कोर्ट ने बिहार सरकार की उस मांग को भी ठुकरा दिया है जिसमें बिहार सरकार जवाब दाखिल करने लिए और समय की मांग की थी। सुप्रीम कोर्ट ने अपने आदेश में कहा कि सीबीआई बाकी मामलों की जांच के लिए तैयार है। 

कोर्ट ने अपने फैसले में साफ कर दिया है कि इस मामले की जांच कर रहे किसी भी सीबीआई अधिकारी को ना तो हटाया जाएगा और ना ही उसका ट्रांसफर होगा। वहीं मामले की सुनवाई के दौरान सीबीआई ने कोर्ट को बताया कि इस मामले में 7 दिसंबर तक आरोप पत्र दाखिल कर दिया जाएगा।

एक दिन पहले ही कोर्ट ने नीतीश सरकार को फटकार लगाते हुए कहा था कि पूरे मामले में राज्य सरकार का रवैया बेहद दुर्भाग्यपूर्ण, अमानवीय और लापरवाह है। सुप्रीम कोर्ट ने अदालत में मौजूद चीफ सेक्रेटरी से पूछा था कि अगर अपराध हुआ है तो आरोपी के खिलाफ आईपीसी की धारा 377 और पॉक्सो एक्ट के तहत मुकदमा क्यों नहीं दर्ज हुआ है।

कोर्ट ने बिहार सरकार को फटकार लगाते हुए कहा था कि आप लोग कर क्या रहे है। यह शर्मनाक है। किसी बच्चे के साथ कुकर्म होता है और आप कुछ नहीं करते। आप ऐसा कैसे कर सकते है। यह अमानवीय है। हमें बताया गया था कि इस मामले को गंभीरता को गंभीरता से देखा जाएगा लेकिन सरकार के रवैये से ऐसा नही लग रहा कि सरकार इस मामले को लेकर गंभीर है। 

कोर्ट ने नाराजगी जताते हुए कहा था कि जब हम इस फ़ाइल को पढ़ते है तो बहुत दुख होता है। गौरतलब है कि इस केस में आरोपी व बिहार सरकार की पूर्व मंत्री को गिरफ्तार नही करने पर कोर्ट ने कहा था कैबिनेट मंत्री फरार है, बहुत खूब। आखिर यह कैसे हो सकता है कि बिहार के एक कैबिनेट मंत्री फरार है और सरकार व पुलिस को उनके बारे में पता नही है। जिसके बाद मंजू वर्मा ने 19 नवंबर को बिहार के बेगूसराय के निचली अदालत में समर्पण कर दिया था।
 
वर्मा मुजफ्फरपुर होम शेल्टर के घटना के दौरान बिहार सरकार में समाज कल्याण मंत्री थी। उनके घर पुलिस ने छापा मारा था जिनके यहां से 50 कारतूस बरामद किया गया था। जिसके बाद पुलिस ने वर्मा के खिलाफ आर्म्स एक्ट के तहत मुकदमा दर्ज किया था।