद का परचम लहराना इस बात का संकेत है, कि यहां के लोग बंदूकों से आजिज आ चुके हैं। उन्हें भी अब अमन-चैन की जिंदगी रास आने लगी है। 

आतंकवाद और अलगाववाद के इस सबसे बड़े ठिकाने में स्थानीय निकाय चुनाव में बीजेपी की जीत बहुत मायने रखती है। यह एक सिलसिले की शुरुआत है, जिसके दूसरे सिरे पर अमन की खूबसूरत दुनिया है। 

स्थानीय निकाय चुनाव में आम लोगों की बहुत ज्यादा भागीदारी होती है। अगर इस चुनाव में उन्होंने बीजेपी को चुना है, तो इसका मतलब लगाया जा सकता है, कि  शोपियां के लोग अब लोकतंत्र की अहमियत समझने लगे हैं। उन्हें आतंकवाद का खोखलापन दिखने लगा है।

जम्मू कश्मीर के रक्तरंजित इतिहास को देखते हुए शोपियां में बीजेपी की जीत सचमुच एक बहुत ही आशाजनक संकेत है। 
(इनपुट भाषा से भी)